Madhya Pradesh

भाई दूज की इसलिये की जाती है पूजा, पढ़े

भाई की लंबी आयु की कामना करते हुए सोमवार को बहनों ने व्रत रखा. बहनों ने सर्वाथ सिद्ध योग में भाईयाें को तिलक लगाया. भाई दूज पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है. द्वितीया तिथि सोमवार को सुबह 7:07 बजे से प्रारंभ होकर 17 नवंबर सुबह 3.57 बजे तक रहेगी. भाई दूज पर तिलक का समय दोपहर 1.10 से 3.18 मिनट तक रहेगा. ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग होने के कारण भाई दूज पर्व पर किए कार्य सिद्ध होंगे. ऐसी मान्यता है कि जो बहन भाई दूज के दिन अपने भाई को श्रद्धा से कुमकुम का तिलक करती. उसकी आयु लंबी होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्व काल में यमुना ने यमदेव को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था. जिससे उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और वे तृप्त हुए. पाप मुक्त होकर वे सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो गए.

इस तरह किया बहनों ने भाईयों को तिलक


भाई दूज पर आसन पर चावल के घोल से चौक बनाया. इस चौक पर भाई को बिठाकर बहानों ने उनके हाथों की पूजा की. भाई के हाथों पर चावल का घोल लगाया. उसके ऊपर सिंदूर लगाकर फूल, पान, सुपारी तथा मुद्रा रख कर धीरे-धीरे हाथों पर पानी छोड़ते हुए इस मंत्र का जाप किया…’गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को. सुभद्रा पूजे कृष्ण को गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई आप बढ़े फूले.”इसके उपरांत बहन भाई के मष्तक पर तिलक लगाकर कलावा बांधा व भाई को मिठाई, मिश्री, माखन खिलाई. इसके बाद यमराज के नाम का चौमुखा दीपक जलाकर घर की दहलीज के बाहर रखें. जिससे उसके घर में किसी प्रकार के विघ्न व बाधा न आएं व जीवन सुखमय व्यतीत हो.

इस तरह मनाई जाती है अंचल में भाई दूज

ग्वालियर चंबल अंचल में दूज के दिन भाई अपनी बहन के घर जाता है. दूज का टीका कराने के बाद वह बहन को उपहार देता है. बहन भाई के माथे पर टीका करके उसकी लंबी उम्र की कामना करती है.

इसलिए मनाई जाती है भाई दूज

भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था. उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था. यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी. वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो. अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा. कार्तिक शुक्ला का दिन आया. यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया.

यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं. मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता. बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है. बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया. यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया. यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्ना होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया. यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो. मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे. यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की. इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी. ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता. इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है.