तीन कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया, सरकार को लगायी फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के बनाए तीनों कृषि कानूनों के अमल पर फिलहाल रोक लगा दी है। साथ ही अदालत ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसान संगठनों की आपत्तियों को समझने और ज़मीनी हालात का जायजा लेने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी भी बना दी है।
चार सदस्यों वाली इस समिति के सदस्यों के नाम भी सुप्रीम कोर्ट ने घोषित कर दिए हैं। ये नाम हैं 1. भूपिदर सिंह मान, अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन, 2.डॉ प्रमोद कुमार जोशी, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, 3. अशोक गुलाटी, कृषि अर्थशास्त्री, 4. अनिल धनवत, शिवकेरी संघटना, महाराष्ट्र।
किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी शामिल
सरकार इससे पहले कृषि कानूनों के मसले पर हो रही सुनवाई के दौरान आज सरकार ने कहा कि किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी तत्वों की घुसपैठ हो चुकी है। सरकार ने कहा कि 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस के कारण कड़े सुरक्षा बंदोबस्त होते हैं जिसके चलते उन्हें राजधानी में घुसने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। भारत सरकार की तरफ से यह बात अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कही। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या वे किसान आंदोलन में खालिस्तानी तत्वों के शामिल होने की पुष्टि करते हैं? अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हां वे इसकी पुष्टि करते हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने एटॉर्नी जनरल से इस बारे में हलफनामा दायर करने को कहा है। एटॉर्नी जनरल ने कहा कि वे कल हलफनामा और आईबी की रिपोर्ट दोनों कोर्ट में पेश कर देंगे।
चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि दिल्ली में सुरक्षा की दृष्टि से किसे आने देना है और किसे नहीं यह देखना सरकार का अधिकार है। यह देखना कि किसी के पास हथियार तो नहीं हैं, आपका काम है। प्रदर्शन की इजाजत दिल्ली पुलिस को देनी है। इस मामले में हम कोई दखल नहीं देंगे।
इससे पहले आज की सुनवाई शुरू होने पर सुप्रीम कोर्ट में किसान संगठनों के वकीलों ने कहा कि आंदोलनकारी किसान सिर्फ कानून की वापसी चाहते हैं। वे कानूनों पर अमल को फौरी तौर पर रोकने या एक्सपर्ट कमेटी बनाने के सुझाव से सहमत नहीं हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कानून पर रोक लगाने का आदेश यूं ही नहीं दे सकते। कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है और हम अपने अधिकारों के दायरे में ही काम कर सकते हैं।
सुनवाई की ताज़ा अप़डेट
चीफ जस्टिस ने कहा है कि अगर किसी को दिल्ली में रैली या विरोध प्रदर्शन करना है तो उसे दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को एप्लीकेशन देना चाहिए। पुलिस उन्हें प्रदर्शन के लिए लागू ज़रूरी शर्तें बताएगी। रैली के लिए उन शर्तों का पालन करना होगा, वरना उसे रद्द कर दिया जाएगा। सवाल ये है कि क्या किसी ने प्रदर्शन के लिए एप्लीकेशन दिया है।
चीफ जस्टिस ने रैली के लिए पुलिस की इजाजत लिए जाने का जिक्र उस वक्त किया जब वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने किसानों के विरोध प्रदर्शन के अधिकार का मुद्दा उठाया। विकास सिंह ने कहा कि उन्हें दिल्ली में घुसने से रोका जा रहा है। किसानों को रामलीला मैदान में शांतिपूर्ण प्रदर्शन की इजाजत क्यों नहीं दी जा रही, जहां आज़ादी के बाद से ही प्रदर्शन होते आ रहे हैं? या फिर बोट क्लब पर भी प्रदर्शन की इजाजत दी जा सकती है। अगर उन्हें किसी ऐसी जगह पर जाकर प्रदर्शन के लिए कहा जाएगा, जहां वो किसी को नज़र ही न आए तो प्रदर्शन का मतलब ही क्या रह जाएगा।
इसी के बाद चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या किसान संगठनों ने प्रदर्शन की इजाजत देने के लिए दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के पास कोई एप्लीकेशन दिया है। इस पर विकास सिंह ने कहा कि उन्हें तो दिल्ली में आने ही नहीं दिया जा रहा। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि फिर भी वे पुलिस कमिश्नर के पास एप्लीकेशन तो दे ही सकते हैं।
सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि कोर्ट को कोई भी आदेश पारित करते समय यह बात साफ कर देनी चाहिए कि इसे किसी की हार या जीत न माना जाए। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारा आदेश ईमानदारी से किए गए इंसाफ की जीत होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसानों को नए कानून की वजह से अपनी जमीनें बिक जाने का डर है तो हम यह अंतरिम आदेश पारित कर सकते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग यानी ठेके की खेती के तहत किसानों की ज़मीने बेची नहीं जा सकेंगी।
सोमवार की सुनवाई में क्या-क्या हुआ
इसके पहले सोमवार की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी कई अहम बातें कहीं हैं, जिनका किसान आंदोलन और कृषि कानूनों के भविष्य पर गहरा असर पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सबसे बड़ी बात ये कही है कि केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानूनों को होल्ड कर देना चाहिए। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर कानून को होल्ड पर रख दिया गया तो बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनेगा। इसके साथ ही अदालत ने एक्सपर्ट पैनल बनाकर समस्या के समाधान की तैयारी भी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस रामासुब्रमण्यम की बेंच ने की।
सरकार को कड़ी फटकार
अदालत ने सोमवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान सरकार के रवैये पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि सरकार किसानों के भारी विरोध को देखते हुए इन कानूनों को होल्ड क्यों नहीं कर रही? कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार कानूनों को होल्ड नहीं करती तो यह कदम उसे उठाना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने इस मामले को जिस तरह से संभाला, उससे अदालत को निराशा हुई है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कानून पर रोक लगाने के प्रस्ताव का विरोध किया।