कांग्रेस ने व्यापम घोटाले में CBI की भूमिका पर उठाए सवाल, हाईकोर्ट न्यायाधीश की निगरानी में जाँच की माँग…
भोपाल : कांग्रेस ने व्यापम घोटाले की जाँच को लेकर सीबीआई पर सवाल उठाए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के मीडिया सलाहकार के.के.मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद व्यापम के माध्यम से हुई 45 परिवहन आरक्षकों की 12 सालों बाद रद्द नियुक्तियों को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट के ही निर्देश पर जांच करने वाली एजेंसी सीबीआई के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि आरक्षकों की नियुक्ति रद्द करने के निर्णय ने CBI की कार्यप्रणाली की विश्वसनीयता व व्यापम के माध्यम हुई सभी 168 परीक्षाओं में हुई अनियमितताओं, घपलों, घोटालों व भ्रष्टाचार की पारदर्शी कही जाने वाली जांच पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। लिहाज़ा, अब पूरी CBI जांच हाईकोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश की निगरानी में प्रारंभ करवाई जाए।
कांग्रेस के गंभीर आरोप
अरुण यादव और केके मिश्रा ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि ‘जब बारह साल बाद 45 आरक्षकों की नियुक्ति रद्द की गई है तो इससे यही लगता है कि CBI राजनैतिक दबाव में थी। यदि जांच प्रक्रियाएँ निष्पक्ष-पारदर्शी होती तो सुप्रीम कोर्ट का ये निर्णय 12 साल बाद सामने क्यों आता? क्या यह निर्णय सीबीआई द्वारा देश की शीर्ष अदालत को भी दिया गया धोखा नहीं है? ऐसा ही अविश्वस्त चरित्र उसने प्रदेश में हुए नर्सिंग घोटाले की जांच में भी दोहराया, जिसमें CBI अधिकारी रिश्वत लेते पकड़ाये, जो अभी भी जेल में हैं।’
कांग्रेस ने सीबीआई जांच को लेकर किए सवाल
कांग्रेस नेताओं ने सीबीआई की कथित पारदर्शी कार्यशैली पर कई सवालिया निशान लगाए हैं। उन्होंने कहा कि ‘क्या कारण है कि प्रदेश के 1 लाख 47 हज़ार नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले जिस घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट के निर्देश पर FIR हुई, उनके पुत्र, ओएसडी, तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ओएसडी, प्रेमप्रकाश जो CM के सरकारी निवास पर ही रहते थे, अग्रिम जमानत पर रिहा हुए मंत्री, जेल गये कई आयएएस-आईपीएस के नाम सामने आये, कई शिक्षा माफियाओं, साल्वर्स सहित व्यापमं के अधिकारी-कर्मचारी लंबे समय तक जेल में रहे,सरकार भी इन्हें ही तो कहते हैं ! तो रिश्वत देने वाले अभ्यर्थियों, उनके अभिभावकों को आज भी ट्रायल कोर्ट से लंबी सजायें हो रही हैं,यानी परीक्षाओं में घपले/घोटाले हुए, जो बिना भ्रष्टाचार के संभव नहीं थे ! यदि जांच पारदर्शी थी तो बड़े-बड़े मगरमच्छ आज बाहर क्यों हैं?’
केके मिश्रा ने एक्स पर लिखा है कि ‘इतने बड़े घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन मुखिया और व्यापमं की तत्कालीन मुखिया रंजना चौधरी से CBI ने पूछताछ तक क्यों नहीं की गई ? क्या यह ग़लत है कि CBI जांच दल के नियुक्त पहले मुखिया मप्र में उन्हीं की बैच के आइपीएस सहयोगी के साथ उन्हीं के चार पहिया वाहन में अर्धरात्रि को मिलने CM हाउस गये थे ,क्या यह पारदर्शी जांच का पहला अध्याय था? (कांग्रेस ने तब भी यह प्रश्न उठाया था)। पीएमटी परीक्षा घोटाले के एक प्रमुख पदाधिकारी यू.सी. ऊपरीत ने पुलिस को दिये अपने अधिकृत बयान में कहा था “हम हर नये चिकित्सा शिक्षा मंत्री के बनते ही उन्हें 10 करोड़ रू. पहुंचा देते थे !इतने गंभीर-दस्तावेजी आरोप और घोटाले के वक्त चिकित्सा शिक्षा मंत्री कौन था, CBI ने उनसे पूछताछ क्यों नहीं की? 22 जन.2014 को एसटीएफ़ ने हाईकोर्ट में एक हलफ़नामा देते हुए कहा था कि व्यापमं में वर्ष 2008 तक के दस्तावेज मौजूद नहीं हैं,हम जांच कैसे करें! मप्र लोक सेवा आयोग में अपने द्वारा आयोजित परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाएँ 10 वर्षों और रिज़ल्ट 20 तक सुरक्षित रखा जाता है, यही नियम व्यापमं में भी लागू होता है तो व्यापमं में दस्तावेज नष्ट कैसे,क्यों व किसके निर्देश पर नष्ट हुए? CBI ने इसके लिए किसे दोषी माना, यदि ऐसा नहीं हुआ तो क्यों?’ कांग्रेस नेताओं ने कहा कि अब पार्टी नये सिरे से इस घोटाले की सभी परतें खोलेगी।