Madhya Pradesh

16 साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खुद जहाँ बाढ़ में फसें थे, तब समस्या का समाधान की बात कही थी, लेकिन गांव वाले आज भी समाधान का इन्तजार कर रहे हैं

पिछले 16 सालों से राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. जो पुरे राज्य में विकास के दम भरते हुए नहीं थकती. लेकिन राज्य के ही एक गुना जिले में एक गांव है सोडा. यहाँ से ज्योतिरादित्य सिंधिया कई वर्षों से सांसद रहे. केंद्र में मंत्री रहे. राज्य सरकार में भी यहाँ से विधायक मंत्री रह चुके हैं. लेकिन अभी तक इस गांव में एक सड़क नहीं है. गांव में लगभग 700 लोग रहते हैं. वो वोट भी देते हैं. प्रत्याशी चुनाव के वक्त वाडे भी करते हैं. लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद कोई आता तक नहीं. आलम यह है कि आजादी के 73 साल बाद भी यहां सड़क नहीं है.


पार्वती नदी से चारों ओर घिरे इस गांव के लोगों को सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला. गर्भवती महिलाओं को हॉस्पिटल लाना पहाड़ चढ़ने जैसा है. मध्य प्रदेश के गांव के ये लोग पूरी तरह राजस्थान पर निर्भर हैं. बारिश के दिनों में प्रशासन इनकी मदद करने के बजाए गांव खाली करने का नोटिस देता है. अब जाकर प्रशासन का कहना है कि इस गांव की मदद की जाएगी.

16 साल पहले सीएम ने कही थी विकास की बात

गौरतलब है कि बमौरी में बसे इस सोडा गांव में साल 2005 में बाढ़ आई थी. इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद भी यहां फंस गए थे. उस दौरान यहां फंसे लोगों को सेना के हेलीकॉप्टर से लिफ्ट कराया गया था. इस बाढ़ में गांव के कुछ लोग बह गए थे. उस समय सीएम शिवराज सिंह चौहान ने गांव वालों को दूसरी जगह बसाने की घोषणा जरूर की थी, लेकिन सोलह साल गुजरने के बाद भी घोषणा अधर में लटकी हुई है.

सोडा वासी उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जब उनका पुर्नस्थापन किसी दूसरे स्थान पर होगा.  ताकि, इनको बमौरी विधानसभा क्षेत्र की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके और सरकार की योजनाओं का लाभ मिल सके. कुछ दिनों बाद बारिश में इस गांव का रास्ता पूरी तरह बंद हो जाएगा. यहां रहने वालों को दूसरी जगह जाने का नोटिस मिल जाएगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर



ये हाल है सोडा गांव का

बमौरी विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत पाठी के तहत सोडा गांव आता है. इसकी आबादी करीब 700 लोगों की है. यहां मतदाताओं की संख्या 300 के करीब है. इस गांव के आसपास नदी के अलावा छह-सात बड़े नाले हैं. इस गांव के लोगों का दर्द ये है कि उनको अभी तक शासन की किसी योजना का लाभ नहीं मिला.

महिलाओं का कहना है कि प्रसव या इलाज के लिए सीमा पार राजस्थान के छबड़ा जाना पड़ता है. गुना जिले की सीमा में होने के बाद भी सोडा गांव की महिलाओं के लिए जिला अस्पताल में इलाज कराना पहाड़ चढ़ने जैसा है. महिलाओं का कहना है कि सरकार प्रसव के लिए 1400 रुपए देती है, लेकिन उन्हें आज तक एक भी रुपया नहीं मिला. यहां महिलाओं को जननी एक्सप्रेस का लाभ भी नहीं मिला.

प्रतीकात्मक तस्वीर


मध्य प्रदेश में रहने के बावजूद राजस्थान पर निर्भर

आज जहां हम डिजीटल इंडिया की बात करते हैं, वहीं आजादी के 73 वर्ष बाद भी सोडा गांव में सड़क नहीं पहुंच पाई है. आने-जाने के लिए लोगों के पास कोई साधन नहीं है. हालांकि, ये लोग राजस्थाना आसानी से जा सकते हैं. वहां जाने के लिए बनियारी की ओर अच्छी रोड बनी हुई है. गांव वालों को पांच-छह किलोमीटर दूर राजस्थान का छत्री खिरिया छबड़ा नजदीक पड़ता है. ये लोग यहीं खरीददारी और इलाज कराने जाते हैं.

मध्य प्रदेश में आने के लिए इन्हें ट्यूब पर बैठकर नदी पार करनी होती है. तब जाकर ये लोग राशन लेने के लिए हमीरपुर आते हैं. बच्चों की शिक्षा के लिए यहां एक शासकीय प्राइमरी स्कूल है. इसके बाद की पढ़ाई के लिए बच्चे राजस्थान के छबड़ा ही जाने हैं. प्रशासन का इस मामले में कहना है कि नदी-नाले को पाटकर सड़क बनाने में जितना पैसा खर्च होगा उतने में दो गांव बस सकते हैं.

प्रशासन सिर्फ गांव खाली करने का नोटिस देकर चला जाता है

यहां रहने वालों ने बताया कि अभी तो यहां कम बारिश हुई है. हर बार बारिश के मौसम में प्रशासन की ओर से गांव खाली कर सुरक्षित स्थान पर जाने का नोटिस मिलता है. लोगों का कहना है कि जब ये नोटस मिलता है तो हमें लगता है कि कहां जाएं. बारिश के मौसम में चार माह तो हमारी जान हमेशा खतरे में ही बनी रहती है. उनका कहना था कि हमें या तो हमीरपुर में बसा दिया जाए या राजस्थान के छबड़ा जिले के बनियारी गांव में.

बारिश में राजस्थान बनता है सहारा


सोडा गांव में रहने वालों ने बताया कि बारिश में कई बार लोग ज्यादा पानी के बहाव में बह गए. यहां समस्या की वजह से कुछ लोग राजस्थान के इलाकों में जाकर बस जाते हैं. बारिश खत्म होते ही यह लोग अपने गांव आ जाते हैं. यहां किसी के पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत न कुटीर है और न ही शासकीय शौचालय. यहां कच्चे मकान बने हैं, जो बारिश में बह जाते हैं. इन मकानों को बारिश के बाद फिर से बनाया जाता है. इस संबंध में जब सोडा गांव के सचिव छीतरमल नागर से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि यह गांव टापू पर बसा हुआ है. बारिश के समय नदी-नाले उफन आते हैं. गांव तक जाने के लिए पैदल ही एक मात्र रास्ता है. बीते वर्ष उपचुनाव के समय मतदान के लिए अस्थाई रास्ता बनाकर मतदान दल को वहां पहुंचाया गया था. टापू पर बसे होने के बाद भी उनको सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं.



ये कहना है कलेक्टर का

इस पूरे मामले पर गुना कलेक्टर फ्रैंक नोबल ए ने कहा कि गांव के बारे में मुझे जानकारी मिली है. इस गांव के लोगों को सभी सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाएगा. पुल-पुलिया की परेशानी को दूर कर लिया जाएगा. गांव वालों को परेशानी नहीं होगी. वहां के लिए मास्टर प्लान भी तैयार किया जा रहा है.