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ग्वालियर के प्रसिद्ध मंदिर

सूर्य मंदिर

लाल बलुआ पत्थर एवं संगमरमर से बना एक सुंदर पावन स्थल है. ओडिशा में बने सूर्य मंदिर से प्रेरित इस मंदिर का निर्माण उद्योगपति जीडी बिरला ने 1988 में करवाया था. इस मंदिर का बाहरी भाग यद्यपि लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है जबकि भीतरी भाग में संगमरमर का उपयोग किया गया है.

तेली का मंदिर

नौवीं सदी में बना ऐतिहासिक तेली का मंदिर ग्वालियर किले में स्थित है. यह किला परिसर में बनी सबसे ऊंची संरचना है. इस मंदिर का 100 फुट ऊंचा शिखर सुंदर नक्काशी से सुसज्जित है जो किले पर प्रभुत्व जमाता है. भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर भगवान की सवारी गरुड़ का भी गुणगान करता है.
इस मंदिर के नाम के साथ अनेक किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं. एक कथा के अनुसार, इस मंदिर के निर्माण के लिए तेली अर्थात् तेल के कारोबारी ने धन दिया था. यद्यपि दूसरी कथा में कहा गया है कि इसका निर्माण दक्षिण भारत के तेलंगाना के शाही परिवार द्वारा बनवाया गया था. यह किंवदंती मंदिर में उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय वास्तुकला शैलियों के मिश्रण का भी समर्थन करती है.

सोनागिरी

सफे़द जैन मंदिरों का एक बड़ा समूह जो 9वीं सदी में बनाया गया था, सोनागिरी के परिदृश्य को चिह्नित करता है. ग्वालियर से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये 77 मंदिर शत्रुंजय पहाड़ी पर स्थित हैं जो दूर से दृष्टिगोचर होते हैं. मुख्य मंदिर भगवान चंद्रप्रभु को समर्पित है जो आठवें जैन तीर्थंकर थे तथा यहां पर उनकी 11 फुट ऊंची मूर्ति भी बनी हुई है. ऊंचे शिखर वाले इस मंदिर में भगवान शीतलनाथ एवं भगवान पार्श्वनाथ की सुंदर प्रतिमाएं भी बनी हुई हैं. मंदिर के निकट 43 फुट ऊंचा मान स्तंभ भी बना हुआ है. जैन श्रद्धालुओं द्वारा बेहद पावन माने जाने वाले इन मंदिरों में हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में बेहद लोकप्रिय वार्षिक महोत्सव आयोजित किया जाता है.

चतुर्भुज मंदिर

चट्टानों में बना चतुर्भुज मंदिर चार भुजाओं वाले भगवान के मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है, जो ग्वालियर किले की पूर्वी दिशा में स्थित है. यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण 876 ईसा पूर्व में हुआ था. यह मंदिर शिलालेख पर अंकित विश्व के सबसे प्राचीन ज्ञात शून्य के लिए अधिक प्रसिद्ध है. मंदिर के भीतर, भगवान विष्णु की प्रतिमा एवं शिलालेख पर अंकित शून्य विद्यमान है. मंदिर में शून्य अंकित दो आकृतियां हैं तथा मंदिर का संरक्षक अथवा टूर गाइड इन्हें इंगित कर सकता है. यद्यपि किले की पूर्वी दिशा में कठिन चढ़ाई है तथा पत्थरों वाला यह पथ कार द्वारा पार नहीं किया जा सकता. इस मंदिर को देखने के लिए कोई भी किले के ऊपरी भाग से आधा रास्ता नीचे भी आ सकता है.