पीरियड्स से जुड़ी अजीब परंपराएं: कहीं पीते हैं खून तो कहीं………
महिलाओं के पीरियड्स को लेकर समाज में कई तरह की धारणाएं हैं. मगर आम तौर पर इस विषय पर लोग खुलकर चर्चा करने से बचते हैं. महिलाओं पर इसके अलावा कई तरह की बंदिशें भी लगा दी जाती हैं. लड़कियों के कई जगह मंदिर जाने से लेकर उनके पूजा पाठ में शामिल होने तक की मनाही होती है. वहीं, महिलाओं के पीरियड्स से जुड़े कुछ रीति-रिवाज भी हैं, जिनके बारे में सुनकर आप चौंक उठेंगे. सबसे पहले बात कर्नाटक की करते हैं. यहां एक प्रथा के मुताबिक, जब पहली बार किसी लड़की की माहवारी शुरू होती है तो उसे दुल्हन की तरह तैयार किया जाता है. इतना ही नहीं, आसपास की महिलाएं उस लड़की की आरती भी उतारती हैं. दक्षिण के राज्य आंध्र प्रदेश और केरल में भी ऐसी प्रथा आम है. दक्षिण भारत में प्रचलित एक अन्य प्रथा के अनुसार पहली बार उम्र के इस पड़ाव में आने वाली लड़कियां अपने साथ नींबू या फिर लोहा साथ में रखती हैं, ताकि बुरी ताकतें उनके करीब न आएं.
माहवारी का रक्त पीने से लेते हैं ऊर्जा!
जी हां, निश्चित तौर पर इसे पढ़ने के बाद आप हैरान जाएंगे. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में जब किसी लड़की को पहली बार पीरियड्स आते हैं, तो इसे त्योहार के तौर पर मनाया जाता है. यही नहीं, माहवारी के दौरान निकलने वाले रक्त को गाय के दूध और नारियल के तेल संग मिलाकर पिया जाता है. मान्यता है कि माहवारी का रक्त पीने से शरीर में नई ताकत और स्फूर्ति आती है. वहीं, यह स्मरण शक्ति बढ़ाने और खुश रखने में भी काफी उपयोगी है.
महिलाओं को पुरुषों से रखा जाता है अलग
दक्षिण भारत के अलावा नाईजरिया में कुछ कबीलाई जाति के लोगों के बीच भी ऐसी ही परंपराएं प्रचलित हैं. माहवारी के दौरान यहां महिलाओं को अलग झोपड़ी या घर में रखा जाता है. यह लोग इस दौरान महिलाओं को अशुद्ध मानते हैं। यही वजह है कि इन्हें घर से दूर रखा जाता है. उन्हें इस दौरान अपने पति से भी नहीं मिलने दिया जाता है.
महिलाओं के खाना बनाने पर प्रतिबंध
बांग्लादेश में पीरियड्स के दौरान महिलाओं को खाना बनाने की अनुमति नहीं है. ये महिलाओं दूसरे के लिए रखे खाने को भी नहीं छू सकती हैं. पीरियड्स के महीने में महिलाओं को मंदिर जाने की भी इजाजत नहीं है.
छुआ तो होता है शुद्धिकरण
बीबीसी में छपी खबर के मुताबिक, नेपाल के एक हिंदू बहुल गांव में मान्यता है कि पीरियड्स में महिला किसी को छूती है तो उसे एक धार्मिक अनुष्ठान से गुजरना पड़ता है. वहीं, बाली में जारी परंपरा के तहत माहवारी चक्र के बाद महिला को पवित्र स्नान करना होता है जिसे ‘मिकवे’ कहते हैं.