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MP : भारतीय भाषा महोत्सव का सप्रे संग्रहालय में राज्यपाल ने किया शुभारंभ, कहा ‘हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, इसमें हमारा गौरव है’

भोपाल : वहीं इस दौरान राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण बाते कही उन्होंने कहा की, “राष्ट्र के साहित्य पर जिनकी पकड़ हो, ऐसे लोगों से जब मिलना होता है, तो मन अति आनंदित होता है।” उन्होंने संग्रहालय के संस्थापक एवं निदेशक विजयदत्त श्रीधर का आभार भी जताया और महोत्सव में विमर्श के तीन आयामों की महत्वपूर्णता पर चर्चा की।

भारतीय भाषा महोत्सव की विशेषता:

राज्यपाल ने इस महोत्सव में हिंदी और जनपदीय लोकभाषाएं, हिंदी और भारतीय भाषाएं, और हिंदी और विश्व की भाषाओं के तीन आयामों की महत्वपूर्ण भूमिका को बताया। दरअसल इस विषय में उन्होंने कहा की, “हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, इसमें हमारा गौरव है।” उनका कहना है कि, इस महोत्सव के माध्यम से हिंदी को मजबूती देने के लिए साहित्यकारों ने एक साथ मिलकर योजनाएं बनाने का संकल्प लिया है। इस दौरान राजयपाल ने कहा की उनका विश्वास है की भारतीय भाषा का आयोजन युवाओं को जोड़ेगा और अनुसंधान के लिए युवाओ को प्रेरित भी करेगा।

दरअसल इस दौरान राज्यपाल ने देश की विविधताओं के साथ भाषाओं में भी विविधता की बात करते हुए कहा, “हमारे देश में विविधता है, उसी तरह भाषा में भी विविधता है, हिंदी में बात करनी हो तो बहुत अच्छा लगता है।” उन्होंने भाषा का सफल उपयोग करने की महत्वपूर्णता पर चर्चा की और युवाओं को भाषा में सकारात्मक रूप से संलग्न होने का संदेश दिया।

हिन्दी और जनपदीय लोकभाषाएं विमर्श सत्र: म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखदेव प्रसाद दुबे की अध्यक्षता में होगा, जिसमें विभिन्न भाषाओं के स्थानीय साहित्यकारों का योगदान होगा। ‘हिन्दी और भारतीय भाषाएँ‘ विमर्श सत्र: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश की अध्यक्षता में यह सत्र होगा, जिसमें भाषाओं के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जाएगी। महोत्सव के समापन समारोह का संचालन शिवकुमार विवेक करेंगे, जिसमें विभिन्न भाषाओं के कलाकारों का सामूहिक समर्थन होगा। यहां प्रमुख सत्रों में भारतीय भाषाओं की समृद्ध परंपरा पर चर्चा होगी, जिससे भाषा के महत्व को बढ़ावा मिलेगा।

इस महोत्सव से युवा पीढ़ी को भारतीय भाषाओं के प्रति जागरूकता मिलेगी और साहित्यिक दृष्टिकोण से उन्हें नए दर्शन का अवसर मिलेगा। इसके साथ ही, भाषा के माध्यम से सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धाराओं को समझाने में सहारा मिलेगा।