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कहानी काकोरी कांड की, जिसने हिला दी थीं अंग्रेजों की जड़ें

लखनऊ : आज ही के दिन उत्तर प्रदेश उस वक़्त के सयुंक्त प्रांत में एक लूट की घटना हुई. जिसे आजादी के मतवालों ने अंजाम दिया. इस घटना को काकोरी लूट कांड का नाम दिया गया. इस घटना के बाद अंग्रेजी हुक्मरानों की जड़ें हिल गईं थीं. शुरुआत में पुलिस के पास न कोई सबूत था और न ही कोई सुराग और गवाह.

ऐसे हुई थी लूट की प्लानिंग

चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ने अपना एक दल बना रखा था. यह दल वक़्त वक़्त पर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करता था. एक तरफ गाँधी जी अहिंसा का मार्ग अपनाकर आजादी की मांग बुलंद किए हुए थे तो वहीं ये लोग बंदूकों के सहारे अंग्रेजी सरकार की खिलाफत में लगे थे.

दल को चलाने के लिए पैसों की सख्त जरूरत थी. तभी काकोरी लूट का आइडिया इनके दिमाग़ में आया. ये बात क्रांतिकारियों के दिमाग में चल ही रही थी कि एक रोज रामप्रसाद बिस्मिल ने शाहजहांपुर से लखनऊ की ओर सफर के दौरान ध्यान दिया कि स्टेशन मास्टर पैसों का थैला गार्ड को देता है, जिसे वो ले जाकर लखनऊ के स्टेशन सुपरिन्टेंडेंट को देता है. बिस्मिल ने तय कर लिया कि इस पैसे को लूटना है. यहीं से काकोरी लूट की नींव पड़ी. क्रांतिकारी लूट के पैसों से बंदूकें, बम और हथियार खरीदना चाहते थे, जिसे वो अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल करते.

8 अगस्त को सारी प्लानिंग शाहजहांपुर में हुई. बहुत देर तक प्लानिंग के बाद अगले दिन यानी 9 अगस्त को ही ट्रेन लूटने की बात तय की गई. 9 अगस्त को बिस्मिल और अशफाक के साथ 8 और लोगों ने मिलकर ट्रेन लूट ली. सारे क्रांतिकारियों को हेड कर रहे थे रामप्रसाद बिस्मिल. बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और अशफाक के अलावा इस लूट में शामिल और लोग थे. इनमे से प्रमुख थे राजेंद्र लाहिड़ी, सचींद्र नाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंद लाल, मन्मथ नाथ गुप्त और मुरारी लाल.

एक पठान के चलते हुए गिरफ्तार

ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस कदम से भौचक्की थी. सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी कांड की जांच पड़ताल में लगा दिया. एक महीने तक CID ने सुबूत जुटाए. बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार कर लिया. 26 सितंबर 1925 को बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया. कई लोग शाहजहांपुर में पकड़े गए. अशफाक बनारस भाग निकले. जहां से वो बिहार चले गए. वहां एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे. वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश जाना चाहते थे. अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे. इसके लिए दिल्ली गए. पर उनके एक अफगान दोस्त ने अशफाक को धोखा दे दिया. अशफाक गिरफ्तार कर लिए गए.

दिल्ली के SP को दिया करारा जवाब

इन गिरफ्तारियों के बाद भी चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के हाथ न लगे. तस्द्दुक हुसैन उस वक्त दिल्ली के SP हुआ करते थे. उन्होंने अशफाक और बिस्मिल की दोस्ती को हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलकर तोड़ने की भरसक कोशिश की. अशफाक को बिस्मिल के खिलाफ भड़काकर वो उनसे सच उगलवाना चाहते थे. और चंद्रशेखर का पता भी जानना चाहते थे. पर अशफाक मुंह नहीं खोल रहे थे. ऐसे में उन्होंने एक रोज अशफाक का बिस्मिल पर विश्वास तोड़ने के लिए कहा. बिस्मिल ने सच बोल दिया है और सरकारी गवाह बन रहा है. तब अशफाक ने SP को जवाब दिया, खान साहब! पहली बात, मैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को आपसे अच्छी तरह जानता हूं. और जैसा आप कह रहे हैं, वो वैसे आदमी नहीं हैं. दूसरी बात, अगर आप सही भी हों तो भी एक हिंदू होने के नाते वो ब्रिटिशों, जिनके आप नौकर हैं, उनसे बहुत अच्छे होंगे.

केस चला और मिली फांसी

अशफाक को फैजाबाद जेल भेज दिया गया. उन पर काकोरी का मेन कांस्पिरेटर होने का केस था. उनके भाई ने एक बहुत बड़े वकील को केस लड़ने के लिए लगाया. पर केस का फैसला अशफाक के खिलाफ ही रहा. और उनकी जान नहीं बचाई जा सकी. काकोरी षड्यंत्र में अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रौशन सिंह को फांसी की सजा हुई. दूसरे 16 लोगों को चार साल कैद से लेकर उम्रकैद तक की सजा हुई.