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सिंधिया के बाद पायलट भी गद्दार, राजस्थान की सियासत में बवंडर के बादलसिंधिया के बाद पायलट भी गद्दार, राजस्थान की सियासत में बवंडर के बादल

नई दिल्ली। राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर सियासत के कालेवस बादल छा गए हैं, ये काले बादल बारिश के बाद सब कुछ साफ कर देंगे या बरसने के पहले के बवंडर में सबकुछ नाश् कर देंगे। यह तो समय के साथ ही साफ होगा। फिलहाल यह देखना होगा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सामंजस्य की कमी क्या कांग्रेस से एक और राज्य से सत्ता छीन लेगी। यह सोमवार को साफ हो जाएगा। वहीं रविवार को दिल्ली में सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया की 40 मिनट की मुलाकात ने राजस्थान सरकार और कांग्रेस आलाकमान की नींद तो उड़ा दी है।
वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा सोमवार को विधायकों की बैठक में जानकारी के अनुसार 30 विधायक गायब रह सकते हैं।  राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रविवार को अपने आवास पर कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों से मिल रहे हैं। कांग्रेस सरकार के सभी मंत्रियों और विधायकों को कहा गया है कि वह अपने क्षेत्र को छोड़कर जयपुर पहुंचे. जिसे भी संभव हो पा रहा है वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलने के लिए मुख्यमंत्री निवास पहुंचे थे। 
प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा,’मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली गए विधायकों के संपर्क में है। सचिन पायलट हमारे प्रदेश अध्यक्ष हैं. अगर कोई विधायक उनके साथ गया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि अशोक गहलोत के खिलाफ गया है। उनमें से ज्यादातर लोगों से मुख्यमंत्री ने बातचीत कर ली है. हालांकि बीजेपी सरकार को गिराने में लगी हुई है। मगर मुख्यमंत्री सभी परिस्थितियों पर नजर रखे हुए हैं।’
अशोक गहलोत ने ट्वीट किया, ‘एसओजी को जो कांग्रेस विधायक दल ने बीजेपी नेताओं द्वारा खरीद-फरोख्त की शिकायत की थी उस संदर्भ में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, चीफ व्हिप एवम अन्य कुछ मंत्री व विधायकों को सामान्य बयान देने के लिए नोटिस आए हैं। कुछ मीडिया द्वारा उसको अलग ढंग से प्रस्तुत करना उचित नहीं है।’
रविवार को ज्योतिरादित्य ने सचिन पायलट पर ट्वीट किया, “यह देखकर दुख हो रहा है कि मेरे पूर्व सहयोगी सचिन पायलट को भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा दरकिनार करके सताया जा रहा है. यह दर्शाता है कि कांग्रेस में प्रतिभा और क्षमता बहुत कम है।”
भाजपा उन 10 निर्दलीय विधायकों से भी बातचीत कर रही है जो अशोक गहलोत सरकार का मजबूती के साथ समर्थन कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा की सावधानी की रणनीति दो कारकों की वजह से है – व्यक्तित्व और संख्या।
भाजपा के पास 76 विधायक हैं, जबकि बहुमत का आंकड़ा 101 है। अंतिम गणना तक कांग्रेस के पास 121 विधायकों का समर्थन था. यानी बहुमत की न्यूनतम सीमा से 20 अधिक। यह मध्यप्रदेश के हालात जैसी नहीं है, वहां कांग्रेस और भाजपा के बीच काफी कम अंतर था।
यदि बीजेपी के पास सरकार बनाने का मौका है तो उसके अंदर भी मुख्यमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदारों के बीच संघर्ष होगा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उनमें से एक दावेदार हैं। सचिन पायलट इस मैट्रिक्स में कैसे फिट होंगे, यह भाजपा के सामने एक चुनौती है। राजे केंद्रीय भाजपा नेतृत्व के साथ दौड़ में हिस्सेदार हैं, लेकिन राजस्थान के विधायकों में वह बड़े राजनीतिक कद वाली सबसे लोकप्रिय नेता हैं।
सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट मार्च से ही दरकिनार दिख रहे हैं। उसी दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का दामन थामा था। बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि अगर सचिन पायलट उनके लिए पेश की गई शर्तों पर सहमत होते हैं, तो बीजेपी यह उम्मीद करेगी कि उनके प्रति वफादार विधायक भी पार्टी छोड़ें. ठीक वैसे ही जैसे मध्यप्रदेश में हुआ था।