कैग जांच में खुलासा : शिवराज के राज में कंप्यूटर ऑपरेटरों के 89 खातों में डाला आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का पैसा
भोपाल। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पोषण आहार मामले में बड़ी गड़बड़ी पकड़ी है। कैग ने बताया कि मई 2014 से दिसंबर 2016 के बीच भोपाल, रायसेन के परियोजना अधिकारियों ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाओं की करीब 3.19 करोड़ रु. की मानदेय राशि डाटा एंट्री व कंप्यूटर ऑपरेटरों सहित अन्य 89 बैंक खातों में जमा करा दी। तब मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे।
भोपाल की एक पीओ सुधा विमल मोतियापार्क में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में दर्ज थीं। उनके खाते में बैरसिया के कई, बरखेड़ी, चांदबड़, गोविंदपुरा के एक-दो और रायसेन के उदयपुरा के परियोजना अधिकारियों का पैसा जमा था।
मानदेय 6 हजार रुपए, खाते में एक लाख
कैग के मुताबिक वर्ष 2014-15 से लेकर 2017-18 के दौरान आंगनबाड़ी महिलाओं को 6 हजार रुपए मानदेय मिलता था। लेकिन उपरोक्त बैंक खातों में एक लाख 13 हजार रुपए तक के भुगतान मानदेय के रूप में किए गए। कुल 89 बैंक खातों में 9 डाटा एंट्री व कंप्यूटर ऑपरेटरों हेमंत पालीवाल, जयश्री उदय, ललित नागर, सुरेंद्र कुमार मौर्य, आशीष प्रजापति, लता यादव, माया नागले, राहुल खाटरकर और दीपक शुक्ला के एवं दो खाते परियोजना कार्यालयों (पीओ) में काम करने वाले लोगों दिलीप जेठानी व काशी प्रसाद और एक खाता गोविंदपुरा पीओ में काम करने वाले एक कर्मचारी की बेटी प्रतिमा लोकवानी का था।
बाकी बैंक खाताधारकों की पहचान ही नहीं हो सकी। सितंबर 2016 से लेकर अगस्त 2018 तक भोपाल के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) ने 44 बैंक खातों में 39.61 लाख रुपए कपटपूर्ण तरीके से जमा किए। इसमें से 23 खातों में परियोजना अधिकारियों ने भी पैसा जमा कराया।
एक ही बिल पर फ्लेवर्ड दूध का भुगतान हो गया
कैग ने बताया कि भोपाल के डीपीओ ने बच्चों को दिए जाने वाले फ्लेवर्ड दूध का भुगतान 4 लाख 73 हजार रुपए जिस तारीख और बिल क्रमांक से किया, उसी तारीख और क्रमांक से 14 लाख एक हजार रुपए का भी भुगतान हुआ। जब कैग ने डीपीओ से पूछा तो उन्होंने कहा कि फर्जी हस्ताक्षर से किसी ने ऐसा किया होगा। इस राशि की वसूली करके शासन के खाते में जमा करा दी गई है।
विदिशा, मुरैना, अलीराजपुर और झाबुआ में भी गड़बड़ी
कैग के अनुसार भोपाल और रायसेन की सेंपल जांच के अलावा विदिशा, मुरैना, अलीराजपुर और झाबुआ के जिला कार्यक्रम अधिकारी व परियोजना अधिकारियों के दस्तावेजों की जांच में पता चला कि मानदेय का 65 लाख 72 हजार गलत तरीके से आहरण किया गया। बाद में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका के नाम पर जिन खातों में यह पैसा जमा कराया गया वो फर्मों के नाम पर व कर्मचारियों के परिजनों के नाम पर थे। फर्मों में संदीप कंप्यूटर और ऑफसेट मुरैना शामिल है।