बॉलीवुड सिंगर किशोर कुमार की जयंती : सादी पान की पत्ती चबाते थे किशोर कुमार, जादुई आवाज बनाए रखने के लिए
Bollywood singer kishore kumar Birth anniversary : भागलपुर। हिंदी सिनेमा जगत के लगभग 90 वर्षो के इतिहास में दशकों तक छाए रहने वाले प्रख्यात पाश्र्व गायक, अभिनेता व निर्माता-निर्देशक के रूप में योगदान देकर हिंदी चलचित्र का मील का पत्थर माने जाने वाले किशोर कुमार का ननिहाल भागलपुर में ही था।
शहर के आदमपुर मोहल्ले में स्थित राज परिवार की राजबाटी में उनके नाना सतीश चंद्र बनर्जी रहते थे। छुटपन में वे मां के साथ अक्सर ननिहाल आते थे। उनकी चचेरी भतीजी तथा तिलकामांझी भागलपुर विवि की पूर्व डीन व प्राध्यापिका डा. मुखर्जी कहती हैं कि मशहूर पाश्र्वगायक किशोर कुमार अपनी जादुई आवाज को बचाए रखने के लिए रोज खाना खाने के बाद खालिस पान की एक पत्ती अवश्य चबाया करते थे। वे मानते थे कि पान की पत्ती चबाना गले के लिए फायदेमंद होता है।
गर्मियों की छुट्टियों में आम खाने जाते थे सुल्तानगंज
अशोक कुमार के चचेरे साले सोमनाथ बनर्जी के अनुसार गर्मी की छुट्टियों में किशोर कुमार बड़े भाई अशोक कुमार के साथ अक्सर मामा शानू बनर्जी के घर भागलपुर आते थे और मीठे आम खाने सुल्तानगंज स्थित बगीचा जाया करते थे। इस दौरान ट्रेन से सुल्तानगंज जाने के दौरान राह में आने वाले सभी स्टेशनों की गिनती करते जाते थे।
माता-पिता के थे परम भक्त
किशोर कुमार माता-पिता के परम भक्त थे। वे उन्हें भगवान तुल्य मानते थे। वे उनकी हर सुविधा का ख्याल रखते थे। वे उन्हें कदापि अकेला नहीं छोड़ते थे। 1970 में जब उन्हें संगीत समारोह में भाग लेने भागलपुर आना था तब उन्होंने मां की देखभाल करने मेरी मां और मुझे मुंबई बुला लिया था। उस दौरान हमलोगों को नानी जी से किशोर चाचा के बारे में बहुत सी बातें जानने का मौका मिला था।
1970 में किशोर आखिरी बार आए थे ननिहाल
किशोर कुमार अंतिम बार फैन्स एसोसिएशन की फरमाइश पर स्थानीय सैंडिस कंपाउंड में आयोजित संगीत समारोह में भाग लेने यहां आए थे। उसमें अपार भीड़ उमड़ी थी। सभी लोग इस हस्ती की एक झलक पाने और मिलने को बेताब थे। प्रबंधकों द्वारा भीड़ को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में समारोह जैसे-तैसे पूरा किया गया था और चाचा जी को रातोरात स्थानीय सर्किट हाउस से बागडोगरा एअरपोर्ट पहुंचाया गया था। वहां से वे मुंबई चले गए थे।
गंभीर मसलों को भी हंसी-खुशी में सुलझाने में थे माहिर
डा. रत्ना मुखर्जी कहती हैं कि एक बार जब वे पुरी के जगन्नाथ मंदिर पूजा करने गए तो पंडों ने उन्हें मुश्लिम महिला से शादी करने के कारण अंदर जाने से मना कर दिया। इस पर पहले तो किशोर चाचा ने उन्हें जाति-धर्म न जाने की दलीलें देते हुए उनसे इजाजत देने का अनुरोध किया। इस पर उनके न पसीजने पर वे अनायास बोल पड़े हम तो इस बार मोटी दक्षिणा देने की तमन्ना लेकर आए थे। लेकिन लगता है कि मुझे यूं ही लोटना पड़ेगा। वापस लौटने की बात सुनते ही पंडों ने आपस में सलाह की और उन्हें मंदिर जाकर पूजा करने की इजाजत दे दी।
भागलपुर के सिल्क कुर्ता के थे शौकीन
रत्ना मुखर्जी बताती हैं कि किशोर चार्चा लूंगी व रेशमी कुर्ता पहनने के शौकीन थे। उनके लिए चेन्नई से लूंगी व भागलपुर से रेशमी कुर्ता के लिए मलवरी का कपड़ा जाता था। इनकी मां मेरी मुखर्जी उनके लिए मलवरी रेशम के कपड़े लेकर जाती थीं। 1970 में भी वे रेशमी कुर्ते का कपड़ा ले गई थीं।