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आखिर क्या है बुढ़वा मंगल का इतिहास

भादौं माह के अंतिम मंगलवार को माए जाने वाला त्यौहार बुढ़वा मंगल, मध्य उत्तर प्रदेश अर्थात व्रज मंडल में हनुमान जी का सबसे प्रसिद्ध उत्सव है। इस पर्व की महत्ता इतनी अधिक है कि स्थानीय लोग हनुमान जयंती से भी अधिक भव्य इस त्यौहार को मानते हैं। इस वर्ष बुढ़वा मंगल एवं राधाष्टमी दोनों ही पर्व एक ही दिन अर्थात 14 सितंबर 2021 को आयोजित किए जा रहे हैं।

बुढ़वा मंगल का इतिहास

प्रथम मत:
महाभारत काल में हजारों हाथियों के बल को धारण किए भीम को अपने शक्तिशाली होने पर बड़ा अभिमान और घमंड हो गया था। भीम के घमंड को तोड़ने के लिए रूद्र अवतार भगवान हनुमान ने एक बूढ़े बंदर का भेष धारण कर उनका घमंड चूर-चूर कियाआगे यही दिन आगे चलकर बुढ़वा मंगल कहलाने लगा।

द्वितीय मत:
एक अन्य मत के अनुसार रामायण काल में भाद्रपद महीने के आखिरी मंगलवार को माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान जी की पूंछ में रावण ने आग लगा दी थी। हनुमान जी ने अपने विराट स्वरूप को धारण कर लंका को जलाकर रावण का घमंड चूर किया।