धांधली का खेल: PEB धांधली मामले में शिवराज सरकार की मुश्किलें और बड़ी
PEB धांधली मामले में मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं। ग्वालियर हाईकोर्ट ने इस हाईप्रोफाइल घोटाला मामले में राज्य सरकार को जांच रिपोर्ट पेश करने की अंतिम तिथि तय कर दी है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार दो महीने के भीतर यानी 5 नवंबर तक पूरे मामले की जांच रिपोर्ट पेश करे। हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि इस धांधली में बड़े-बड़े लोगों की संलिप्तता उजागर होगी।
दरअसल, इसी साल 10 और 11 फरवरी को मध्य प्रदेश सरकार के कृषि विभाग ने ‘ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी’ और ‘वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी’ के कुल 863 पदों पर भर्ती के लिए परीक्षा हुई थी। परीक्षा लेने की जिम्मेदारी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (PEB) को मिली थी।
PEB को कुछ साल पहले तक व्यापम के नाम से जाना जाता था। देश के सबसे चर्चित घोटाले का सूत्रधार होने के कारण इस बोर्ड का नाम तो बदल दिया गया लेकिन काम में बदलाव हुआ या नहीं इस बात को लेकर संशय जारी है। दरअसल, यह संशय 17 फरवरी को तब उपजा जब बोर्ड द्वारा उत्तर-पुस्तिका और टॉपर्स की सूची जारी की गई। इस परीक्षा में 23 हजार से ज्यादा उम्मीदवार शामिल हुए थे लेकिन टॉपर्स एक ही कॉलेज, एक ही क्षेत्र और एकाध को छोड़कर एक ही सरनेम यानी जाति के उम्मीदवार थे।
इतना ही नहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों का तो ये भी कहना है कि ये सभी टॉपर्स एक साथ घूमने, एक साथ रहने वाले भी थे। टॉपर्स की सूची सामने आने के बाद छात्रों ने बवाल शुरू कर दिया। छात्र सुनील उपाध्याय के मुताबिक टॉप 10 के जो छात्र हैं उनकी 4 साल में डिग्री पूरी नहीं हो पाई है। सभी को डिग्री पूरी करने में 6 से 10 साल लगे। यानी वे बार-बार फेल होते रहे। लेकिन बात जब नौकरी के लिए प्रतियोगिता की आई तो टॉप कर गए। सिर्फ टॉप ही नहीं किए 200 में 195 और 194 नंबर लेकर इतिहास रच दिया।