मप्र नगरीय सरकार के नतीजे- कांग्रेस को साफ करने वाली भाजपा 11 में से 4 निगम हारी …
- 57 साल बाद ग्वालियर नगर निगम कांग्रेस के हाथों में,शोभा बनी मेयर
- जबलपुर में कांग्रेस के जगत बहादुर से हारे भाजपा डॉ जितेंद जामदार…
- सिंगरौली से रानी अग्रवाल के जरिए आप का एमपी में प्रवेश
पिछले चुनाव में मध्य प्रदेश के सभी 16 नगर निगम जीतने वाली भाजपा ग्यारह में से चार नगर निगम हार गई है। भाजपा से कांग्रेस ग्वालियर,जबलपुर, छिंदवाड़ा और सिंगरौली में आम आदमी पार्टी जीत गई है। दूसरे चरण में पांच नगर निगम के वोटों की गिनती 20 जुलाई को होगी। भाजपा में आत्ममंथन और कांग्रेस में उत्साह का माहौल है। गढ़ जिंकला पण सिंह गेला…हिंदू साम्राज्य के मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के समय यह कहावत जनमानस में खूब प्रचलित थी। गढ़ तो जीते पर शेर खो दिया। इसके मायने आरएसएस के मराठी संस्कारों में पगी भाजपा के कार्यकर्ताओं से बेहतर कौन जान सकता है। मप्र में नगर निगम चुनाव के पहले दौर के परिणामों पर इसका जिक्र करना मौजू लगा। कोंढ़ाणा के गढ़ को मुगलों से जीतने की जिम्मेदारी शिवाजी महाराज ने अपने सबसे वीर सरदार तानाजी को सौंपी थी। यह तब की बात है जब तानाजी अपने बेटे के विवाह का आमंत्रण देने के लिए उनके पास आए थे। बाद में पिछले वर्ष तानाजी पर एक ऐतिहासिक फ़िल्म भी बनी है। तानाजी ने दिनरात के जबरदस्त छापा मार हमले कर लड़ाई जीती थी। सुबह होते – होते तानाजी ने जांबाजों की टोली के साथ किले पर केसरिया ध्वज फहरा दिया। तानाजी के प्राणों की आहुति के साथ मिली इस विजय की सूचना छत्रपति शिवाजी को यह कहते हुए दी गई कि-
‘गढ़ जिंकला पण सिंह गेला…’ भाजपा के लिए यह थोड़ी राहत की बात है कि भोपाल से मालती राय और इंदौर से पुष्यमित्र भार्गव चुनाव जीत गए हैं। उज्जैन व बुराहनपुर में भी भाजपा हारते हारते बच गई।
ग्वालियर शिकस्त के संदर्भ में प्रदेश भाजपा के मंत्री रहे ग्वालियर के राज चड्डा की “सांची कहौं” में व्यक्त तेजाबी टिप्पणी को भी साझा कर रहे हैं। इससे हालात को समझने में और जगने – जगाने में आसानी होगी। बशर्ते कोई जागते हुए न सो रहा हो।
क्या सिंधिया बेअसर रहे…
ग्वालियर नगर निगम में 57 बरस बाद यह पहला अवसर है जब कांग्रेस जीती हो। ग्वालियर में मेयर और पार्षद प्रत्याशी चयन में ऐसी गुटबाजी और पराजय पहले कभी नही हुई। यह सब ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद हुआ। इसलिए भी तमाम विवादों को सिंधिया और उनके समर्थकों से जोड़ कर देखा जा रहा है। घोषणा पत्र घोषित करने की सभा से लेकर बैठकों तक में घटिया प्रबंधन के जो नजारे दिखे वे पराजय के साफ संकेत दे रहे थे। पूर्व मंत्री और पूर्व पीएम अटल जी के भांजे अनूप मिश्रा तक को मंच पर स्थान नही दिया। वे नाराज होकर कार्यक्रम छोड़ चले जाते हैं। इसके बाद डेमेज कंट्रोल के कोई उच्च स्तरीय प्रयास नही हुए। इस तरह भाजपा संगठन ने हारने के इंतजाम कर लिए थे।
मध्यप्रदेश में नगरीय निकायों के दूसरे चरण के चुनाव के नतीजे 20 जुलाई को आने हैं। पिछले चुनाव का जिक्र करें तो भाजपा ने राज्य की सभी 16 नगर निगम में क्लीन स्वीप करते हुए सभी पर अपना कब्जा किया था। इस दफा भी ऐसी उम्मीद की जा रही थी लेकिन पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर मंडल से लेकर जिले संभाग और प्रदेश में जिस तरह से अनुभवी नेताओं को किनारे किया गया उससे हालात बिगड़े हुए तो लग रहे थे लेकिन उम्मीद थी भाजपा में डैमेज कंट्रोल सिस्टम ठीक काम करेगा और नाराज लोगों की बगावत को शांत कर दिया जाएगा। लेकिन ऐसा हो ना सका 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद नगरी निकाय और पंचायत के चुनाव में यह पहला अवसर था जब निजी चर्चा और काफी हद तक संगठन के नेताओं से कभी खुलकर तो कभी लिहाजी अंदाज व्यक्त जरूर कर रहे थे। जिम्मेदारों ने इसे गम्भीरता नही लिया। परिणाम सामने है कि ग्यारह नगर निगम में से तीन ग्वालियर महाकौशल के मुख्यालय जबलपुर और छिंदवाड़ा संभाग कि नगर निगम पर कांग्रेस के साथ सिंगरौली नगर निगम पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली है 20 जुलाई को दूसरे चरण के मतदान की गिनती होना है और उसमें पांच नगर निगम चुनाव के नतीजे आने हैं गौरतलब है कि कांग्रेस के बारे में कहा जा रहा था कि उनका बुजुर्ग नेतृत्व भाजपा के युवा नेताओं और मजबूत संगठन के सामने कहीं नहीं टिक पाएगा। लेकिन इससे उलट भाजपा पिछड़ गई और कॉन्ग्रेस आगे बढ़ती हुई दिखी। उत्साहित कांग्रेस का कहना है ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आने पर भाजपा को मजबूत होना चाहिए था इसके विपरीत ग्वालियर चंबल क्षेत्र के साथ बुंदेलखंड और महाकौशल में कांग्रेस को चौंकाने वाली सफलता मिली है। यह नतीजे 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस में जश्न का माहौल बनाने में अहम साबित हो रहा है। कांग्रेसमें कमलनाथ का चुनावी प्रबंधन और दिग्विजय सिंह की कार्यकर्ताओं के बीच सक्रियता ने भाजपा को कई जगह चित कर दिया है। कांग्रेस के अधिकांश नेतागण कहते हैं कि पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुटबाजी से त्रस्त थी । अब यह गुटबाजी भाजपा में शिफ्ट हो गई है। इसीलिए भाजपा कमजोर और कांग्रेस मजबूत होने लगी है । कहना तो यह भी है कि विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर सिंधिया गुट भाजपा को परेशानी में डालेगा। ग्वालियर चंबल संभाग में जिस तरह महापौर और पार्षद प्रत्याशी चयन में गुटबाजी और लेटलतीफी हुई उसने भाजपा को परेशान कर दिया था।
कुल मिलाकर भाजपा के पुरान- समर्पित कार्यकर्ता पार्टी में असंतोष, सेबोटेज- बगावत के बीच हार की आशंकाओं पर दुखी होने के बजाय खुशी और संतोष जरूर जता रहे थे। इस तरह का मूड-माहौल भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में गम्भीर है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कुछ इसी तरह की खबरें आम हो रही थी। नतीजतन भाजपा हार गई। नगरीय और जिला पंचायत चुनाव में उम्मीदवार चयन में असंतोष बगावत तक जा पहुंचा। भोपाल समेत कई जिलों में जिला सरकार बनाने के लिए कांग्रेस मजबूत दिख रही है।
टिकट देने और चुनाव संचालन के कार्य से किनारे किए गए नेता- कार्यकर्ता एक बार मनमानी पर सबक सिखाना जरूरी मानते हैं। हार जीत और गुटबाजी पर विस्तार से विश्लेषण 20 जुलाई को शेष नतीजे पर करना उचित रहेगा।
यह खुद को खुदा समझने की हार है…
यह सच है कि जीत के सौ बाप होते हैं, हार का एक भी नहीं।पर यह भी उतना ही सच है कि पार्टी के जिस संगठन की देश भर में दुहाई दी जाती रही हो, वहां शर्मनाक हार अकारण तो नहीं हो सकती।यह बात और है कि बड़े नेता इसे स्वीकार नहीं करेंगे पर हर कार्यकर्ता इसे जानता है।
यह हमारे नगर के बड़े (अब राष्ट्रीय) नेताओं के निकम्मेपन की हार है।यह खुद को खुदा समझने की हार है।कार्यकर्ताओं की निरन्तर उपेक्षा और उन्हें बड़े बड़े आदर्शों के झूठे दिखावे की हार है।यह औरों को नसीहत, खुद मियां फ़ज़ीहत होने की हार है।यह कार्यकर्ताओं की वास्तविक समस्याओं की उपेक्षा की हार है।यह चमचों को कार्यकर्ता और कार्यकर्ता को पैर की जूती समझने की हार है।
बड़े बड़े नेताओं का इतना घमंड कि किसी पुराने कार्यकर्ता को एक फ़ोन के योग्य न समझना और जिसे अपने मोहल्ले में 4 वोट न मिलें उससे चंवर ढुलाने को अपना संगठन कौशल मानना, इसके सिवाय और कौन सा परिणाम ला सकता था।
एक परिश्रमी सतीश सिकरवार ने सारे स्वयम्भूओं की हेकड़ी उतार के रख दी।पहले विधान सभा में और फिर महापौर के चुनाव में।सतीश ने सारा संगठन कौशल भाजपा से ही सीखा था और उसी कौशल से उसने अकर्मण्य और झूठे नेताओं की कलई उतार कर रख दी।जब नेता किसी के बढ़ते कद से भयभीत होकर उसकी कतर ब्यौन्त करते हैं तो वो हठी कार्यकर्ता जन समर्थन की बौछार पा कर और बड़ा होकर निखरता है।
सतीश का समर्थन करने वाले भाजपा के वोटर ही नहीं कार्यकर्ता भी बहुत बड़ी संख्या में थे।ऐसे लोग जिन्हें कांग्रेस के नाम से नफ़रत थी, वो भी शोभा सतीश सिकरवार के साथ खड़े दिखाई दे रहे थे।
क्यों?
यह यक्ष प्रश्न है! इससे आंख मिलाने की हिम्मत नेतृत्व में है तो मिला कर दिखाए।
आदर्शों का आवरण ओढ़ कर स्वार्थ और झूठ का जो नाच हमारे नेतृत्व ने विगत 20,30 सालों में नाचा है, यह उसकी स्वाभाविक परिणति है।यह होना ही था।समर्पित और ध्येय निष्ठ कार्यकर्ताओं को एक एक कर घर बिठाते जाओगे,आधारहीन और स्वार्थी चाटुकारों को खपच्चियाँ लगा कर नेता बनाओगे, हमें गुड़ चने खा कर लड़ने का आदर्श बताओगे और खुद हर साल 4, 5 करोड़ का एक और बंगला, फार्म हाउस,
फैक्ट्री खरीदने के लिए अल्लादीन का चिराग कहाँ से लाये हो,नहीं बताओगे।पाखानों से लेकर खदानों तक पर तुम्हारा कब्ज़ा होगा और कार्यकर्ता रात की रोटी की जुगाड़ में मारा मारा फिरेगा तो और क्या होगा? वार्ड प्रमुख, बूथ प्रमुख और पन्ना प्रमुख काग़ज़ों पर धरे रह जाएंगे, पर्ची बांटने वाला नसीब न हुआ है न होगा।
बुरी लगी हो तो दर्पण में एक बार अपना चेहरा फिर देख लेना और मुझ जैसे दस पांच और कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देना।
तुम्हारी कुछ और अट्टालिकाएं भले ही खड़ी हो जाएं पर इससे पार्टी का भला न होगा।