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सचिन पायलट को पार्टी से क्यों नहीं निकाला गया!

नई दिल्ली। राजस्थान में जारी सियासी उठापटक के बीच कांग्रेस ने बगावत करने वाले वरिष्ठ नेता सचिन पायलट के खिलाफ कार्रवाई करते हुए कांग्रेस ने उप मुख्यमंत्री समेत पार्टी के समेत सभी पदों से हटा दिया। इसके साथ-साथ उनका समर्थन करने वाले दो मंत्रियों को भी सरकार से बाहर का रास्ता दिखा गया। लेकिन इसके बाद भी पायलट को और  उनके समर्थकों को पार्टी से बाहर किया गया है।
माना जा रहा है कि सचिन पायलट को 17 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, जिसमें खुद और तीन निर्दलीय शामिल हैं। इसका मतलब यह होगा कि अगर 17 विधायकों को निष्कासित किया जाता है तो संसद के नियमों के तहत वे एक अलग मोर्चा भी बना सकते हैं और यहां तक कि भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं। इसके साथ-साथ विधानसभा में विश्वास मत के दौरान सरकार के खिलाफ वोट करने का भी उन्हें अधिकार होगा।


लेकिन अगर पार्टी उन्हें विश्वास मत से पहले डिस्क्वालिफाई करती है तो इससे बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा। जो वर्तमान में 101 है। वहीं, अगर 17 बागी विधायकों को दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराया जाता है, तो बहुमत का आंकड़ा 92 तक पहुंच जाएगा। अकेले कांग्रेस के पास कम से कम 90 विधायक होने की उम्मीद है और दो सीपीएम विधायकों के समर्थन से गहलोत विश्वास मत जीत सकते हैं।


इस स्थिति में उन्हें 10 निर्दलीय विधायकों में से किसी एक या भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायकों के समर्थन की भी जरूरत नहीं होगी, जिसने कांग्रेस से समर्थन वापस ले लिया है। कांग्रेस ने पहले ही पायलट और विधायकों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है, साथ ही यह भी कहा है कि अब भी बातचीत के लिए ‘दरवाजे खुले हैं.’ पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों को दलबदल विरोधी कानून के तहत स्पीकर द्वारा अयोग्य ठहराया जा सकता है।


नियमों के तहत, विधायक दल के नेता को अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करने के लिए अध्यक्ष के पास शिकायत दर्ज करनी होती है। विधायकों को नोटिस जारी किया जाता है, जिन्हें अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने के लिए समय दिया जाता है। अंतिम निर्णय अध्यक्ष का होता है। हालांकि यह विकल्प अभी के लिए अशोक गहलोत सरकार को बचा सकता है, लेकिन सरकार के पास जो आंकड़ा रहेगा वह बहुमत के बेहद करीब रहेगा और आने वाले समय में इससे दिक्कत हो चुकी है।