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मोदी के संसोधन प्रस्ताव को किसानों ने ठुकराया, पढ़े क्या था

नयी दिल्ली: किसानों ने नए कृषि क़ानूनों पर मोदी सरकार के नए प्रस्ताव को ठुकरा दिया है और क़ानून रद्द नहीं किए जाने तक आंदोलन जारी रखने की घोषणा की है. आंदोलनकारी किसान पिछले दो हफ़्तों से दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों की माँग है कि बाज़ार समर्थित तीनों कृषि क़ानूनों को सरकार रद्द करे क्योंकि इससे उनकी आजीविका प्रभावित होगी.
सरकार और किसानों के बीच बातचीत अब अधर में लटकती दिख रही है और ऐसा मालूम पड़ रहा है कि आंदोलन लंबा जा सकता है. किसान यूनियनों ने बुधवार को कहा है कि 14 दिसंबर से उनका आंदोलन और ज़ोर पकड़ेगा.
नई दिल्ली से जाने वाली सभी हाइवे को बंद करने की घोषणा की है और अधिकतम टोल प्लाज़ा को भी नहीं चलने देंगे. मोदी सरकार नए कृषि क़ानून के ज़रिए कृषि बाज़ार को नियंत्रण मुक्त करना चाहती है. सरकार चाहती है कि कृषि बाज़ार में प्राइवेट कारोबारियों को ज़्यादा तवज्जो मिले और सरकार को सब्सिडी नहीं देना पड़े.
किसान सरकार के इस इरादे से डरे हुए हैं कि उन्हें अपना अनाज लागत से भी कम मूल्य पर बेचना होगा. हरियाणा और पंजाब के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी ख़रीद का सबसे ज़्यादा फ़ायदा मिलता है. वहीं बिहार जैसे राज्यों में जहां ये सिस्टम प्रभावी नहीं है वहां किसानों को अनाज औने-पौने दाम पर बेचना होता है.
किसानों का कहना है कि सरकार नए कृषि क़ानून के ज़रिए खेती कॉर्पोरेट के हाथों में सौंपना चाहती है. बुधवार को सरकार ने किसानों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की. सरकार की ओर से कुछ लिखित आश्वासन दिए गए. सरकार ने कथित मुक्त बाज़ार में राज्यों के भूमिका बढ़ाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी जारी रखने के लिए लिखित आश्वासन दिए.
इस ज़रिए राज्य सरकार अपने हिसाब से चीज़ों को तय कर सकती है. सरकार ने दूसरे संशोधन प्रस्ताव में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के लिए क़ानूनी कवच मज़बूत करने की बात कही है. इस क़ानूनी कवच से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कार्रवाई के बदले सुरक्षा मिलेगी.
संशोधन प्रस्ताव पर कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल का हस्ताक्षर है. सरकार का कहना है कि इन संशोधनों से किसानों को मार्केट का सामना करने के लिए और आत्मविश्वास मिलेगा. लेकिन किसानों ने सरकार के संशोधन प्रस्ताव को नकार दिया है.
स्वराज इंडिया के प्रमुख योगेंद्र यादव ने मोदी सरकार के संशोधन प्रस्ताव पर कहा है, ”सरकार का प्रस्ताव मिला. वही प्रॉपेगैंडा, वही संशोधन के सुझाव. खोदा पहाड़ निकली चुहिया. किसान संगठनों ने एक स्वर से इन प्रस्तावों को ख़ारिज किया.” उन्होंने अपने ट्वीट में ये टेस्क्स्ट फोटो पोस्ट की है.

स्वराज्य वेदिका के किरण कुमार विस्सा ने कहा कि सरकार के इन संशोधन प्रस्तावों से किसानों की चिंताएं दूर नहीं हो रही हैं. उन्होंने कहा कि सरकार के इन प्रस्तावों को पहले ही नकार दिया गया था फिर भी वही संशोधन प्रस्ताव पेश किया गया है.
विस्सा ने कहा कि सरकार किसी भी तरह से आंदोलन ख़त्म करवाना चाहती है. सरकार के नए संशोधन से राज्यों को अधिकार मिलेगा कि वे प्राइवेट मार्केट के रजिस्ट्रेशन के लिए एक व्यवस्था बनाएं. इसके साथ ही राज्यों को सरकारी मंडी की तरह प्राइवेट मार्केट में भी लेवी सेस और सर्विस टैक्स लगाने का अधिकार होगा.
किसान यूनियनों का कहना है कि सरकारी नियंत्रण वाले मार्केट में लगने वाले लेवी ट्रेड शुल्क अप्रासंगिक हो जाएंगे क्योंकि नियंत्रण मुक्त मार्केट से कड़ी चुनौती मिलेगी. किसान वर्तमान व्यवस्था का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि इसमें उन्हें अपनी उपज की लागत से ज़्यादा तय क़ीमत मिलती है. सरकार के नए संशोधन प्रस्ताव में कहा गया है कि राज्य अपना नियम ख़ुद बना सकते हैं ताकि वो प्राइवेट प्लेयर्स को नियंत्रित कर सकें.

नए क़ानून में स्थानीय डीएम को किसानों और ट्रेडर्स के बीच के विवाद को सुलझाने का अधिकार दिया गया है. किसान यूनियन इस नियम का विरोध कर रहे हैं. सरकार के नए संशोधन प्रस्ताव में कहा गया है कि किसान अपनी पंसद के हिसाब से सिविल कोर्ट का रुख़ कर सकते हैं.
सरकार ने ये भी कहा है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लॉ में पहले से ही किसानों की ज़मीन की बिक्री, लीज़ और गिरवी रखने पर पाबंदी है. सरकार ने कहा है कि कोई भी कॉन्ट्रैक्टर कॉन्ट्रैक्ट के उल्लंघन के मामले में किसानों की ज़मीन ज़ब्त नहीं कर सकता है. सरकार ने कहा है कि अगर इसमें किसानों के पक्ष में कुछ और करने की ज़रूरत होगी तो किया जाएगा.
इसके साथ ही सरकार ने लिखित आश्वासन दिया है कि एमएसपी जारी रहेगी. किसान प्रदूषण फैलाने में मददगार कृषि अवेशेषों को जलाने पर लगाए जाने वाले जुर्माने का भी विरोध कर रहे हैं. सरकार ने इसके लिए भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था खोजने की बात कही है और जुर्माने को कम करने का आश्वासन दिया है.
आख़िर में बिजली संशोधन बिल 2020 को लेकर किसानों ने आपत्ति जताई है. इसमें किसानों को मिलने वाली सब्सिडी ख़त्म होने की आशंका है. अब सरकार ने कहा है कि किसानों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के ज़रिए सब्सिडी मिलेगी. सरकार के साथ चल रही बातचीत में जो किसान प्रतिनिधिमंडल अब तक शामिल होता रहा है उसमें कविता कुरुगंति एकमात्र महिला हैं. उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा है, ”मसला किसी एक संशोधन का नहीं है. समस्या यह है कि सरकार भारतीय कृषि को जिस दिशा में ले जा रही वो ठीक नहीं है. किसानों के हितों से हटाकर खेती को कॉर्पोरेट के हवाले करने की साज़िश है. अगर सरकार इतने संशोधन के लिए तैयार है तो क़ानून ही वापस क्यों नहीं ले लेती.”
कहा जा रहा है कि यह पहली बार है जब मोदी सरकार को ज़मीन से विरोध का सामना करना पड़ रहा है. अभी यह देखा जाना बाक़ी है कि इसका सियासी असर क्या होता है. भारत के किसान जातियों में बँटे रहे हैं और यहाँ पेशा कभी पहचान नहीं बन पाती है. इस बार स्थिति कुछ और नज़र आ रही है.