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बौद्ध गुरु ने खोला भूटान के सबसे खुश देश होने का राज, आप भी इसे अपनाकर रह सकते हैं खुश

भूटान, जिसका नाम सुनते ही हमारे दिमाग में तस्वीर बन जाती है. दुनिया के सबसे छोटे देशों में से एक देश. गरीब होकर भी दुनिया का सबसे खुश रहने वाला देश. निश्चित और कम संसधानों में ही संतोष कर लेने वाले एक छोटे से राष्ट्र के खुशहाल नागरिक. अभी जब वहां की सरकार ने कोरोना के पश्चात दुनियाभर के लिए अपनी देश की सीमाओं का ऐलान किया तो तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आयीं. किसी ने सर्कार के इस फैसले का स्वागत किया तो किसी ने इस फैसले के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. लेकिन इन सबमें एक बौद्ध भिक्षु ने अपना एक अलग ही दृष्टिकोण सामने रखा.

भूटान पिछले कई वर्षों से चीन व भारत के बीच पिसा हुआ सा है. उसकी हालत किसी सैंडविच के बीच में लगे आलू के मसाले व सब्जियों की तह हो चुकी है. वैसे तो वहां 760,000 की जनसंख्या है. जोकि भारत के किसी एक जिले से भी कम है. लेकिन तब भी यह देश तथा यहाँ के नागरिक दुनिया में सबसे खुश रहते हैं. भूटान के नागरिकों के बारे में कहा जाता है कि यह लोग अपनों के साथ-साथ दूसरों की भी चिंता करते हैं. वह अपने देश, जमीन, प्रकृति की चिंता करते हैं.

शांति की प्राप्ति ही अंतिम लक्ष्य

पिछले लगभग 13 वर्षों से भूटान व बौद्ध धर्म के बारे में दुनिया को शिक्षा देने वाले दुनिया सबसे युवा बौद्ध गुरु रिनपोछे का मानना है कि व्यक्तियों की हर प्रकार शांति प्राप्त करना ही लक्ष्य होता है. शांति को प्राप्त करने के लिए इंसान कर्म कर रहा है. आप चाहे इस तथ्य को स्वीकार करें या नहीं लेकिन इंसान का अंतिम मकसद शांति को प्राप्त करना ही होता है.

कोरोना महामारी से पहले, रिनपोछे ने दुनिया भर की यात्रा की. वह दुनियाभर में घूमकर-घूमकर बौद्ध धर्म व शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर रहे थे. वह भूटान में पहली बौद्ध अकादमी बनाने के लिए भी काम कर रहे थे, जोकि दुनिया के सभी लोगों के लिए खुली रहती. फिर चाहे आप किसी भी देश या धर्म के ही क्यों न होते.

चार चीजों से व्यक्ति प्राप्त कर सकता है शांति

रिनपोछे ने कहा, “मैं जो कुछ भी कर रहा था उसे इस महामारी ने रोक दिया। मैंने इसे एक अवसर के रूप में लिया. इसे मैंने अपने अनुभव, ज्ञान और दुनिया को समझने के अवसर के रूप में लिया. वो बताते हैं कि, “मैं पहाड़ों पर गया और वो भी बहुत कम भोजन के साथ. जहां खतरनाक मौसम था. रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था. मैं वहां एक गुफा में रहा. जहां मैंने अपनी शिक्षाओं को आत्मसात करने का समय दिया. जिसने मुझे ज्ञान दिया कि बाहरी वस्तुओं से असली प्रसन्नता को प्राप्त नहीं किया जा सकता.

वो बताते हैं कि बेशक हर व्यक्ति शांति प्राप्त करने के लिए इस तरह से पहाड़ों आदि पर नहीं जा सकता. लेकिन हमें सांसारिक मोह-माया में ख़ुशी तलाशना बंद कर देना चाहिए. मेरे अनुसार व्यक्ति प्रेम, दयालुता, करुणा और अच्छे कर्मों से आसानी से प्रसन्नता व शांति प्राप्त कर सकते हैं. फिर चाहे वो कहीं भी जी रहे हों. किसी भी हालातों में रह रहे हों. इन चार चीजों से व्यक्ति शांति प्राप्त कर सकता है.

रिनपोछे के अनुसार, प्रेमपूर्ण दयालुता “न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि दूसरों के लिए भी खुशीदेने का माध्यम ” उन्होंने पहले खुद के प्रति दयालु होने के महत्व पर जोर दिया और जाना कि कैसे दूसरों के प्रति करुणा की ओर ले जाया जा सकता है.” आपको खुद से प्यार करना चाहिए और वास्तव में पता होना चाहिए कि कोई भी परिस्थिति हो, आप काफी अच्छे हैं. इससे आप दूसरों को भी प्यार दे सकते हैं तथा उन्हें खुश रहने का रास्ता बता सकते हैं.

संकट में घबराना कभी सीखा ही नहीं

भूटान के ही एक टूर गाइड चुंजुर दोज़ी का मानना है कि भूटान की नींव में ही सामूहिक करुणा की भावना निहित है. यहां लोग उन्हीं कार्यों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे पूरे समुदाय को लाभ हो. भूटान के निवासी उन कार्यों को करने से बचते हैं, जिससे अपना फायदा हो और दरों का नुक्सान. और यह भावना हमे हमारे ज्ञान व संस्कारों से आती है. और कहीं न कहीं खुश रहने के लिए यह एक शानदार व कारगर माध्यम है.

कोरोना महामारी के दौरान जब सब कुछ बंद हो गया. यहाँ बाहर से आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अभी तक बाहर देशों से आने वाले पर्यटकों से मेरा जीवन यापन हो रहा था. मुझे लगता था कि टूर गाइड की नौकरी कभी नहीं जाएगी. लेकिन मेरी वह नौकरी अब जा चुकी थी. अब मेरे सामने एक भयानक परिस्थित थी. इस दौरान मैंने अपने आपको दोबार जानना शुरू किया. मैं अपने गांव लौट आया. मैं परेशां था लेकिन निराश न…