द्वारका प्रसाद वर्मा : अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर देश आजाद करा दिया. लेकिन सरकार से हारकर आत्म हत्या कर ली. अब उनकी पत्नी पशु चराकर गुजारा कर रही है
देश को आजादी दिलाने के लिए लाखों लोगों ने बलिदान दिया. उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों यातनाएं सहीं. इन्हीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक थे स्व. द्वारका प्रसाद वर्मा. जिन्होंने अंग्रेजों की खिलाफत की. जिसके लिए वो जेल गए थे. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दस दिन तक सलाखों में रहे. यातनाएं सहीं. भूखे-प्यासे आजादी का सपना संजोते रहे. लेकिन, उन्होंने कभी अंग्रेजों के आगे हार नहीं मानी.
जब देश आजाद हुआ तो उन्हें लगा कि शायद उनके संघर्षों पर विराम लगेगा. लेकिन, देश की सरकार उनको उनके हक की पेंशन तक न दे पायी. वे दर-दर भटकते रहे. गुहार लगाते रहे. लेकिन, जब कुछ न हुआ तो अंग्रेजों से हार न मानने वाला यह सेनानी खुद की सरकार से हार गया और खुद को आग के हवाले कर दिया.
पशुओं को चराकर गुजारा कर रहीं पत्नी
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी द्वारका प्रसाद वर्मा की पत्नी चंपाबाई अब मध्यप्रदेश के बैतूल में एक झोपड़ी में रहती हैं. उनका गुजारा दूसरों के मवेशी चराकर होता है. जैसे-तैसे दो वक्त की रोटी मिल जाती है, उसी से उनका पेट भी भर जाता है. वह बताती हैं कि पेंशन के लिए उनके पति बहुत दौड़े. लेकिन, जब उन्हें कोई उम्मीद न दिखी तो 2002 में खुद को आग के हवाले करके उन्होंने आत्महत्या कर ली. दो बेटे थे, उन्होंने भी किनारा कर लिया. इसके बाद भी सरकार ने उनपर ध्यान नहीं दिया.
मदद के नाम पर थमा दिया बस का फ्री पास
चंपाबाई कहती हैं कि उन्हें मदद के नाम पर बस का पास थमा दिया गया था. लेकिन, उसका क्या करें, यह समझ नहीं आता. वह बताती हैं कि हर राष्ट्रीय पर्व पर उन्हें आमंत्रित किया तो जाता है. लेकिन, इसके बाद सरकार हाल पूछना भी भूल जाती है.
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघ ने भी उनकी पेंशन के लिए प्रयास किये लेकिन कुछ नहीं हुआ. उनके साथ जेल गए बाकी सेनानी और उनके परिवार पेंशन प्राप्त करते रहे. 19 अगस्त 2009 को तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर ने एसडीएम की एक जांच के बाद जिला कोषालय अधिकारी को भी पत्र भेजा गया था. जिससे चंपा बाई को पेंशन मिल सके. सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ.