शिवराज सरकार का बांटा आनाज, केंद्र ने कहा- इसे बकरी, घोड़े और मुर्गों को खिलाइये, इंसानों को नहीं’
भोपाल: मध्य प्रदेश सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान राशन में अनाज बांटा. खबरें बनीं. सुर्खियां सजीं लेकिन इस अनाज की गुणवत्ता पर कोई बात नहीं हुई. मध्य प्रदेश में जो अनाज बांटे गए वो बकरी, घोड़े, भेड़ और मुर्गियों वगैरह के लिए उपयुक्त थे, इंसानों के लिए नहीं. यह हम नहीं कह रहे, केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा है.
क्या है मामला?
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने 30 जुलाई से 2 अगस्त, 2020 के बीच सैंपल इकट्ठे किए थे. ये सैंपल आदिवासी जिले बालाघाट और मंडला में 31 गोदामों और एक राशन की दुकान से लिए गए थे. चावल के इन 32 नमूनों को जांच के लिए NABL से मान्यता प्राप्त लैब में टेस्टिंग के लिए भेजा गया. उसके बाद, 21 अगस्त को मंत्रालय ने मध्य प्रदेश सरकार को एक रिपोर्ट भेजी. रिपोर्ट में लिखा है,
हमने अनाजों का NABL से मान्यता प्राप्त लैब में परीक्षण के बाद पाया गया कि सारे नमूने ना सिर्फ मानकों से खराब हैं, बल्कि वो फीड-1 की श्रेणी में हैं, जो बकरी, घोड़े, भेड़ और मुर्गे आदि के काम आते हैं.
मध्य प्रदेश में नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बिसाहूलाल साहू को इस खत के बारे में जानकारी तक नहीं है. इस मामले पर उनका कहना है,
अभी मुझे इस तरह के किसी भी पत्र की जानकारी नहीं है, लेकिन अगर कोई ऐसा मामला है तो हम गलत अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे.
वहीं कांग्रेस इस पूरे मामले पर शिवराज सिंह चौहान सरकार को घेर रही है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी सिर्फ प्रचार में रुचि रखती है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मध्य प्रदेश की कुल आबादी का 75 फीसदी हिस्सा खाद्यान्न सुरक्षा के दायरे में आता है. साल 2011 की जनगणना की रिपोर्ट के मुताबिक एक करोड़ 17 लाख परिवारों को, यानी लगभग पांच करोड़ छह लाख से ज्यादा लोगों को, एक रुपये किलोग्राम के हिसाब से गेहूं और चावल दिया जा रहा था. ऐसे में अनाज की गुणवत्ता पर इस तरह की रिपोर्ट चिंताजनक है.
फिलहाल केन्द्र ने अपनी रिपोर्ट में शिवराज सरकार से कहा है कि जो अनाज डिपो में मौजूद है, उसके वर्गीकरण और जांच पूरी होने तक उसको बांटा ना जाए, साथ ही जल्द कार्रवाई रिपोर्ट भी सौंपी जाए.