Corona VirusMadhya Pradesh

कोरोना वायरस के खिलाफ एक मजबूत योद्धा है एंटीबॉडी

कोरोना वायरस ने पिछले दो सालों से दुनियाभर के कई देशों में में तबाही मचा रखी है. दुनियाभर में इससे अब तक करोड़ों लोग संक्रमित हो चुके हैं और लाखों लोग इससे अपनी जान गंवा चुके हैं. शुरुआत में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए ज्यादा तरीके नहीं थे. हालांकि अब इसके कई तरीके इजाद हो चुके हैं. जैसे – रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन, ट्रूनाट टेस्ट, कार्ट्रिज बेस्ड न्यूक्लिक एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्ट और रैपिड एंटीजन टेस्ट से कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की पहचान की जा रही है. वहीं रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट का इस्तेमाल यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि कितने लोग SARS-CoV-2 वायरस (जोकि कोरोना वायरस का शुरुआती वायरस थे) से संक्रमित हुए और ठीक हो चुके हैं. लेकिन ऐसे में ये जानना भी बेहद आवश्यक हो जाता है कि एंटीबॉडी हैं क्या? यह किस तरह से कोविड-19 वायरस से लड़ने में मदद करते हैं.

क्या है एंटीबॉडी

अब प्रश्न उठता है कि एंटीबॉडी क्या है? एंटीबॉडी मानव शरीर का वह जरुरी तत्व है, जिसका निर्माण हमारे शरीर के अंदर होता है. एंटीबॉडी की मदद से हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम शरीर में मौजूद वायरस को खत्म करता है. कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद एंटीबॉडी बनने में कई बार सात दिनों तक का वक्त लग सकता है. इसलिए अगर सात दिनों से पहले रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किया जाए तो एंटीबॉडी की सही जानकारी नहीं मिल पाती है. एंटीबॉडी दो प्रकार के होते हैं. पहला एंटीबॉडी हैं – आईजीएम (इम्यूनोग्लोबुलिन एम) और आईजीजी (इम्यूनोग्लोबुलिन जी).

दोनों एंटीबॉडी में क्या है अंतर

आईजीएम एंटीबॉडी: आईजीएम एंटीबॉडी किसी भी संक्रमण के लिए शरीर की प्रारंभिक प्रतिक्रिया होती है. यह किसी भी तरह के संक्रमण के होने पर उसके प्रारंभिक चरण में विकसित होते हैं. आमतौर पर, कोविड-19 संक्रमण के मामले में, आईजीएम वायरस से पीड़ित व्यक्ति पहले हफ्ते में पॉजिटीव होते हैं और छह सप्ताह के भीतर ठीक हो जाते हैं. आईजीएम एंटीबॉडी की मदद से पता चलता है कि संक्रमित व्यक्ति का इम्यून फेज में शुरू हो चुका है.

आईजीजी एंटीबॉडी: आईजीजी एंटीबॉडी में किसी भी संक्रमण का देर से पता चलता है. यह एंटीबॉडी व्यक्ति में संक्रमित होने के कुछ दिनों बाद उत्पन्न होती हैं. आईजीजी एंटीबॉडी संक्र्मुत शरीर में एक लंबे समय तक सक्रिय रहती हैं,

कोरोनावायरस में क्यों जरुरी हैं एंटीबॉडी

जब कोई इंसान कोरोनावायरस से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं. यही एंटीबॉडी कोरोना वायरस से लड़ते हैं. माना जाता है कि कोरोना वायरस से ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आमतौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनते हैं. एक अनुमान के अनुसार मरीज के ठीक होने के दो हफ्ते के अंदर ही एंटीबॉडी बन जाता है. हालांकि कई केसों में कुछ मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद महीनों तक भी एंटीबॉडी नहीं बनता है. कोरोना से ठीक हुए जिन मरीजों के शरीर में एंटीबॉडी काफी वक्त बाद बनते हैं उनके प्लाज्मा की गुणवत्ता कम होती है, इसलिए आमतौर पर उनके प्लाज्मा का उपयोग कम ही किया जाता है. लेकिन जिनके शरीर में ठीक होने के दो सप्ताह के भीतर ही एंटीबॉडी बन जाती है वो फिर सालों तक रहती है. ये लोग वो होते हैं जिनकी इम्यूनिटी मजबूत होती है.

%d