विभाग ने प्रमोशन पर लगाया रोड़ा
भोपाल: जंगल महकमे में त्रिमूर्ति आईएफएस अफसर चर्चा के केंद्र बिंदु में हैं। विभाग के आला अफसरों की नजरों में त्रिमूर्ति आईएफएस अफसरों का ट्रैक रिकॉर्ड दागदार रहा है। इनमें से 1986 बैच के आईएफएस आनंद बिहारी गुप्ता के विभाग ने ‘पर’ कतर दिए है। दागी होने की वजह से दूसरे आईएफएस अफसर अजीत श्रीवास्तव के प्रमोशन और तीसरे अफसर मोहन मीणा की प्राइम पोस्टिंग पर पेंच फंस गया है। जांच प्रतिवेदन में दोषी पाए गए 1994 बैच के मोहन मीणा प्राइम पोस्टिंग के लिए छटपटा रहे हैं। इसके लिए वे विभागीय मंत्री विजय शाह की परिक्रमा भी कर रहे हैं।
विभाग ने गुप्ता के ‘पर’ कतरे
1986 बैच के पीसीसीएफ कैंपा एबी गुप्ता के खिलाफ हुई जांच में तीन आईएफएस और दमोह रेंजर ने आरोप लगा चुके हैं कि वे फोन कर हम पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं। इसके अलावा भी फील्ड से लगातार उनकी शिकायतें उच्च पदस्थ अधिकारियों को मिल रही है। गुप्ता ने ‘अंधा बांटे रेवड़ी, चीन्ह- चीन्ह कर देत’ के सिद्धांत पर कैंपा फंड का वितरण किया। विभागीय सूत्रों के अनुसार सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, शिवपुरी, रीवा, उमरिया, श्योपुर, सहित एक दर्जन से अधिक पर मंडलों में फंड की अविरल धारा बहती रही, जबकि बैतूल, विदिशा, भोपाल, दमोह और सागर के लिए फंड रिलीज नहीं किया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दमोह वन मंडल से ही सेवा करने संबंधित उनका आॅडियो वायरल हुआ था। इन शिकायतों के आधार पर ही पहले उनसे ‘सीआर’ लिखने का अधिकार छीना गया। हाल ही में वन विभाग ने चहेतों को कैंपा फंड से रेवड़ी बांटने गुप्ता के अधिकार पर भी अंकुश लगा दिया गया है। यानी अब वे सीधे फंड रिलीज नहीं कर सकेंगे। इसके लिए उन्हें वन बल प्रमुख से अनुमोदन लेना होगा। इसी प्रकार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बारिश में गड्ढा खोदने के निर्देश पर भी रोक लग गई है। इस संदर्भ में सभी फील्ड के अफसरों को वन बल प्रमुख द्वारा परिपत्र जारी किया गया है।
प्रमोशन के लिए सीएस को टारगेट
अजीत श्रीवास्तव 87 बैच के आईएफएस अफसर है। 55 लाख रुपए की रिश्वत मांगने संबंधित आॅडियो वायरल के चलते पीसीसीएफ के पद पर प्रमोशन नहीं हो पा रहा है। जबकि इन्हें 1 सितम्बर को पीसीसीएफ के पद पर प्रमोट हो जाना था। इनके प्रमोशन का मामला कैट में लंबित है। कैट ने मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को 14 सितंबर को व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने के निर्देश दिए। मुख्य सचिव को पार्टी बनाए जाने से इकबाल सिंह बैंस नाराज हैं। प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल तो पहले से ही नाराज चल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि रिश्वत मांगने संबंधित आॅडियो वायरल होने के मामले में कसूरवार पाए जाने पर पूर्ववर्ती भाजपा सरकार और तत्कालीन एवं वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अजीत श्रीवास्तव का इंक्रीमेंट रोक रखा है। सत्ता परिवर्तन के बाद अजीत श्रीवास्तव ने शिवराज सरकार के फैसले को बदलने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के जरिए कमलनाथ सरकार और तत्कालीन वन मंत्री उमंग सिंघार पर दबाव बनाया था। तत्कालीन वन मंत्री भी पूर्व सरकार के निर्णय को बदलने के लिए राजी हो गए, किंतु तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रमुख सचिव और वर्तमान वन प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया था। प्रमुख सचिव वर्णवाल के हस्तक्षेप की वजह से ही शिवराज सरकार के निर्णय को यथास्थिति बनी हुई है। वर्णवाल जबलपुर के एसएफआरआई में एपीसीसीएफ अजीत श्रीवास्तव की पोस्टिंग के फेवर में नहीं है। यह पद पीसीसीएफ का है और अजीत श्रीवास्तव एपीसीसीएफ स्तर के अधिकारी है।
जांच लंबित, शाह की परिक्रमा
हमेशा विवादों में रहने वाले 1994 बैच के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक मोहन मीणा को अब प्राइम पोस्टिंग के लाले पड़ रहे हैं, हालांकि प्राइम पोस्टिंग पाने के लिए वन मंत्री विजय शाह की परिक्रमा जरूर कर रहे हैं। पहले हुए वह कान्हा नेशनल पार्क के संचालक बनने की इच्छा रखते थे। जब वहां पेंच फंस गया तो फिर वे ईको टूरिज्म बोर्ड के सीईओ के पद को हासिल करना चाह रहे थे वहां भी सीनियर अफसरों ने उनका विरोध दर्ज करा दिया है। उल्लेखनीय है कि नरसिंहपुर में पदस्थापना के दौरान शंकराचार्य स्वरूपानंद के आश्रम को तोड़ने वाले मोहन मीणा जहां-जहां भी पदस्थ रहे, वहां उन्हें विवादों के चलते हटाया गया। बालाघाट से लेकर सिंह परियोजना एवं प्रभारी पालपुर कूनो में भी मोहन मीणा विवादों में रहे। मीणा पालपुर कूनो में चीतल के शिकारियों की हिमायत करने और माधव नेशनल पार्क में राजसात किए गए जेसीबी मशीन, डंपर और ट्रैक्टर ट्रॉली को छोड़ने के मामले में जांच की जद में है। वन्य प्राणी एक्ट के तहत राजसात किए गए वाहनों को छोड़ने का प्रावधान नहीं है। फिर इन वाहनों के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कर न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया जा चुका है। वन्य प्राणी शाखा के सीनियर अधिकारी का कहना है कि मोहन मीणा ने व्यक्तिगत सुनवाई कर राजसात किए गए वाहनों को यह लिखते हुए छोड़ दिया गया कि अपराध सिद्ध नहीं होता है। अब सवाल यह उठता है कि जब अपराध सिद्ध ही नहीं हुआ तो 25-25 हजार रुपए का जुर्माना वाहन मालिकों पर क्यों लगाया गया? छोड़े गए वाहनों की जानकारी न्यायालय को क्यों नहीं दी गई? प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी निर्देश पर अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन्य प्राणी विशेषज्ञ जेएस चौहान ने मौके पर जाकर जांच की। चौहान की रिपोर्ट के आधार पर कसूरवार कराए गए मोहन मीणा से वन्य प्राणी शाखा ने स्पष्टीकरण मांगा। इसके जवाब में मीणा ने उल्टे जांच अधिकारी के खिलाफ आरोप मढ़ दिए कि जांच रिपोर्ट रेंजर की सेवा से प्रभावित होकर बनाई गई है