34 साल बाद शिक्षा क्षेत्र में हुए बड़े बदलाव, जानिए इसकी महत्वपूर्ण बातें
भारत में अब न्यू एजुकेशन पालिसी लागु की गयी है जिसमें अब भारत सरकार 6 % जीडीपी का हिस्सा खर्च करने का निर्णय लिया है. इससे पहले साल 1968 और 1986 में इस विभाग में बदलाव किये गए थे. हमेशा से देश में सरकार के अंदर तथा बहार इस पर चर्चा होती रही है और मुद्दा हमेशा एक था की देश में मनाव विकास मंत्रालय का बजट बढ़ाया जाये लेकिन देश की सीमा से जुड़ा मुद्दा हमेशा से ही देश के लिए महत्वपूर्ण रहा है और जीडीपी का बड़ा हिस्सा डिफेन्स में लगाया गया है जो की अनिवार्य है.
बजट बढ़ाने से सरकार का काम खत्म नहीं हो जाता केंद्र द्वारा कई योजनाए निकाली जाती है लेकिन धरातल पर ना के बराबर नज़र आता है अगर सरकार पूर्ण रूप से योजनाए और बजट धरातल पर उतार सकती तो आज बिहार , झारखण्ड , छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश का ये हाल नहीं होता स्कूल और कॉलेज में टीचर नज़र नहीं आते प्रैक्टिकल के नाम पर लैब्स मौजूद नहीं स्पोर्ट्स के नाम पर हरियाणा और पंजाब छोड़ कोई प्रदेश आगे नहीं है और इन सभी कमी के कारन देश कई चीजों में पीछे चला जाता है.
ओलम्पिक में भारत हमेशा से पीछे रहा है जबकि चीन और अमेरिका ना जाने कितने स्वर्ण पदक जीत जाते है नोबेल पुरुस्कार में भी भारत का नाम काफी पीछे है और यूरोप और अमेरिका के विजेता काफी अधिक है ! किसी में क्षेत्र में कुछ हासिल करने के लिए इन्वेस्टमेंट यानि निवेश की जरुरत होती है आज चीन और अमेरिका या यूरोप का अलग अलग देश हो सभी ने अपने ज़मीन पर काम करके दिखाया है यानि की स्कूल में लैब्स एक अच्छा स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स संगीत सीखने की एक अलग क्लास कंप्यूटर लैब्स आदि ये सभी बुनियादी चीज बच्चो को दिया गया है जिसके बदले जनता अपने देश को अन्तर्राष्ट्रा स्तर पर देश का नाम ऊँचा करके दिखती है.
दुनिआ में टॉप रिसर्च यूनिवर्सिटी में भारत का नाम बोहोत नीचे आता है 200 रैंक से भी पार और अमेरिकन ऑस्ट्रेलियाई चीन और ब्रिटैन के यूनिवर्सिटी टॉप लिस्ट में है यही कारन है जिसके वजह से एक से एक अविश्कार वहा के युवा कर पाते है और भारत में रीसर्च यूनिवर्सिटी के कमी के कारन देश कई मोड़ पर पीछे छूट जाता है.
अब जब देश ने एजुकेशन बजट बढ़ाया ही है तो इसका एक अच्छा परिणाम धरातल पर नज़र आए देश की सराकर को ये सुनिश्चित करना चाहिए.