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काम करना है तो तुम्हें ईसाई बनना पड़ेगा.. दलित कर्मचारी ने लगाया स्कूल प्राचार्य पर धर्मांतरण के दबाव का आरोप…

भोपाल : डबरा का सिमरिया टेकरी स्थित सेंट पीटर्स स्कूल एक बार फिर चर्चा में है। इस बार स्कूल के एक कर्मचारी ने स्कूल की प्राचार्य पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं कर्मचारियों ने इस बात की शिकायत डबरा एसडीएम से भी की है।


क्या बोला मनोज बाल्मीकि 

जब इस बात की जानकारी के लिए मनोज बाल्मीकि को फोन किया और उस मामले के बारे में पूछा तब उसने बताया कि ‘उसके द्वारा बच्चों की तबीयत खराब होने के चलते स्कूल से 2 दिन का अवकाश लिया गया था, इसके बाद उसे प्राचार्य द्वारा स्कूल से हटा दिया गया, जब उसने इस बात पर प्राचार्य से बातचीत की और कहा कि उसके द्वारा बात कर छुट्टी ली गई थी फिर ऐसा क्यों किया गया? तब प्राचार्य का कहना था कि हम तुम्हें वापस काम पर ले लेंगे लेकिन तुम्हें एक कागज पर वह लिखकर देना होगा जो हम बताएंगे। इस बात पर मनोज ने एतराज जताते हुए कहा कि जब मैंने लिखित में अवकाश के लिए अनुमति मांगी हुई है तो मैं ऐसा क्यों लिख कर दूं? मनोज के अनुसार इस पर प्राचार्य ने जवाब दिया कि ठीक है हम तुम्हें नौकरी पर वापस रख लेंगे लेकिन तुम्हें ईसाई धर्म अपनाना होगा’।  इस बात पर कड़ा ऐतराज जताते हुए मनोज सीधे डबरा एसडीएम के ऑफिस पहुंचा जहां तहसीलदार के माध्यम से उसने अपना आवेदन एसडीएम के नाम सौंपा। इस बात की पूरी जानकारी मनोज बाल्मीकि ने अपने आवेदन में दी।

एबीवीपी ने जताया विरोध की कार्यवाही की मांग

जैसे ही इस बात की जानकारी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को प्राप्त हुई वैसे ही इसके कई कार्यकर्ता स्कूल पहुंचे और अपना विरोध प्रदर्शित किया। लेकिन हर बार की तरह ही उन्हें स्कूल के अंदर प्रवेश नहीं करने दिया गया। डबरा सिटी थाना प्रभारी और तहसीलदार द्वारा स्कूल पहुंचकर जैसे तैसे एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को समझाया गया और साथ ही मामले की निष्पक्ष जांच करने का भी आश्वासन पुलिस और प्रशासन द्वारा दिया गया।

पिछले साल भी उठा था स्कूल में ऐसा विवाद

हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं है जब सेंट पीटर विद्यालय में धर्मांतरण या धर्म को लेकर विवाद सामने आया है, इससे पहले 27 मार्च 2023 के दिन भोपाल से बाल संरक्षण आयोग की टीम द्वारा स्कूल का निरीक्षण किया गया था जहां आयोग की टीम को धर्म विशेष के प्रचार प्रसार की सामग्री भी मिली थी। इतना ही नहीं इस बात की जानकारी भी आयोग की टीम को मिली कि यह स्कूल बिना किसी मान्यता के संचालित था।

कृषि भूमि पर चल रहा था स्कूल, आरटीई का नहीं कोई प्रावधान

जब स्कूल की भूमि के कागजातों की जांच पड़ताल की गई तब यह बात सामने आई थी कि यह स्कूल कृषि भूमि पर बना हुआ है। इतना ही नहीं सरकार द्वारा निर्देशित करने के बावजूद स्कूल में राइट टू एजुकेशन के तहत किसी भी तरह के एडमिशन नहीं लिए जा रहे थे। स्कूल द्वारा टर्नओवर 4 करोड रुपए का बताया गया लेकिन जब इस संबंध में आयोग की टीम ने कागजात मांगे तब स्कूल किसी भी तरह के कागजात मुहैया नहीं कर पाया। जिस पहाड़ी पर यह स्कूल स्थित है जानकारी के मुताबिक उसे बिना डायवर्सन के काटकर उसके ऊपर निर्माण कराया गया। हालांकि यह सब बातें बस्ते में बंद हो गई। इस घटना के बाद भी विश्व हिंदू परिषद द्वारा तत्कालीन डबरा एसडीएम को ज्ञापन सौंपा गया था, जिसमें अधिकारियों पर भी कार्रवाई और ढील बरतने की बात कही गई थी।

क्या बोले थे तत्कालीन कलेक्टर

इस सभी घटनाक्रम पर तत्कालीन ग्वालियर कलेक्टर ने आश्वासन दिया था कि स्कूल को नोटिस जारी कर दिया गया है, जांच की प्रक्रिया जारी है यदि किसी भी तरह की विसंगति सामने आती है तब कार्रवाई कठोर से कठोर की जाएगी।

हर साल निकाली जा रही थी छात्रवृत्ति

इस बीच जांच के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य और सामने आया जिसके अनुसार जिस स्कूल में राइट टू एजुकेशन के तहत दाखिला नहीं दिया जा रहा था जिस स्कूल के पास कोई मान्यता नहीं थी उसी स्कूल में संकुल प्राचार्य पर दबाव बनाकर हर साल छात्रवृत्ति का न केवल अप्रूवल कराया गया बल्कि इस स्कूल के छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति बांटी भी गई।

बिना जांच के खोल दिया गया स्कूल

इसके बाद बिना किसी जांच के सबूत के सामने आए स्कूल को फिर से खोल दिया गया। इस बात पर एतराज जताते हुए बाल संरक्षण आयोग ने तत्कालीन एसडीएम द्वारा इसे आयोग के निर्देशों की अवहेलना बताते हुए नोटिस जारी कर 7 दिन में जवाब मांगा। इसके बाद एसडीएम ने जिला शिक्षा केंद्र ग्वालियर को कारण बताओ नोटिस जारी कर इस बात का जवाब मांगा था। जब स्कूल से जिला शिक्षा केंद्र द्वारा कागजात मांगे गए तब स्कूल ना तो कागजात प्रेषित कर पाया और जवाब में स्कूल ने कहा कि शिक्षा विभाग के अधिकारी द्वारा पूछा गया सवाल विधि के प्रावधानों का उल्लंघन है और इसलिए नोटिस को निस्तृत किया जाए।