बसपा के एक दर्जन से अधिक पदाधिकारी कांग्रेस में शामिल
मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बड़ी हलचल देखने को मिली है. राज्य में बहुजन समाजवादी पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है. बसपा के एक दर्जन पदाधिकारियों ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व सीएम कमलनाथ की मौजूदगी में बसपा के पदाधिकारी कांग्रेस में शामिल हुए. बसपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले नेताओं में पूर्व मेयर प्रत्याशी भी शामिल हैं.
जानिए इस कदम की क्या है अहमियत
विधानसभा में बसपा के अभी दो विधायक हैं. इसके अलावा एमपी में 28-30 विधानसभा सीटों पर दलित मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं. सीएसडीएस की रिपोर्ट के अनुसार, इन 28-30 विधानसभा सीटों पर दलित मतदाताओं की संख्या करीब 12-16 फीसदी है. खासकर भिंड, मुरैना, रीवा, सतना और ग्वालियर क्षेत्र में दलित मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है. इन दलितों में बसपा के इन पदाधिकारियों की अच्छी पैठ मानी जाती है.
चंबल और विंध्य क्षेत्र में प्रभावी
एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में दलित मतदाता प्रभावी भूमिका में हैं. यहां बसपा को 15 प्रतिशत के करीब वोट मिलते रहे हैं. पूरे एमपी की बात करें तो राज्य में बसपा का वोट प्रतिशत करीब 10 फीसदी है. ऐसे में कमलनाथ और कांग्रेस की कोशिश है कि इस 10 फीसदी वोटबैंक को अपने पाले में किया जाए. यही वजह है कि बड़ी संख्या में बसपा नेताओं को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई जा रही है.
बीजेपी को पड़ सकता है भारी
एमपी में दलित वोटर्स परंपरागत तौर पर कांग्रेस और बसपा के बीच बंटे हुए हैं. ऐसे में प्रदेश में बसपा का कमजोर होने का सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा और बीजेपी को कई सीटों पर कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल सकती है. बीते दिनों 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में बसपा ने सभी 28 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इसका कांग्रेस को कई सीटों पर इसका नुकसान उठाना पड़ा था. इस तरह बीजेपी को उपचुनाव में मिली निर्णायक जीत में बसपा का चुनाव लड़ना भी एक अहम फैक्टर रहा. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यही वजह है कि कांग्रेस की कोशिश है कि राज्य में बसपा कमजोर हो ताकि दलित वोटर्स उनके पाले में चले जाएं.