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मिर्ज़ा ग़ालिब के फैन हैं गुलज़ार साहब: नसीरुद्दीन शाह

एक किस्सा नसरुद्दीन और गुलज़ार साहब का

अजीम शान शायर मिर्जा गालिब से हमारे गुलजार साहब इतने प्रभावित हैं कि वो खुद को पुरानी दिल्ली की गली के बल्ली महरान के मोहल्ले में ग़ालिब के घर का एक नौकर ही मानते हैं. गुलज़ार का एक बरसों पहले सपना था की वो ग़ालिब पर कोई एक फिल्म बनाए. परिचय, कोशिश, नमकीन, मौसम और आंधी जैसी फिल्में संजीव कुमार के साथ करने के बाद उनको यकीन हो गया था कि ग़ालिब के साथ कोई न्याय कर सकता है तो वो है संजीव कुमार और उन्होंने संजीव कुमार के साथ ग़ालिब फिल्म बनाने की घोषणा भी कर डाली. यह खबर जब आम जनता कर पहुंची तो एक कॉलेज छात्र को गुलज़ार का ये फ़ैसला ठीक नहीं लगा. क्योंकि इस छात्र को लगता था की संजीव कुमार ग़ालिब साथ इंसाफ नहीं कर पाएंगे इस रोल के साथ. अगर ग़ालिब के साथ इंसाफ कर सकता है तो वो खुद है. इस कॉलेज छात्र का नाम था नसीरुद्दीन शाह.

नसीरुद्दीन शाह स्कूल और कॉलेज के जमाने से ही थिएटर से जुड़े हुए थे. ग़ालिब के दीवाने और उनकी भी ये ही तमन्ना थी वो गालिब का रोल करें. तो जनाब जब नसीरुद्दीन शाह को ये बात पता चली की गुलज़ार संजीव कुमार को लेकर ग़ालिब बना रहे हैं तो उन्होंने गुलजार को चिठ्ठी लिख डाली. आप अपने निर्णय को दोबारा विचार कर लें क्योंकि संजीव कुमार इस रोल के लिए फिट नहीं है. पहला कारण ये है संजीव कुमार अच्छी उर्दू नहीं बोल पाएंगे और दूसरा ये की उनका उर्दू शायरी से दूक-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. ग़ालिब का किरदार अगर कोई निभा सकता है तो वो मैं हूं… लिहाजा आप फिल्म के लिए तब तक इंतजार करें जब तक मैं फिल्म लाइन ज्वाइन करने के लिए मुंबई ना आ जाऊं.

ये चिठ्ठी गुलजार साहब तक को नही पहुंची, लेकिन चिठ्ठी में लिखी बात ऊपर वाले तक पहुंची और उसने नसीरुद्दीन शाह की बात सुन ली. किसी ना किसी वजह से फिल्म में देरी होती चली गई और फिर 6 नवंबर 1985 को संजीव कुमार भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. इसी बीच 1984 में दिवंगत इंदिरा गांधी की योजना ने दूरदर्शन को अन्य छोटे शहरों में पहुंचाया गया. इसलिए बहुत से निर्माता और निर्देशक इसके जरिए अधिक से अधिक लोगो तक पहुंचने के लिए दूरदर्शन की तरफ मुड़ने लगे. गुलज़ार ने ग़ालिब को इस नए माध्यम में प्रस्तुत करने का फैसला लिया। ये वो वक्त था जब नसीरुद्दीन शाह एक श्रेष्ठ अभिनेता के रुप में स्थापित हो चुके थे. अब जब ग़ालिब के रोल की बात आई तो गुलजार की पहली पसंद थी नसीरुद्दीन शाह तो गुलज़ार उनसे मोल भाव करने लगे. नसीरुद्दीन शाह तब तक इस स्थिति में पहुंच चुके थे की वो अपनी शर्तों पर ही काम करें.

इसलिए उन्होंने गुलजार को अपनी चिठ्ठी की बात बताते हुए का की इतने बरसों बाद जब मुझे आपके साथ ग़ालिब करने का मौका मिल रहा है. तो मैं ये रोल और किसी को करने नहीं दूंगा. रही बात पैसों की तो पैसे भी ग़ालिब अपने हिसाब से लेते थे. तो मैं भी अपने हिसाब से लूंगा. गुलज़ार कहते है, की ये रौब और आत्मविश्वास ग़ालिब की शख्सियत का ही हिस्सा था. जिसने उनके विश्वास को और पक्का कर दिया की ये रोल नसीरुद्दीन के सिवाय और कोई नहीं कर सकता. तो इस तरह नसीरुद्दीन शाह की तमन्ना पूरी हुई मिर्ज़ा ग़ालिब के रोल करने की. इस किरदार को नसीरुद्दीन अपने जीवन का सबसे अहम किरदार मानते हैं.