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अबला नवमी पूजा देती है अक्षय फल, जानिए पौराणिक कथा और महत्व…

कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है. इस वर्ष 12 नवंबर को आंवला नवमी व्रत होगा. यह अक्षय नवमी भी कही जाती है. आइए जानते हैं इस पूजन विधि और पौराणिक कथा.आंवला नवमी के दिन जो भी शुभ काम किया जाए, उसमें हमेशा बरकत मिलती है. कभी उसमें क्षय नहीं होता. मान्यता है कि इस दिन विशेष पूजा से अक्षय फल वरदान मिलता है. इस दिन आंवला के पेड़ की पूजा (Amla Navami Puja Vidhi) कर स्वस्थ रहने की कामना की जाती है. आंवला वृक्ष की पूजा के बाद पेड़ के नीचे ही बैठकर ही आंवला प्रसाद का भोजन करना चाहिए. इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस पर्व को अक्षय नवमी, धात्री नवमी और कूष्मांडा नवमी भी कहते हैं.यह भी माना जाता है कि आंवला नवमी के दिन से ही द्वापर युग की शुरुआत हुई थी. इसी युग में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्णजी ने जन्म लिया था. इसी दिन कृष्ण ने वृंदावन गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था, जिसके चलते आज के दिन वृंदावन परिक्रमा होती है. ऐसे में दिन का लाभ लेने के लिए जानिए पूजा की खास विधि.आंवला नवमी पूजन मुहूर्तआंवला नवमी पर शुक्रवार 12 नवंबर को पूजा का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगा.पूजन विधिसूर्योदय से पहले उठकर साफ कपड़े पहनें और पूजन की सामग्री के साथ आंवला के पेड़ के पास आसन लगाएं. पेड़ की जड़ के पास सफाई कर जल और कच्चा दूध अर्पित करें. पूजन सामग्री से आंवला वृक्ष की पूजा करें. तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटें. यह करते हुए वृक्ष की आठ बार परिक्रमा करें. कुछ जगहों पर पेड़ की 108 परिक्रमा का भी विधान बताया गया है. इसके बाद योग्य पंडित या ब्राह्मण से आंवला नवमी की कथा सुनें या खुद पाठ करना भी लाभप्रद होगा. पूजा के बाद सुख समृद्धि की कामना करते हुए वृक्ष के नीचे बैठ कर भोजन शुभ लाभ देगा.आंवला नवमी कथामान्यताओं के अनुसार एक राजा रोजाना सवा मन आंवला दान करके ही भोजन करते थे. इस कारण उन्हें आंवल्या राजा कहा जाता था. मगर उनकी दान प्रवृत्ति पुत्र और वधू को रास नहीं आई. राजा के पुत्र ने ऐसा करने से रोका तो दुखी होकर राजा ने रानी समेत महल छोड़ने का फैसला लिया और दोनों ही जंगल चले गए. जंगल में प्रण अनुसार राजा ने बिना आंवला दान किए सात दिन भोजन नहीं किया. राजा की तपस्या और दृढ़ता से भगवान खुश हुए और राजा के महल बाग बगीचे जंगल के बीचोबीच खड़े हो गए. वहीं राजा के पुत्र और वधू का राजपाट दुश्मनों ने छीन लिया. आखिर में दोनों को भूल का एहसास हुआ और वो राजा और रानी के पास लौट आए.