मानवता शर्मशार : गुना में टायर और डीजल से किया गया दलित महिला का अंतिम संस्कार
गुना में एक अत्यंत ही शर्मनाक मामला सामने आया है. यहां आजादी के बाद से लेकर आज तक दलितों को श्मशान घाट तक मुहैया नहीं हुआ है. उन्हें परिजनों की मौत के बाद खुद ही सारा इंतजाम करना होता है. ऐसा ही एक मामला जिले के बांसाहैड़ा गांव में देखने को मिला. यहां 45 साल की एक महिला की मौत के बाद ग्रामीणों को न केवल चिता के लिए जरूरी चीजों, बल्कि टीन की चादरों से लेकर शेड तक की व्यवस्था खुद करनी पड़ी. महिला के शव को टायर और डीजल से जलाना पड़ा.
जानकारी के मुताबिक, बांसाहैड़ा गांव की 45 साल की महिला रामकन्या बाई हरिजन की शुक्रवार सुबह 10:00 बजे मौत हो गई. लेकिन, तेज बारिश के चलते परिजनों ने मृतक का शव डेढ़ घंटे तक घर में ही रखा. जब बहुत देर तक बारिश बंद नहीं हुई तो परिजन और गांव वाले शव को लेकर श्मशान घाट पहुंचे. बता दें, यहां तक आने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है. लोगों को कीचड़ भरे रास्ते से आना पड़ता है. इसकी वजह से कई बार शव के गिरने की डर बना रहता है.
जैसे-तैसे किया अंतिम संस्कार
गांव वाले जब रामकन्या का शव लेकर श्मशान घाट पहुंचे, तो यहां न कोई टीन शैड था और न ही कोई चबूतरा जिस पर शव का अंतिम संस्कार किया जा सके. ऐसे में लोगों ने गांव से 2 टीन की चादरें मंगवाईं और जैसे-तैसे चिता तैयार की. चूंकि, बारिश में लकड़ियां गीली थीं, तो कुछ लकड़ियों के नीचे टायर रखकर जलाए गए, तब आग पकड़ सकी. इसके बाद शेड के रूप में 10-12 गांववाले खुद खड़े हो गए. उसके बाद महिला का डीजल डालकर अंतिम संस्कार किया जा सका. ग्रामीणों ने बताया कि आज तक उनके गांव में श्मशान घाट नहीं बना है. उन्हें हर बारिश में इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव वालों ने कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी शिकायत की, लेकिन कोई व्यवस्था नहीं हुई.
राजनेता-अधिकारी करते हैं केवल वादे
गौरतलब है कि यह दलित बाहुल इलाका है. यहां दलित समुदाय के 1000 से अधिक परिवार निवास करते हैं. लोग कहते हैं कि बारिश में पंचायत की तरफ से भी कोई मदद मुहैया नहीं कराई गई. इसके चलते डीजल और टायरों से चिता को जलाया जाता है. गांव वालों ने कहा कि राजनेता और अधिकारी मंचों से बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन हकीकत उल्टी है.