जन्मदिन स्पेशल : मध्य प्रदेश का चुनावी सफर कैसा था अटल बिहारी बाजपेयी का, यहाँ पढ़े
मध्य प्रदेश: पूर्व प्रधानमंत्री और ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो चार राज्यों के छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके थे. उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी इकलौते नेता हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ, इस दिन को भारत में बड़ा दिन कहा जाता है. वाजपेयी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए. 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ तो श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ अटलबिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका रही.
उत्तर प्रदेश का चुनावी सफर
वर्ष 1952 में अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली. वे उत्तरप्रदेश की एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतरे थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार सफलता 1957 में मिली थी. 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया. लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर वे लोकसभा पहुंचे. वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में लखनऊ सीट से उतरे, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी. इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने गए. बाद में 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव हुआ, जहां से वे जीतकर सांसद बने.
वाजपेयी के असाधारण व्यक्तित्व को देखकर उस समय के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा.
इसके बाद 1968 में वाजपेयी जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता थे.
मध्य प्रदेश का चुनावी सफर
1971 में पांचवें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्यप्रदेश के ग्वालियर संसदीय सीट से चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में 1977 और फिर 1980 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1984 में अटलजी ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव का पर्चा दाखिल कर दिया और उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया, जबकि माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे. सिंधिया से वाजपेयी पौने दो लाख वोटों से हार गए. वाजपेयीजी ने एक बार जिक्र भी किया था कि उन्होंने स्वयं संसद के गलियारे में माधवराव से पूछा था कि वे ग्वालियर से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे. माधवराव ने उस समय मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की रणनीति के तहत अचानक उनका पर्चा दाखिल करा दिया गया. इस तरह वाजपेयी के पास मौका ही नहीं बचा कि दूसरी जगह से नामांकन दाखिल कर पाते. ऐसे में उन्हें सिंधिया से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद वाजपेयी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह से जीते. बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी.