Madhya Pradesh

ऐसे करें गोवर्धन पूजा, मिलेगा धन लाभ

हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर यानि आज गोवर्धन पूजा मनाई जा रही है. गोवर्धन पूजा दिवाली के दूसरे दिन आती है. हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व होता है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहते हैं. गोवर्धन पूजा उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है. 

डॉ. आचार्य सुशांत राज ने बताया कि मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों इंद्र के प्रकोप से बचाया था और देवराज के अहंकार को नष्ट किया था. भगवान कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत उठाया जाता है.
तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा आरंभ हुई. गोवर्धन पूजा, इसे अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है. दीवाली से अगले दिन मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार 15 नवंबर को यानि आज है. हर साल यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होता है. जिसमें गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है.
इस पर्व में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत ही नहीं बल्कि गाय का चित्र बनाया जाता है व संध्याकाल में इसकी विधि विधान से शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है. इस दौरान गोवर्धन व गाय की विशेष रूप से पूजा की जाती है.


शुभ मुहूर्त व पूजा की विधि
पूजा का शुभ मुहूर्त

इस बार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 03.17 बजे से शाम 5.:24 बजे तक है. 

पूजा की विधि
 

  • दिवाली के अगले दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसे फूलों से सजाया जाता है. 
    –  पूजा के दौरान गोवर्धन पर धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल और फूल आदि चढ़ाएं जाते हैं. इसके अलावा गोवर्धन पूजा पर गाय की विशेष रूप से पूजा की जाती है. इस दिन पशुओं की पूजा की जाती है.
  • गोवर्धन पूजा पर पुरुष के रूप में गोवर्धन पर्वत बनाए जाते हैं. फिर गोवर्धन पुरुष की नाभि पर एक मिट्टी का दीपक रखा जाता है. इस दीपक जलाने के साथ दूध, दही, गंगाजल आदि पूजा करते समय अर्पित किए जाते हैं और बाद में प्रसाद के रूप में बांट दिए जाते हैं.
  •  पूजा के अंत में गोवर्धन की सात परिक्रमाएं लगाई जाती हैं. फिर जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी की जाती है.
  •  गोवर्धन पर्वत भगवान के रूप में माने और पूजे जाते हैं और गोवर्धन पूजा करने से धन और संतान सुख में वृद्धि होती है.
  •  गोवर्धन पूजा के दिन न सिर्फ गोवर्धन पर्वत की पूजा होती है बल्कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी की जाती है.