श्राद्ध में कौवे को खूब मिलता है मान-सम्मान
अक्सर कौवे को देखकर लोग भगा देते हैं लेकिन अगर पितृ पक्ष में कौआ दिखे तो लोग उसे भोजन कराते हैं, क्योंकि कौवे को पूर्वजों का प्रतीक माना जाता है. आपने कभी सोचा कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है. लोगों में यह मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान कौवे को जो भी भोजन खिलाया जाता है वह पितरों को प्राप्त होता है.
रतीय समाज में कौआ का कांव-कांव करना अच्छा नहीं माना जाता. एक तो कौवे की कानों को चुभने वाली आवाज और दूसरी ओर उसका सर्वाहारी होना लोगों को पसंद नहीं आता. अन्य पक्षियों की तुलना में कौआ गंदा समझा जाता है. शायद इसीलिए लोग कौओं को अपने आस पास आश्रय नहीं देते. कौवे के घर में आने पर अक्सर लोग उड़ा देते हैं. लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष यानी श्राद्ध के दौरान 15 दिन तक कौओं को काफी सम्मान के साथ देखा जाता है.
लोगों में यह भी मान्यता है कि कौआ और पीपल का पेड़ पूर्वजों के प्रतीक होते हैं. श्राद्ध के दौरान इन्हें जो कुछ भी अर्पण किया जाता है वह पूर्वजों तक पहुंचता है. इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. इसीलिए श्राद्ध के इन 15 दिनों को कौओं में मेहमान माना जाता है. इस वजह से लोग कौवे को जरूर खिलाते हैं. इसके साथ ही पीपल की भी विशेष पूजा की जाती है. यही नहीं लोगों में कौवे को लेकर तमाम अशुभ मान्यताओं के साथ ही कई सकारात्मक मान्यताएं भी हैं.
शुभ होते हैं कौवे के ये संकेत
माना जाता है कि कौआ जब घर की छत, मुंडेर या खपरैल पर बैठकर सुबह कांव-कांव करता है तो शुभ माना जाता है. कहते हैं कौवे का बोलना घर में मेहमान आने का संकेत देते हैं. यह भी कहा जाता है कि कौवा यदि किसी कुंवारी लड़की के ऊपर से उड़कर निकले तो समझो कि जल्द ही उसकी शादी होने वाली है। साथ यदि विवाहित महिला के ऊपर से उड़कर निकले तो माना जाता है कि उसकी गोद भरने वाली है. कौआ की चोंच में फूल पत्ती दिखे तो मनोरथ की प्राप्ति के संकेत हैं. इसी प्रकार कौवे को देखने के कई अन्य भी शुभ व अशुभ विचार हैं.