कहां किया था माता सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान?
पितृों का श्राद्ध करना हमारे हिंदू धर्म में कितना जरूरी माना जाता है. ऐसी मान्यता भी है कि अगर किसी मृत व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए, तो उसे इस लोक से मुक्ति कभी नहीं मिल पाती है, इसलिए पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्धपक्ष ज़रूर मनाया जाता है.
मुक्तिधाम मंदिर कहां है
क्या आप जानते हैं कि पितृों के तर्पण के लिए प्रसिद्ध ‘मुक्तिधाम’ मंदिर गया में स्थित है और यह वही खास जगह है जहां पर माता सीता ने भगवान श्रीराम के पिता और अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था.
गया में पिंडदान की क्या है मान्यता
बता दें कि पूरे विश्व में बिहार के गया को मुक्तिधाम के रूप में जाना जाता है और ऐसी मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से आपके सभी पितरों की आत्मा को मुक्ति आसानी से मिल जाती है. यही नहीं, गरूड़ पुराण सहित कई हिंदू ग्रथों में बिहार स्थित गया धाम का जिक्र किया गया है. कहते हैं कि गया में बस श्राद्ध कर देने से ही आत्मा को विष्णुलोक की प्राप्ति हो जाती है.
गया में माता सीता ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह उस समय की बात है जब वनवास काल के दौरान भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने बिहार स्थित गया धाम पहुंचें थे. पिंडदान के लिए राम और लक्ष्मण कुछ जरूरी सामान लेने चले जाते हैं और माता सीता वहीं उनका इंतजार कर रही होती हैं. काफी समय बीत जाता है और दोनों भाईयों के वापस आने के कोई संकेत नहीं मिल पाते हैं. ऐसे में तभी अचानक से राजा दशरथ की आत्मा माता सीता के पास आकर पिंडदान की मांग करने लग जाती है.
भगवान ने माता सीता से पिंडदान का मांगा प्रमाण
राजा दशरथ की मांग करने पर माता सीता फल्गू नदी के किनारे ही बैठकर वहां लगे केतकी के फूलों और गाय को साक्षी मानकर बालू के पिंड बनाकर उनका पिंडदान कर देती हैं. वहीं, कुछ समय बाद जब भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर लौटते हैं तब माता सीता उन्हें बताती है कि वह महाराज दशरथ का पिंडदान कर चुकी हैं… ऐसे में भगवान श्रीराम बिना पूरी साम्रगी के पिंडदान को मानने से इंकार कर देते हैं और माता सीता से इसका प्रमाण देने को कहते हैं.
केतकी के फूल, गाय और बालू मिट्टी ने माता सीता को झूठलाया
चौंका देने वाली बात यह हुई कि जब भगवान श्री राम ने माता सीता से गवाही देने के लिए कहा तो वहां मौजूद वटवृक्ष के अलावा केतकी के फूल, गाय और बालू मिट्टी किसी ने भी सीताजी के पक्ष में कोई गवाही नहीं दी. फिर क्या सीताजी ने महाराज दशरथ की आत्मा का ध्यान कर उन्हीं से गवाही देने की प्रार्थना की. माता सीता के आग्रह करने पर खुद महाराज दशरथ की आत्मा प्रकट हुई और उन्होंने कहा कि सीता ने उनका पिंडदान कर दिया है. बस अपने पिता की गवाही पाकर भगवान राम आश्वस्त हो गए. दूसरी ओर फल्गू नदी और केतकी के फूलों के झूठ बोलने पर क्रोधित माता सीता ने फल्गू नदी को सूख जाने का श्राप दे डाला.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि माता सीता के इसी श्राप के कारण आज भी फल्गू नदी का पानी सूखा हुआ है और केवल बारिश के दिनों में ही इसमें कुछ पानी नज़र आता हैं. फल्गू नदी के दूसरे तट पर मौजूद सीताकुंड का पानी हमेशा सूखा ही रहता है और आज भी यहां बालू मिट्टी या रेत से ही पिंडदान करने की परंपरा जारी है.