जीतू पटवारी ने सीएम मोहन यादव से किया सवाल ‘कुलपति को कुलगुरु नाम देने से क्या उच्च शिक्षा के स्तर में सुधार आ जाएगा’
भोपाल : नेता प्रतिपक्ष जीतू पटवारी ने कुलपति का नाम बदलकर ‘कुलगुरु’ करने को लेकर बीजेपी सरकार से सवाल किए हैं। उन्होने पूछा है कि क्या सिर्फ नाम बदलने से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आ जाएगा। उन्होने कहा कि प्रदेश में उच्च शिक्षा का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और सरकार इस ओर ध्यान देने की बजाय नाम बदलने की राजनीति में लगी हुई है।
जीतू पटवारी ने प्रदेश में उच्च शिक्षा की स्थिति पर चिंता जताई
जीतू पटवारी ने एक्स पर लिखा है कि ‘मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नित-नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। जहां छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं, वहीं सरकारी कॉलेजों को सहायक प्राध्यापकों का इंतजार है। पाठ्यक्रम में बदलाव, उन्हें समय पर पूरा करवाना, परीक्षाएं लेना जैसे नियमित कामों के अलावा बेरोजगारी के दौर में छात्रों का कौशल बढ़ाना भी चुनौती है। मध्यप्रदेश में सरकार बदलने के साथ ही उच्च शिक्षा का परिवेश-प्रकार बदलना भी तय था, लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव उच्च शिक्षा के स्तर को लगातार नीचे ले जा रहे हैं! सरकार दावा कर रही है की नई शिक्षा नीति लागू करवाने में उसने मेडल जीत लिया है! उच्च शिक्षा को रोजगार से जोड़ा जा रहा है! युवाओं को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है! लेकिन, झूठ के पांव पर दौड़ रही सरकार शायद यह नहीं जानती है कि जमीनी हकीकत इससे बहुत उलट और चिंताजनक है! क्योंकि, सरकार सच सुनना/समझना ही नहीं चाहती।’
सीएम मोहन यादव से किए सवाल
उन्होने आगे लिखा कि ‘सीएम मोहन यादव जी, कुलपति यदि “कुलगुरु” हो जाएंगे, क्या “गुरुकुल” बदल जाएगा? यदि केवल इसी सवाल का जवाब आपकी सरकार ने खोज लिया, तो उच्च शिक्षा का बहुत बड़ा नुकसान होने से रुक जाएगा! बहुत जिम्मेदारी से फिर कह रहा हूं कि जब तक “कमजोरी” को छुपाने के लिए इस तरह के पुराने “कालीन” खोज जाएंगे, हालात किसी भी कीमत पर बदल नहीं पाएंगे! लंबे समय से उच्च शिक्षा में नई भर्तियां नहीं हुईं, अतिथि प्राध्यापकों का वेतन संतोषजनक नहीं है, थोड़ी बहुत हुई भर्तियां भी सवालों और विवादों के घेरे में हैं, अधिकांश विश्वविद्यालयों में शीर्ष पदों पर “अनुकंपा” बैठी हुई है! क्यों? मध्य प्रदेश का एक भी विश्वविद्यालय या संस्थान देश की किसी भी रैंकिंग में भी नहीं है ? शिक्षा रोजगार का मजबूत माध्यम बने। पाठ्यक्रमों में तार्किक/सामयिक बदलाव हों। तभी नाम बदलने की सार्थकता दिखाई देगी।’