अगर सिंधिया न करते गद्दारी तो देश को 1857 में ही मिल जाती आजादी
ग्वालियर : देश की आजादी के लिए लाखों शहीदों ने अपनी जान कुर्बान की थी. अंग्रेजों के खिलाफ दो कई स्वतंत्रता संग्राम हुए थे. सबसे पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ था. कहा जाता है कि अगर यह संग्राम सफल हो जाता तो देश 1857 में ही आजाद हो जाता. लेकिन कुछ गद्दारों की वजह से यह संग्राम विफल हो गया था. इन्हीं गद्दारों में से एक प्रमुख थे जयाजी राव सिंधिया. जोकि ग्वालियर के राजा था और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पूर्वज हैं. यह संग्राम कई सेनानियों के नेतृत्व में लड़ा जा रहा था. बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश के सेनानियों का नेतृत्व कर रही थीं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई.
लक्ष्मीबाई की वीरता की गाथा आज बच्चा बच्चा जानता है. भारतीय इतिहास में जिस तरह योद्धा काफी प्रसिद्ध हैं, उसी तरह देश से गद्दारी करने वाले गद्दार भी काफी फेमस हैं. आज हम आपको ग्वालियर के राजा जयाजीराव सिंधिया की गद्दारी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका नाम इतिहास में काफी प्रसिद्ध है. बता दें कि ग्वालियर के राजा जयाजीराव सिंधिया पर इतिहास में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के खिलाफ युद्ध करने और देशद्रोह जैसे आरोप लगते आए हैं.
जब्ती का सिद्धांत लागू कर हथिया राज्य
1853 के साल में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पति के मरने के बाद “लॉर्ड डलहौजी” ने जब्ती का सिद्धांत लागू करके उनका राज्य हथिया लिया था, जिस बात से वो काफी नाराज थीं. जिसके चलते वो सिपाही विद्रोह शुरु होने पर विद्रोहियों के साथ मिल गईं और फिर सर यूरोज के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत का डटकर सामना किया. जब अंग्रेजों की सेना किले में घुस गई तो लक्ष्मीबाई किला छोड़कर कालपी चली गईं. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वहां से भी युद्ध जारी रखा. जब कालपी भी छीन गई तो रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे की मदद से ग्वालियर पर हमला बोल दिया. रानी लक्ष्मी बाई के नेतृत्व में बागी ग्वालियर आए तो सिंधिया की निजी सेना ने फिर बागियों के प्रति सहाननुभूति दिखाई. अब ग्वालियर पर विद्रोहियों का कब्जा हो चुका था.
अपने महाराज के खिलाफ बागी सेना ने डाल दिए हथियार
सिंधिया अंग्रेजों के कब्जे वाली सेना के सेनापति बन गया और जब सिंधिया की सेना ने अपने महाराज को सेनापति बना देखा तो उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई और उनकी सेना का साथ छोड़ दिया. जब जयाजीराव सिंधिया अंग्रेजी सैनिकों के साथ रानी लक्ष्मीबाई से युद्ध करने आया तो अपने महाराज को देख ग्वालियर की बागी सेनाओं ने रानी का साथ छोड़ दिया.
लक्ष्मीबाई की मौत पर किया था समारोह और दावत का आयोजन
उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों और सिंधिया की मिली सेना से घिर गईं, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने सभी का सामना किया और लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गईं. वहीं रानी लक्ष्मीबाई की मौत के बाद जयाजीराव सिंधिया ने जीत की खुशी में एक समारोह और भोज का आयोजन किया था, जो कि जनरल रोज और सर रॉबर्ट हैमिल्टन के सम्मान में आयोजित किया गया था. फिर अंग्रेजों ने सिंधिया को ग्वालियर का महाराज घोषित कर दिया और अपना गुलाम बना दिया. देश से की गई इस गद्दारी और ब्रिटिश हुकूमत के लिए की गई वफादारी के चलते जीवाजी राव सिंधिया को अंग्रेजों ने नाइट्स ग्रैंड कमांडर का खिताब भी दिया था.