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कारगिल विजय दिवस : कालू प्रसाद पांडे तिरंगे में लिपट कर अपने गांव और देश का नाम रौशन कर गए

देश के लिए कुछ करने जाने वाले व्यक्ति इतिहास में अपना नाम दर्ज करा जाते हैं. देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा लेकर रीवा जिले के अंदवा गांव के कालू प्रसाद पांडे वर्ष 1981 में भारतीय सेना में तैनात हुए थे. अपने सर्विस काल में तमाम जगहों पर पोस्टिंग के बाद 1999 में उनकी आखिरी पोस्टिंग सीमा पर हुई और बस उसी दौरान भारत-पाकिस्तानी के बीच करगिल युद्ध छिड़ गया.

टाइगर हिल पर कब्जे के लिए दोनों देशों की सेनाओं के बीच 5 दिन तक ज़बरदस्त लड़ाई छिड़ी. भारतीय सेना के वीर जवानों ने टाइगर हिल को जीत लिया और वहां शान से तिरंगा फहरा दिया. लेकिन इसके लिए देश ने बड़ी कुर्बानी दी. जो जवान तिरंगे की शान में शहीद हुए उनमें रीवा के कालू प्रसाद पांडे भी एक थे. 27 जून 1999 को वह देश के लिए शहीद हो गए.

बचपन से ही थी सेना में शामिल होने की इच्छा

शहीद नायक कालू प्रसाद पांडे का जन्म रीवा जिले के जवा तहसील क्षेत्र अंतर्गत अंदवा गांव में 1 अगस्त 1963 को हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा गांव से हासिल की और फिर सेना में जाने की तमन्ना उनमें जागी. दिन रात मेहनत की. 1981 में उनका सपना साकार हुआ, जब उनका चयन सेना के लिए हो गया. वो सेना में नायक के पद पर रहे. करगिल युद्ध के दौरान तोप चलाने का कार्य सौंपा गया.

परिवार वाले बताते हैं कि कालू प्रसाद बचपन से अचूकनिशाने बाज थे. करगिल युद्ध में उन्होंने अपने काम को बखूबी निभाते हुए दुश्मन की सेना के छक्के भी छुड़ाए. अंततः 27 जून 1999 को दुश्मनी सेना से लोहा लेते हुए वह जिंदगी की जंग हार गए. लेकिन तिरंगे में लिपट कर अपने गांव और देश का नाम रौशन कर गए.

भारत सरकार ने मरणोपरांत उन्हें सेना मेडल से नवाजा

रिवार के लोग वो दिन याद करके आज भी भावुक हो जाते हैं जब उनके शहीद होने का संदेश आया था. वो याद करते हैं कि 1 जुलाई 1999 का दिन था, जब सेना की ओर से घर में संदेश आया कि करगिल युद्ध में कालू प्रसाद पांडे शहीद हो गए हैं. जवान और जांबाज बेटे के जाने का गम तो परिवार को है लेकिन गर्व है कि वो देश के लिए कुर्बान हुए. बाद में भारत सरकार ने मरणोपरांत उन्हें सेना मेडल से नवाजा.

परिवार के सदस्य बताते हैं कि कालू प्रसाद करगिल युद्ध से 3 माह पहले ही छुट्टी पर गांव आए थे. वो सेना के अपने काम और अनुभव के बारे में बड़े गर्व से सबको बताते थे. छुट्टी से वापस ड्यूटी पर लौटते हुए उन्होंने मां पिता का आशीर्वाद लेते हुए गांव की मिट्टी को नमन किया था और कहा था देश का नाम रौशन करूंगा.

हुआ भी ऐसा ही 3 माह बाद ही वो देश के लिए शहीद हो गए और इस गांव की मिट्टी को हमेशा के लिए अमर कर गए. जब कालू प्रसाद शहीद हुए उस वक्त घर में माता-पिता भाई-बहन के भरे पूरे परिवार के साथ उनकी पत्नी, 5 साल का बेटा और करीब तीन साल की बेटी थी. सरकार ने शहीद के परिवार को पेट्रोल पंप दिया और अब वही इस परिवार की आजीविका है.