महाष्टमी पर हुई उज्जैन में सुख समृद्धि के लिए हुई नगर पूजा, देवी को अर्पित की मदिरा की धार
नवरात्रि की महाष्टमी पर शनिवार को नगर पूजा हुई। निरंजनी अखाड़े ने यह नगर पूजा की। पूजा के दौरान चौबीस खंभा स्थित महामाया व महालया मंदिर में पूजन कर देवी को मदिरा अर्पित की गई। शहर के अन्य देवी व भैरव मंदिरों में भी पूजन किया।
नगर की सुख समृद्धि के लिए नवरात्रि में यह पूजन किया जाता है। यह परंपरा सम्राट विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है। शारदीय नवरात्रि में शासन की ओर से नगर पूजा की जाती है जबकि चैत्र नवरात्रि में नगर पूजा की शुरुआत कुछ साल पहले निरंजनी अखाड़े ने की है। शनिवार को महाअष्टमी पर अखाड़े की ओर से महंत रवींद्रपुरी महाराज ने अन्य संतो की उपस्थिति में साथ पूजा की। सुबह माता महामाया व महालया का पूजन कर मदिरा की धार लगाई गई। परंपरा अनुसार देवी व भैरव को मदिरा अर्पित कर पूजा अर्चना की जाती है। बताया जाता है कि यह भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर माता को मदिरा चढ़ाने के बाद 40 से अधिक मंदिरों में ये शराब की धार चढ़ाई जाती है। माता का पूजन के बाद संतो ने हाथ में देवी व भैरव मंदिरों में अर्पित होने वाले भोग के साथ ही हांडी में मदिरा भरी और रवाना हुए। इस दौरान नगर परिक्रमा की जाती है जिसमें मदिरा की धार टूटती नहीं है। नगर के परिक्षेत्र में स्थित 40 से अधिक देवी व भैरव मंदिरों में भोग आदि अर्पित करते हुए परिक्रमा का समापन हांडी फोड़ भैरव मंदिर मंगल नाथ मार्ग पर होता है। अध्यक्ष रविंद्र पुरी के अनुसार प्राचीन काल से नगर पूजा नगर में देवीय प्रकोप रोग आदि से बचाव व नगर की सुख समृद्धि के लिए किया जाता है। बीते कुछ वर्षों से निरंजनी अखाडे द्वारा चैत्र नवरात्रि के दौरान नगर पूजा का आयोजन किया जाता है। नगर पूजन के दौरान नगर व विश्व की सुख समृद्धि हेतु चौबीस खंभा स्थित माता महालाया व महामाया को मदिरा (शराब) अर्पित करते हैं। पूजन के बाद कोतवाल परंपरा अनुसार एक हांडी में शराब लेते हैं जिसमें छोटा छेद होता है। 27 किलोमीटर तक पैदल भ्रमण कर मार्ग में आने वाले करीब 40 मंदिरों में धार को अर्पित करते हैं जो देर शाम तक चलती है, साथ ही मदिरा को प्रसाद स्वरूप श्रद्धालु भी ग्रहण करते हैं।