कमलनाथ ने कहा- मुख्यमंत्री बनते ही किसानों के हित में फैसला लूंगा, तीनों काले कानून को मध्यप्रदेश में लागू नहीं होने दूंगा
भोपाल। पूर्व मुख्यंमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने कोरोना महामारी का फायदा उठाकर किसान विरोधी तीन काले कानून असंवैधानिक तरीके से पास करा दिए। इतना ही नहीं इन किसान विरोधी कानूनों को पास करते हुए केंद्र सरकार ने भारत के संघीय ढांचे को भी आघात पहुंचाया है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 की सातवीं अनुसूची में कृषि और कृषि मंडियां राज्य सरकारों का अधिकार है। मगर चंद पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए राज्यों के अधिकारों का हनन करते हुए किसान विरोधी तीन काले कानूनों का क्रूर प्रहार किसानों पर किया है।
कमलनाथ ने कहा कि मैं दृढ़ संकल्पित हूं कि मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही किसानों के हित में फैसला लूंगा। इन तीनों काले कानून को मध्यप्रदेश में लागू नहीं होने दूंगा। साथ ही मंडी टैक्स को न्यूनतम स्तधर पर लाया जाएगा और मंडियों का दायरा भी बढ़ाएंगे।
‘कार्पोरेट और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया कानून’
कमलनाथ के मीडिया कोऑर्डिनेटर नरेंद्र सलूजा की ओर से जारी बयान में पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र और मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार इस काले कानून के जरिये पूंजीपति और कॉर्पोरेट क्षेत्र को लाभ पहुंचाना चाहते है। इसलिए किसानों के भविष्य के बारे सोचे बिना की ताबड़तोड़ तरीके से प्रदेश में इस कानून को लागू कर दिया गया। लेकिन मैं भाजपा को खुली चेतावनी देता हूं कि वह किसानों के खिलाफ अमीरों से मिलकर जो साजिशें रच रही है, उसका कांग्रेस पार्टी पुरजोर विरोध करेगी।
‘कांग्रेस सरकार आते ही पहला निर्णय, कानून को लागू नहीं होने देना’
नाथ ने कहा कि संसद में जिस अलोकतांत्रिक ढंग से किसान विरोधी पारित कराए गए हैं। वह भाजपा की मंशा को स्परष्टि करते हैं कि वह सीधे-सीधे इनके जरिए किसानों की कीमत पर बड़े घरानों को लाभ पहुंचाना चाहती है। अपने आप को किसान का बेटा होने का दावा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ने इस काले कानून को लागू कर यह बता दिया है कि किसान हितैषी होने का दावा झूठा है। मैं शिवराज को बताना चाहता हूं कि कांग्रेस सरकार आने के बाद सबसे पहले मेरा निर्णय होगा कि मध्यचप्रदेश में यह काला कानून लागू नहीं होने दूंगा।
23 फसलों को समर्थन मूल्य के दायरे में रखा, लेकिन खरीदा केवल धान-गेहूं
पूर्व मुख्योमंत्री ने कहा कि ये तीनों काले कानून पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाले है। आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया है, जिसके जरिये खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया, इसका मतलब है कि अब व्यापारी असीमित मात्रा में अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल प्याज और आलू को इकट्ठा करके रख सकते हैं। उन्होंबने कहा कि केंद्र सरकार 23 प्रकार की फसलों का समर्थन मूल्य घोषित करती है। मगर सिर्फ धान और गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदती है और बहुत सीमित मात्रा में दाल और मोटा अनाज। वो भी इसलिए क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में वितरित करना होता है और आपात स्थिति के लिए संग्रहित करना होता है।
सरकार नाम मात्र एक या दो फसलें समर्थन मूल्य पर खरीदती है बाकी की फसलों के लिए किसान बाजार के भरोसे होता है। अगर, बड़े व्यापारी असीमित मात्रा में भंडारण करके रखेंगे और किसानों की फसलों के आने पर उसे बाजार में उतार देंगे तो किसानों की उपज की कीमत जमीन पर आ जाएगी और किसान औने-पौने दाम में अपनी फसल बेचने पर मजबूर होगा।