माधवराव सिंधिया को लेकर प्रदेश में सियासी गुफ्तगू शुरू
ग्वालियर: कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता व पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय माधवराव सिंधिया को लेकर प्रदेश में सियासी गुफ्तगू शुरू हो गई है. राजनीतिक गालियारों में यह सवाल गूंजने लगा है कि आखिर अब बड़े महाराज (माधवराव सिंधिया) किसके हैं? माधवराव सिंधिया अंतिम समय तक कांग्रेस में रहे. वे कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे. कांग्रेस में उनका एक अलग सम्मान है. कांग्रेस में माधवराव सिंधिया को क्या वही सम्मान अब भी मिलेगा! इसको लेकर संशय बना हुआ है. क्योंकि कांग्रेसी ज्योतिरादित्य सिंधिया को गद्दार कहने लगे हैं. ऐसे में बड़े महाराज (माधवराव सिंधिया) को कांग्रेस में कितना सम्मान मिलेगा यह चर्चा का विषय बना हुआ है. बता दें कि 30 सितंबर को माधवराव सिंधिया की 19 वीं पुण्यतिथि है. उनकी पुण्यतिथि पर ग्वालियर में कांग्रेस द्वारा हर साल बड़े स्तर पर जनकल्याण के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. प्रभात फेरी निकाली जाती है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इस बार भी अपनी 19 साल पुरानी परंपरा को निभाएगी? या सिंधिया के भाजपा में जाने के कारण कोई कार्यक्रम नहीं करेगी. माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में किये जाने वाले कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस असमंजस में है. ग्वालियर-चम्बल संभाग में आज भी लोगों में महल के प्रति एक आस्था है. यहां की 16 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है.
… बड़े महाराज ने अटलजी को हराया था चुनाव
1977 में इमरजेंसी के बाद हुए आम चुनाव में माधव राव सिंधिया गुना संसदीय सीट से दोबारा चुनाव जीते. 1984 का चुनाव में माधव राव सिंधिया ने ग्वालियर से भारतीय राजनीति के अजातशत्रु कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव हराया था. इसके बाद माधवराव सिंधिया को पहली बार मंत्रिपद भी मिला. वो देश के रेल मंत्री बने. इसके बाद पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में भी मंत्री रहे.
….24 साल पहले बड़े महाराज ने भी छोड़ी थी कांग्रेस
माधव राव सिंधिया ने भी करीब 24 साल पहले कांग्रेस पार्टी छोड़कर अपनी नई पार्टी बनाई थी. माधव राव सिंधिया ने अपनी राजनीति की शुरूआत जनसंघ से की थी फिर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. 1990 दशक में माधवराव सिंधिया भी कांग्रेस से नाराज हो गए थे. 1 जनवरी 1996 को माधवराव सिंधिया ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री के पद से इस्तीफा दिया था. तब चर्चित जैन-हवाला डायरी में उनका नाम आया था. जैन हवाला डायरी में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट देने से इंकार कर दिया था. इस बात से नाराज माधव राव सिंधिया ने मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस नाम से नई पार्टी बनाई थी. जिससे वे चुनाव लड़े थे. बाद में एचडी देवेगौड़ा की यूनाइटेड फ्रंट की सरकार को माधव राव की पार्टी ने बाहर से समर्थन दिया था. खैर माधव राव लंबे समय तक कांग्रेस से अलग नहीं रहे और वो फिर से पार्टी में वापस आ गए थे. 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी की लहर थी तब 26 साल की उम्र में माधवराव सिंधिया गुना संसदीय सीट से पहली बार चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे.