जानिए वह वजह, जिनकी वजह 12 केंद्रीय मंत्रियों को किया गया मंत्रीमंडल से आउट
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का दो सालों बाद मंत्रीमंडल विस्तार कर लिया. इस दौरान कईयों को प्रमोशन मिला तो कईयों को बाहर का रास्ता दिखाया गया. अभी तक मंत्रीमंडल में 53 मंत्री थे. जिनमें से 12 मंत्रियों को इस्तीफा दिलाया गया. कहने को तो इनमे से कुछ की वजह स्वास्थ्य बताया गया. लेकिन असली वजह कुछ और ही थी. इस्तीफों की शुरुआत थावरचंद गहलोत से हुई थी. उन्हें राज्यपाल बनाकर एडजस्ट कर दिया गया. बकाया 11 मंत्रियों का क्या होगा. यह कोई नहीं जानता.
कौन हैं इस्तीफे वाले 12 मंत्री
- रविशंकर प्रसाद
- प्रकाश जावड़ेकर
- थावर चंद गहलोत
- रमेश पोखरियाल निशंक
- हर्षवर्धन
6.सदानंद गौड़ा - संतोष कुमार गंगवार
- बाबुल सुप्रियो
- संजय धोत्रे
- रत्तन लाल कटारिया
- प्रताप चंद सारंगी
- देबोश्री चौधरी
थावरचंद गहलोत को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया
केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत मंगलवार को ही इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद मंत्रीमंडल विस्तार की खबरों ने और जोर पकड़ लिया था. उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया है,. वे मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में मंत्री रहे हैं. अभी तक वे केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय संभाल रहे थे.
कोरोना ने लील लिया इन तीन मंत्रियों को
जब से कोरोना आया. तब से मोदी सरकार कई मोर्चों पर विफल हो रही थी. फिर चाहे वो स्वास्थ्य को लेकर हो या फिर रोजगार को लेकर. कहने को तो लॉकडाउन की वजह से पढाई-लिखाई बंद सी रही. लेकिन छात्रों ने तमाम विषयों को लेकर सरकार को इस मोर्चे पर खूब घेरा. ऐसे कई मौके देखने में आये जब सरकार को इन मोर्चों पर चुप्पी साधनी पड़ी. उसके पास सवालों के कोई जवाब नहीं थे.
स्वास्थ्य मंत्रालय- दूसरी लहर में फेल रहे. इसलिए उन्हें हटाया गया.
शिक्षा मंत्रालय – नई शिक्षा नीति का सरकार को उतना श्रेय नहीं मिला. दोनों मंत्री हटाए.
श्रम मंत्रालय- श्रमिकों के पलायन, सुप्रीम कोर्ट की फटकार, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए पोर्टल नहीं बना पाए.
पश्चिम बंगाल में मिली हार का शिकार बने दो बंगाली मंत्री
बाबुल सुप्रियो – बाबुल सुप्रियो केंद्र सरकार में मंत्री थे. इसके बावजूद उन्हें विधानसभा चुनावों में उतारा गया. पार्टी को उम्मीद थी कि वो अपने साथ-साथ कई अन्य उम्मीदवारों को जिता कर विधानसभा पहुचाने का काम करेंगे. लेकिन हुआ इसका बिलकुल उलट. ऐसा मंत्री होकर भी विधायक का चुनाव हारे. बंगाल इलेक्शन में वो बिलकुल फेल हो गये. कार्यकर्ताओं के साथ अच्छा व्यवहार भी न था.
देबोश्री चौधरी- बंगाल चुनाव में असर नहीं छोड़ पाईं। इनका न ही आम लोगों से रिश्ता जमा रहा है, न ही वो मिनिस्ट्री में कुछ कर पाईं. यहाँ तक जब उन्होंने इस्तीफा दिया, तब लोगों ज्ञात हुआ कि केंद्र में यह भी मंत्री थीं.
12 मंत्रियों में से 10 मंत्री 60 साल के ऊपर
- थावरचंद गहलोत: 73 साल
मध्यप्रदेश के शाजापुर से लोकसभा सदस्य रहे चुके हैं. मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद बने. राज्यसभा में सदन प्रमुख भी रहे. पहली मोदी सरकार में सामाजिक न्याय व सशक्तीकरण मंत्रालय में मंत्री रहे. उन्हें कर्नाटक का गवर्नर बनाया गया है.
क्यों हटाया गया: गहलोत को गवर्नर बनाया गया और उनके जाने से 5 पद खाली हो सके जो कैबिनेट रीशफल में उपयोगी रहे. वो अपनी मिनिस्ट्री में खूब धीमे माने जाते थे.
- संतोष गंगवार: 72 साल
उत्तर प्रदेश के बरेली से लोकसभा सांसद. वित्त मंत्रालय और कपड़ा मंत्रालय में राज्य मंत्री रह चुके हैं. मोदी 2.0 की पहली कैबिनेट में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थे.
क्यों हटाया गया: काफी सच बोलते थे. उन्होंने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ खत लिखा था. कहा जा रहा है कि यही उन्हें हटाने की वजह बनी. खबरें यहाँ तक भी हैं कि उन्होंने राज्य सरकार में बरेली से ही एक विधायक मंत्री को हटाने के लिए लाबिंग की थी. वो अब संगठन में ऊँचे पड़ पर पहुंच गये. उन्होंने अब इन्हें हटाने में लाबिंग कर दी.
- प्रकाश जावडेकर- 70 साल
महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद. मोदी मंत्रिमंडल में संसदीय कार्य मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, भारी उद्योग व सार्वजनिक उपक्रम मंत्री, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री और सूचना व प्रसारण मंत्री रहे हैं.
क्यों हटाया गया: जावडेकर का इस्तीफा आज के दिन की बड़ी खबर रही. वे सरकार के प्रवक्ता थे, लेकिन सरकार का पक्ष ठीक से नहीं रख पाए. पर्यावरण मिनिस्ट्री में भी उनकी लीडरशिप और कुछ फैसलों पर काफी सवाल उठे थे. उनके कई फैसले विवादास्पद रहे.
- रतन लाल कटारिया- 69 साल
2014 में हरियाणा के अंबाला से लोकसभा सांसद बने. मोदी 2.0 की पहली कैबिनेट में जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री थे.
क्यों हटाया गया: न ही उन्हें मिनिस्ट्री चलानी आई और न ही वे मास कॉटैक्ट रख सके.
- सदानंद गौड़ा: 68 साल
बेंगलुरु उत्तर से लोकसभा सांसद. मोदी सरकार में रेलवे मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय संभाल चुके हैं. वर्तमान में रसायन व उर्वरक मंत्री थे.
क्यों हटाया गया: अपने खराब परफॉर्मेंस और कर्नाटक के बदलते समीकरणों के कारण पद गंवा बैठे. अब कर्नाटक मामलों में भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष की ही चलती है.
- रविशंकर प्रसाद- 66 साल
पटना साहिब से लोकसभा सांसद. अटल सरकार के दौरान कोयला मंत्रालय, कानून व न्याय मंत्रालय और सूचना व प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा संभाला. मोदी सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री, कानून व न्याय मंत्री, इलेक्ट्रॉनिकी व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री और संचार मंत्री रहे.
क्यों हटाया गया: रवि शंकर प्रसाद को मंत्रिमंडल से निकला जाना सबसे बड़ा सरप्राइज है. ऐसा माना जा रहा है कि नए IT कानूनों पर सरकार का पक्ष ठीक से नहीं रख पाए. ज्यूडिशियरी से लेकर ग्लोबल IT कंपनियों तक उनके फैसलों पर सवाल उठते रहे.
- डॉ. हर्षवर्धन- 66 साल
दिल्ली के चांदनी चौक से लोकसभा सांसद. मोदी सरकार में स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री थे.
क्यों हटाया गया: कोरोना की दूसरी लहर में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी रही, जिसे इन्हें मंत्री पद से हटाने की वजह माना जा रहा है. डॉक्टर होते हुए भी हालात काबू में नहीं रख पाए और न ही आम जनता को राहत मिल सकी.
- प्रताप सारंगी: 66 साल
2019 में ओडिशा के बालासोर से लोकसभा सांसद बने. सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम मंत्रालय के साथ पशुपालन, डेयरी व मछली पालन मंत्रालय के राज्यमंत्री थे.
क्यों हटाया गया: शुरुआत में अपनी सादगी को लेकर चर्चा में रहे, लेकिन बाद में मंत्रालय चलाने को लेकर उनके फैसले कुछ खास बदलाव नहीं ला सके.
- संजय धोत्रे: 62 साल
महाराष्ट्र के अकोला से लोकसभा सांसद. मोदी मंत्रिमंडल में शिक्षा राज्य मंत्री, इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री और सूचना मंत्रालय में राज्य मंत्री थे.
क्यों हटाया गया: बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के चलते उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर जाना पड़ा.
- रमेश पोखरियाल निशंक: 61 साल
उत्तराखंड के 5वें मुख्यमंत्री रह चुके हैं. हरिद्वार से लोकसभा सांसद. मोदी 2.0 में मानव संसाधन विकास मंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री थे.
क्यों हटाया गया: कोरोना के बीच नई शिक्षा नीति पर सरकार का पक्ष ठीक से नहीं रख पाए. साथ ही कुछ शिक्षण संस्थाओं ने उनके खिलाफ शिकायतें की थी.