Madhya Pradesh

क्यों राज्य में आ सकती है कमलनाथ सरकार

जैसे जैसे वक्त गुजरता जा रहा है, वैसे ही मध्य प्रदेश में लगभग 27 सीटों पर होने वाले उपचुनावों का वक्त नजदीक आ रहा है. इनमें से ज्यादातर उन सीटों पर चुनाव होगा, जो विधायक कांग्रेस की चलती सरकार को दगा देकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की लगभग 15 महीने सरकार चली थी. इसके बाद शिवराज सिंह ने सिंधिया की मदद से वापस सरकार बना ली. 

इन रिक्त हुई सीटों पर जल्द ही उपचुनाव होने वाले हैं. जिसके लिए कांग्रेस और बीजेपी ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. इन उपचुनावों के लिए दोनों ही पार्टियाँ पूरी मेहनत से तैयारी कर रही हैं. क्योंकि दोनों ही पार्टियों को पता है कि इन चुनावों से उनका भविष्य तय होगा. कांग्रेस उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर वापस सरकार में आना चाहेगी, तो वहीँ बीजेपी अपनी सरकार बचाना चाहेगी. लेकिन अगर बात करें कि दोनों पार्टियों में कौन विजयी हो सकता है? दोनों पार्टियों में से किसका पलड़ा भारी है? तो इसका जवाब है कि इन उपचुनावों में कांग्रेस पार्टी का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है. इसके पीछे तमाम वजह जैसें


• शिवराज सिंह का धोखे से सरकार बनाना


प्रदेश में पिछले 15 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. जिसमें से 13 सालों तक शिवराज सिंह मुख्यमंत्री रहे थे. 2018 के विधानसभा चुनावों में शिवराज सिंह और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई थी. लेकिन कुछ समय बाद ही शिवराज सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर कमलनाथ की सरकार गिरा दी. बीजेपी और शिवराज का यह फैसला जनता को पसंद आया. कई लोगों ने हमे बताया कि अगर शिवराज सिंह ही मुख्यमंत्री बनने थे तो हम बीजेपी को हराते ही क्यों? हमें शिवराज और बीजेपी से ज्यादा कमलनाथ और कांग्रेस ठीक लगी, इसीलिए चुनावों में हमने उन्हें जिताया. लेकिन अब कुछ गद्दार विधायकों के साथ मिलकर खुद मुख्यमंत्री बन जाना गलत है. जनता ने आपको नकार दिया था तो आपको विपक्ष में बैठना चाहिए था. न कि कुछ सौदेबाजों के साथ सरकार बनानी थी.



• ज्योतिरादित्य सिंधिया का जनभावना के खिलाफ जाना

2018 के विधानसभा चुनावों में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी और शिवराज सिंह के के खिलाफ जमकर प्रचार किया था. शिवराज सिंह को पनौती व हत्यारा तक कहा था. वो राज्य की जनता को समझाने में सफल भी रहे थे और जनता ने उनपर भरोसा भी किया था. लेकिन कुछ समय के बाद ही वो उस व्यक्ति के साथ मिल बैठे जाकर, जिसको उन्होंने ही हत्यारा बताया था. ग्वालियर के एक वोटर से बात करते हुए, उसने हमें बताया कि हम शिवराज सिंह की सरकार से परेशान आ चुके थे. इसीलिए हमने कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाई. हमने जो उम्मीदें सरकार से की थीं. वो उम्मीदें पूरी भी हो रही थीं. लेकिन सिंधिया जी ने हमारी भावनाओं और भरोसे को धोखा देते हुए बीजेपी के साथ मिल गए. वो सवालिया लिहाज में कहते हैं कि “क्या आपसे मिलने के बाद शिवराज सिंह हत्यारे नहीं रहे?” आपने ही हमें बताया था कि शिवराज सिंह ने प्रदेश को अँधेरे में ढकेला है. तो क्या वो अब नहीं ढकेलेंगे, जो आप जाकर उनसे मिल गये.  

• कमलनाथ की किसान हितैषी छवि होना

पंद्रह सालों तक राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. शिवराज सरकार के तमाम ऐसे फैसले थे, जो किसनों को नागवार गुजरे. एक रिपोर्ट के अनुसार इन 15 सालों में हजारों किसानों ने आत्महत्याएं कीं, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नही किया गया. शिवराज सरकार की किसान विरोधी छवि बन चुकी थी. मंदसौर गोलीकांड ने आग में घी का काम किया. चुनावों में जनता ने अपना गुस्सा निकाला और नतीजे में शिवराज सिंह और बीजेपी चुनाव हार गयी. कमलनाथ मुख्यमंत्री बने. सरकार बनते ही कमलनाथ ने किसनों के हित में फैसले लेना शुरू कर दिए. फिर चाहे वो किसानों का कर्जा माफ़ी हो या फिर फसलों के खरीद मूल्यों में बढ़ोत्तरी हो. किसानों को जो अपनी जान गंवाकर और धरने प्रदर्शन करने से नही मिल रहा था, वो कमलनाथ ने बिना किसी धरने प्रदर्शन के का दिया. किसानों के लिए गये तमाम फैसलों से कमलनाथ की किसनों में अच्छी छवि बन गयी.

• बीजेपी की अंतर्कलह

कमलनाथ की सरकार को सिंधिया से सौदेबाजी करके बीजेपी ने सरकार तो बना ली. लेकिन इसी के साथ-साथ पार्टी के पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं के गुस्से को बढ़ा दिया. बीजेपी सिंधिया और उनके विधायकों को खुश करने के चक्कर में अपने पुराने वफादार नेताओं और कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर दी. ज्शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया खेमे के विधायकों को मंत्री बनाया गया, और अपने पुराने नेताओं की छुट्टी कर दी गयी. जिस वजह से पार्टी के तमाम नेता और कार्यकर्त्ता पार्टी आलाकमान से नाराज बताये जा रहे हैं. बीजेपी में कांग्रेस से अब तक 25 विधायक आ चुके हैं. सब अक ही शर्त पर आये हैं कि आने वाले उपचुनावों में बीजेपी उन्हें टिकट देकर फिर से विधायक बनाये. जाहिर है जब बीजेपी इनको अपनी पार्टी से लड़ाएगी तो अपनी पार्टी के पुराने नेताओं को टिकट नहीं देगी. इस वजह से पार्टी में अभी से ही अंतर्कलह सामने आ रही है. बीजेपी के अक पुराने कार्यकर्त्ता ने बताया कि, जिन कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ हमने और पार्टी ने पिछले चुनावों में प्रचार-प्रसार किया था, अब उन्हीं के लिए हम काम करेंगे. क्या यह हमारी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ नहीं होगा. पिछले कई सालों से पार्टी के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं और फल कोई कांग्रेस का कार्यकर्त्ता का खायेगा. इससे पार्टी आलाकमान अपने कार्यकर्ताओं को नाराज कर रहा है. जिसका परिणाम आने वाले उपचुनावों में पार्टी को उठाना पड़ेगा.

• सोशल मीडिया पर कमलनाथ के रुख में हवा  

आज का जमाना इन्टरनेट का जमाना है. हर युवा आपको सोशल मीडिया पर मिलेगा. इससे राजनैतिक पार्टियों को अपने प्रचार-प्रसार का एक और जरिया मिल गया. अब अगर राज्य में होने वाले उपचुनावों को लेकर हम देखें तो यहाँ कमलनाथ बाजी मारते हुए नजर आ रहे हैं. पिछले 3 महीनों में कई ऐसे मौके आये जब सोशल मीडिया पर कमलनाथ के रुख में हवा चली. चाहे वो ट्विटर पर “शिवराज पनौती” ट्रेंड होना रहा हो. या फिर सोशल मीडिया पर तमाम वायरल होती कमलनाथ की विडियो. सोशल मीडिया अब एक बड़े वर्ग को प्रभावित करती है. और सोशल मीडिया को देक्क्कर बड़ी आसानी से समझा जा सकता है कि कहीं न कहीं राज्य में कलनाथ सरकार से फिर से वापसी होने वाली है.

इसके अलावा तमाम ऐसे पहलू हैं, जिन्हें देककर बड़ी आसानी से कमलनाथ की वापसी का दावा किया जा सकता है. फिर चाहे वो नरोत्तम मिश्रा का शिवराज सिंह से नाराज होना हो. या फिर जनता का अपने आप को ठगा हुआ महसूस करना हो. जनता में इस बात का भरी रोष है कि हमने कांग्रेस पार्टी को जिताया था. लेकिन शिवराज ने सिंधिया से सौदेबाजी करके सरकार बना ली. जनता का मानना है कि अगर हमे शिवराज को ही मुख्यमंत्री बनाना था तो उन्हें चुनाव में हराते ही क्यों? लोकतंत्र में चुनाव जनता का भरोसा जीतने के लिए ही होते हैं. और इस सरकार में जनता का भरोसा रत्ती भर नहीं है. शिवराज सिंह की यह सरकार भरोसे नहीं बल्कि धोके पर टिकी हुई है.

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