जीतू पटवारी ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को लिखा पत्र, मध्यप्रदेश में महिलाओं की स्थिति को लेकर कांग्रेस की रिपोर्ट साझा की…
भोपाल : कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होने मध्य प्रदेश में महिलाओं की स्थिति को लेकर कांग्रेस पार्टी द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट साझा की है। बता दें कि राष्ट्रपति के इंदौर प्रवास के दौरान पटवारी ने उनसे मिलने का समय मांगा था, लेकिन पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कारण मुलाक़ात नहीं हो पाई थी। इसके बात अब उन्होने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है।
इस पत्र को लेकर उन्होने कहा कि ‘ हाल ही में मैंने राष्ट्रपति महोदया जी से मध्य प्रदेश में बढ़ते महिला अत्याचारों के संबंध में इंदौर में मिलने का समय माँगा था, लेकिन महामहिम के पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के कारण समय नहीं मिल पाया। अब कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश में महिलाओं के उत्पीड़न पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति जी को पत्र लिखकर मध्य प्रदेश में महिलाओं के उत्पीड़न की समस्या को उनके संज्ञान में लाने का प्रयास किया गया है।’
जीतू पटवारी द्वारा लिखा गया पत्र
जीतू पटवारी ने अपने पत्र में लिखा है कि ‘मंगलवार 17 सितंबर 2024 को पत्र के द्वारा मैंने आपसे मिलने के लिए समय मांगा था। यह अनुरोध भी किया था कि आपके मध्य प्रदेश आगमन पर मैं कांग्रेस पार्टी की अपनी दलित, पिछड़ी और आदिवासी विधायक बहनों के साथ भेंट करना चाहता हूं और मध्य प्रदेश में महिलाओं की अंतहीन बेहाली/बदहाली का ब्यौरा प्रस्तुत करना चाहता हूं। संभवत: आपकी पूर्व निर्धारित व्यस्तताओं के कारण हमें समय नहीं मिल पाया। यही कारण है कि महिला सुरक्षा और सम्मान से जुड़े एक महत्वपूर्ण मसले पर आपसे संवाद भी नहीं हो पाया। चूंकि, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी महिलाओं की स्थिति को लेकर बहुत गंभीर है और हालात बदलने के लिए सार्थक संवाद की पक्षधर भी है, इसलिए मैं कांग्रेस कार्यकर्ताओं, नेताओं और विधायक बहनों के सुझावों पर आधारित एक रिपोर्ट आपसे साझा कर रहा हूं।’
मैं विश्वास करता हूं इस आधार पर आप सार्थक समाधान के लिए ईमानदार प्रयास करेंगी और मध्य प्रदेश के साथ केंद्र सरकार को भी इस दिशा में निर्णायक पहल करने के लिए प्रेरित करेंगी। जैसा कि आपको सूचित किया था मध्य प्रदेश में महिला उत्पीड़न चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुका है! मप्र में गरीब, दलित और आदिवासी महिलाओं से जुड़े अपराध देश में सबसे ज्यादा हैं! नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) प्रतिवर्ष जो आंकड़े जारी करता है, मध्य प्रदेश महिला उत्पीड़न की अनेक और अलग-अलग श्रेणियां में सबसे आगे रहता है! टीम कांग्रेस द्वारा तैयार रिपोर्ट में मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में दलित, आदिवासी और अन्य महिलाओं के उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिया गया है। प्रदेश में दलित, आदिवासी और हाशिए पर रहने वाली अन्य वर्गों की महिलाएं न केवल सामाजिक और आर्थिक असमानताओं का सामना कर रही हैं, बल्कि उन पर अक्सर शारीरिक, मानसिक और लैंगिक उत्पीड़न के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। रिपोर्ट का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :-
मध्यप्रदेश में दलित, आदिवासी और अन्य महिलाओं के उत्पीड़न की स्थिति
मध्यप्रदेश में दलित, आदिवासी और अन्य कमजोर वर्गों की महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हो रही है, जिसमें दलित और आदिवासी महिलाएं विशेष रूप से प्रभावित होती हैं।
1. शारीरिक और यौन उत्पीड़न : राज्य के ग्रामीण इलाकों में दलित और आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, शारीरिक शोषण और हिंसा की घटनाएं आम हो गई हैं।
2. सामाजिक भेदभाव : जाति और जनजातीय भेदभाव के कारण इन महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार के अवसरों से वंचित किया जाता है।
3. आर्थिक शोषण : कई बार मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता है। इन्हें बंधुआ मजदूरी या अत्यधिक कम वेतन पर काम करने के लिए भी मजबूर किया जाता है।
4. घरेलू हिंसा : घरेलू हिंसा की घटनाएं भी प्रमुख हैं, जिसमें इन महिलाओं पर पारिवारिक दबाव और सामाजिक असमानता का असर साफ देखा जा सकता है।
उत्पीड़न के प्रमुख कारण
मध्यप्रदेश में दलित, आदिवासी और अन्य महिलाओं के उत्पीड़न के पीछे कई प्रमुख सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं। संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
1. सामाजिक भेदभाव
दलित और आदिवासी समुदाय भारतीय समाज में लंबे समय से शोषित और हाशिए पर रहे हैं। इन महिलाओं को न केवल पुरुषों से, बल्कि ऊंची जातियों की महिलाओं से भी सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इसका एक उदाहरण ‘अस्पृश्यता’ की प्रथा है। यह आज भी कई ग्रामीण इलाकों में प्रचलित है।
2. शिक्षा की कमी
अशिक्षा और जागरूकता की कमी इन महिलाओं को समाज में उत्पीड़न के प्रति असहाय बना देती है। शिक्षा के अभाव में वे अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं रखतीं। इससे भी उनका शोषण आसान हो जाता है।
3. आर्थिक निर्भरता
अधिकांश दलित और आदिवासी महिलाएं कृषि और असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं। यहां वे पुरुषों पर आर्थिक रूप से निर्भर रहती हैं। उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे अपने खिलाफ होने वाले शोषण का विरोध करने में असमर्थ होती हैं।
4. सामाजिक मान्यताओं और रीतियों का दुरुपयोग
अंधविश्वास, कुरीतियां, और समाज में प्रचलित रीति-रिवाज भी महिलाओं के उत्पीड़न का कारण बनते हैं। इन कुरीतियों में ‘विच-हंटिंग’ (डायन प्रथा) जैसी प्रथाएं आज भी जारी हैं। इसमें दलित और आदिवासी महिलाओं को निर्दोष होने के बावजूद प्रताड़ित किया जाता है।
सरकारी व्यवस्था में कमजोरियां
मध्यप्रदेश में दलित, आदिवासी और अन्य कमजोर वर्ग की महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए कई सरकारी योजनाएं और कानून लागू किए गए हैं। इसके बावजूद, इन योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन न होना और सरकारी तंत्र की कमजोरियां इन महिलाओं के लिए न्याय प्राप्त करने में बाधक साबित होती हैं।
1. कानूनी प्रणाली की सुस्ती
दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कानूनी प्रक्रिया अत्यधिक धीमी है। न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या अधिक है। इससे पीड़ितों को न्याय मिलने में काफी देरी होती है।
2. पुलिस की उदासीनता
कई मामलों में देखा गया है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन दलित और आदिवासी महिलाओं की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेता है। पुलिसकर्मियों के बीच जातिगत पूर्वाग्रह और भ्रष्टाचार के कारण भी शिकायतों की सही ढंग से जांच नहीं होती।
3. सरकारी योजनाओं का अभाव
हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने महिलाओं के सशक्तिकरण और सुरक्षा के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, परंतु उनका प्रभावी क्रियान्वयन न होने के कारण ये योजनाएं उन तक नहीं पहुंच पातीं, जिनके लिए ये बनाई गई हैं।
4. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में कमी
मध्यप्रदेश के कई ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है। इससे महिलाओं को न केवल शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता, जिससे उनका जीवनस्तर बेहद निम्न हो जाता है। शोषण के लिए ऐसे हालत भी बड़ा कारण हैं।
उत्पीड़न रोकने के संक्षिप्त सुझाव
जैसा कि मैंने पत्र में आपसे अनुरोध किया था हम समस्या के साथ समाधान पर भी संवाद करना चाहते हैं, इसलिए मैं कुछ संभावित सुधार भी आपसे साझा कर रहा हूं।
1. शिक्षा का प्रसार और सशक्तिकरण
शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जो महिलाओं को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाता है। दलित और आदिवासी महिलाओं के लिए मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। विशेष रूप से, महिलाओं की शिक्षा और उनके व्यावसायिक कौशल को बढ़ाने के लिए विशेष योजनाएं बनाई जानी चाहिए। यह चिंताजनक तथ्य है कि मध्य प्रदेश में शाला छोड़ने वाली बालिकाओं की संख्या सर्वाधिक है। राज्य सरकार को विशेष अभियान के तहत इस दिशा में पहल करनी चाहिए।
2. कानूनों का सख्त क्रियान्वयन
दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। फास्ट ट्रैक कोर्ट्स के माध्यम से इन मामलों का जल्द निपटारा होना चाहिए, ताकि पीड़ितों को समय पर न्याय मिल सके। आपको यह जानकर आश्चर्य होना चाहिए है कि मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी प्रदेश के गृहमंत्री भी हैं। उनके पदभार ग्रहण करने के बाद से लेकर अब तक मैं मीडिया, सोशल मीडिया और व्यक्तिगत पत्र-व्यवहार के जरिए अनेक अवसरों पर उदाहरण के साथ महिला उत्पीड़न और प्रदेश की बदहाल कानून व्यवस्था सुधारने को लेकर आग्रह कर चुका हूं। लेकिन, हालत लगातार नियंत्रण से बाहर ही होते जा रहे हैं।
3. पुलिस और प्रशासन में सुधार
स्थानीय पुलिस और प्रशासन को इन वर्गों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, भ्रष्टाचार और जातिगत पूर्वाग्रहों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। कई मामलों में यह देखा गया है कि पुलिस और प्रशासन सरकार की छवि बचाने के लिए उत्पीड़न की घटनाओं को छुपाते हैं। इससे दोषियों का हौसला बढ़ता है और वे फिर नए अपराध की हिम्मत जुटा लेते हैं।
4. आर्थिक सशक्तिकरण
दलित और आदिवासी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने चाहिए। इसके लिए, सरकार को विशेष उद्योगों, कुटीर उद्योगों और स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें। यह दुर्भाग्यपूर्ण है की लाड़ली लक्ष्मी योजना के जरिए महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का दावा करने वाला राज्य आज भी महिलाओं की आर्थिक कमजोरी का सबसे बड़ा उदाहण बन रहा है।
5. सामाजिक जागरूकता अभियान
सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जाने चाहिए। इनमें महिलाओं के प्रति सम्मान, उनकी सुरक्षा और समानता को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाए। इसके लिए मीडिया, स्कूल और धार्मिक संस्थाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। मैं बड़े दुख के साथ कहना चाहता हूं कि झूठी प्रचार योजनाओं पर करोड़ रुपया खर्च करने वाली सरकार महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए जागरूकता अभियान जैसी जरूरत को नजरअंदाज कर रही है।
6. महिला सशक्तिकरण हेतु सरकारी योजनाओं का सुदृढ़ क्रियान्वयन
महिला सशक्तिकरण की दिशा में बनाई गई सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके लिए पारदर्शिता और निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए, ताकि वास्तविक लाभार्थियों तक योजनाओं का लाभ पहुंच सके। इसका जीवंत उदाहरण है लाड़ली बहना योजना। इसमें लाभार्थियों की संख्या ही कम कर दी गई और पात्रता रखने वाली नई बहनों को योजना के लाभ से आज भी वंचित किया जा रहा है।
‘मैं पुन: दोहराना चाहता हूं कि बीते दिनों कोलकाता में डॉक्टर के बलात्कार और हत्या की सनसनीखेज वारदात के बाद आपके विचारों ने मुझे प्रभावित किया है। मैंने गंभीरता से यह भी समझा है कि आपका स्तब्ध मन इस निंदनीय कृत्य से कितना विचलित हुआ है! लोकतंत्र और संविधान की शीर्ष पंक्ति पर बैठे व्यक्ति के अंदर की इस संवेदनशीलता ने ही मुझे यह प्रेरणा दी है कि मैं मध्य प्रदेश में महिलाओं की स्थिति को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बिंदु आपके संज्ञान में लाने का प्रयास कर सकूं।’
‘इस संक्षिप्त रिपोर्ट के माध्यम से आपसे प्रार्थना है कि केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों को अपनी मौलिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए प्रेरित करें। क्योंकि, मध्यप्रदेश में दलित, आदिवासी और अन्य हाशिए पर रहने वाले वर्गों की महिलाओं के उत्पीड़न की स्थिति बहुत गंभीर है। सामाजिक असमानता, आर्थिक निर्भरता और सरकारी तंत्र की कमजोरियां इस समस्या को और बढ़ावा दे रही है। प्रदेश भाजपा सरकार की आपराधिक लापरवाही भी महिला उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही है।’