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उज्जैन में महाष्टमी पर की गई नगर पूजन, देवी महामाया और महालया को लगा मदिरा का भोग, 27 किमी की यात्रा में 40 मंदिरों पर चढ़ेगी धार…

भोपाल : उज्जैन में प्राचीन काल से नगर पूजन की परंपरा का निर्वहन हर नवरात्रि की अष्टमी पर किया जाता है। इस दिन 24 खंबा माता पर मौजूद देवी महामाया और महलया को मदिरा का भोग लगाया जाता है। यहां से मदिरा की धार शहर के सभी देवी मंदिरों से होती हुई गुजरती है। यह पूजन नगर की सुख समृद्धि की कामना को लेकर आयोजित की जाती है। आज 5 अप्रैल को महाअष्टमी के मौके पर एक बार फिर नगर वासियों की सुख समृद्धि की आशा के साथ पंचायती अखाड़ा निरंजनी ने नगर पूजन की शुरुआत की। मंदिर पर माता को मदिरा का भोग लगाने के बाद लगभग 27 किलोमीटर लंबी यात्रा निकलती है। जिसपर मदिरा की धार चलती रहती है।

माता को लगाया गया भोग

हर साल की तरह इस साल भी देवी महामाया और महलया को मदिरा का भोग लगाकर इस पूजन की शुरुआत की गई। बता दें कि 1 अप्रैल से उज्जैन सहित प्रदेश के 19 शहरों में शराबबंदी की घोषणा कर दी गई है। यह पारंपरिक और सरकारी पूजन है इसके चलते आबकारी विभाग के अधिकारी एक पेटी देसी शराब और दो बोतल अंग्रेजी शराब लेकर माता मंदिर पहुंचे। इस बार माता को बोतल से भोग लगाने की जगह चांदी के पात्र में मदिरा अर्पित की गई। इस पूजन के दौरान निरंजनी अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज, अन्य संत और अधिकारी मौजूद रहे।

27 किलोमीटर की यात्रा, 40 मंदिरों पर पूजन

उज्जैन में इस नगर पूजन का आयोजन सम्राट विक्रमादित्य के काल से चला रहा है। मदिरा की धार 24 खंबा माता मंदिर से 27 मिलीमीटर का मार्ग तय कर हांडीफोड़ भैरव तक जाती है। इस दौरान बीच में लगभग 40 देवी, भैरव और हनुमान मंदिर आते हैं। जहां देवी और भैरव मंदिरों में मदिरा और हनुमान मंदिर में ध्वजा अर्पित की जाती है। इस पूजा को नगर के कलेक्टर द्वारा संपन्न किया जाता है। राजा विक्रमादित्य खुद ही पूजन किया करते थे और अब नगर का राजा वहां का कलेक्टर होता है इसलिए यह पूजा उन्हीं के हाथों संपन्न होती है।

विक्रमादित्य के समय से चल रही परंपरा

उज्जैन में नगर पूजन की शुरुआत का इतिहास हजारों साल पुराना है। उज्जैनी के सम्राट विक्रमादित्य अपने शासनकाल में 24 खंबा माता मंदिर पर नगर पूजन किया करते थे। वह देवी महामाया और महालया के साथ भैरव पूजन संपन्न करते थे। सब कुछ नगर और यहां रहने वाले लोगों की सुख, समृद्धि और खुशहाली के लिए किया जाता था। किसी तरह की बीमारी और प्राकृतिक प्रकोप न हो और सब कुछ कुशल मंगल रहे इसी कामना के साथ ही परंपरा हर साल निभाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इससे माता और भैरव जी प्रसन्न होकर नगर की रक्षा करते हैं।