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जानिए क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी

आज गणेश चतुर्थी का पावन पर्व है. यह भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है. यह उत्सव आज से शुरू होकर अगले दस दिनों तक मनाया जाएगा.

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की मूर्ति को घर पर लाया जाता है. हिंदू धर्म के मुताबिक, किसी भी शुभ काम को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. ऐसे में आज गणेश चतुर्थी के मौके पर हम आपको इस उत्सव को मनाने के पीछे के कारणों के बारे में बताने जा रहे हैं.

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार आज ही हुआ था गणेश जी का जन्म

एक दिन स्नान करने के लिए भगवान शंकर कैलाश पर्वत से भोगावती जगह पर गए. कहा जाता है कि उनके जाने के बाद मां पार्वती ने घर में स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया था. उस पुतले को मां पार्वती ने प्राण देकर उसका नाम गणेश रखा. पार्वती जी ने गणेश से मुद्गर लेकर द्वार पर पहरा देने के लिए कहा. पार्वती जी ने कहा था कि जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊं किसी को भी भीतर मत आने देना.

भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव वापस घर आए तो वे घर के अंदर जाने लगे लेकिन बाल गणेश ने उन्हें रोक दिया. क्योंकि गणपति माता पार्वती के के अलावा किसी को नहीं जानते थे. ऐसे में गणपति द्वारा रोकना शिवजी ने अपना अपमान समझा और भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर चले गए.

शिवजी जब अंदर पहुंचे वे बहुत क्रोधित थे. पार्वती जी ने सोचा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव क्रुद्ध हैं.. इसलिए उन्होंने तुरंत 2 थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का आग्रह किया.

दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा, कि यह दूसरी थाली किसके लिए लगाई है? इस पर पार्वती कहती है कि यह थाली पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है. यह सुनकर भगवान शिव चौंक गए और उन्होने पार्वती जी को बताया कि जो बालक बाहर पहरा दे रहा था, मैने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है.

यह सुनते ही माता पार्वती दुखी होकर विलाप करने लगीं. जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव से पुत्र को दोबारा जीवित करने का आग्रह किया. तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि दक्षिण दिशा में जाओ. उस दिशा में जो भी पहला जिव मिले, उसका सर लाने को आदेश दिया.

भगवान शिव के सेवकों को वहां एक हाथी का बच्चा दिखाई दिया. वह उसी बच्चे का सर लाकर भगवान शिव को दे देते हैं. भगवान शिव ने उसी हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया. पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं. यह पूरी घटना जिस दिन घटी उस दिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी थी. इसलिए हर साल भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है.