जहां गरुड़ ने की तपस्या और देवी अहिल्या बाई ने बनवाया मंदिर यहां शिवरात्रि पर इंदौर ही नहीं प्रदेश भर से दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु
इंदौर शहर से करीब 15 किमी दूर नेमावर रोड पर देवगुराड़िया की पहाड़ियों के बीच बने शिव मंदिर की मान्यता भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ से जुड़ी है. मान्यता के अनुसार गरुड़ ने यहां आकर भगवान शिव की तपस्या की थी. इसलिए इस स्थान का नाम गरुड़ के नाम पर देवगुराड़िया पड़ा. इस स्थान को गरुड़ तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है.इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप में लाने का श्रेय देवी अहिल्याबाई होलकर को जाता है. उन्होंने 18वीं सदी में इस मंदिर को दर्शन करने लायक बनाया.इस मंदिर में प्राकृतिक गोमुख से शिव का अभिषेक होता रहता है. इस गोमुख से भगवान शिव का अभिषेक सावन महीने से शुरू होता है. जो सावन के बाद भी जारी रहता है. यहां से झरने वाला पानी मंदिर के दरवाजे के बाहर बने अमृतकुंड में भर जाता है.शिव मंदिर के बाहर ही बने कुंड में पानी कभी सूखता नहीं. इस कुंड में नाग-नागिन का एक जोड़ा भी रहता है. जो आए दिन श्रद्धालुओं को नजर आता रहता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि नाग-नागिन के जोड़े के दर्शन करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.इसी पहाड़ी से निकाला था इंदौर की पहली रेलवे लाइन का रास्ताइतिहास में इस बात का उल्लेख है कि देवगुराड़िया का मंदिर होलकर राज्य के प्राचीन मंदिरों में से एक है। देवी अहिल्याबाई मई 1784 में महेश्वर से इंदौर प्रवास पर आई थीं. वे छत्रीबाग में ठहरी थीं. उसी दौरान वे गरुड़ तीर्थ देवगुराड़िया शिव मंदिर के दर्शन के लिए गई थी.कैप्टन सीई लुआर्ड के ‘इंदौर स्टेट गजेटियर 1896’ में इस बात का उल्लेख है कि देवगुराड़िया में महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है. तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब द्वारा कंपेल के कानूनगो को मेले के हर दुकानदार से कर वसूली का अधिकार दिया गया था. इसी गजेटियर में उल्लेख है कि इंदौर होलकर स्टेट रेलवे (1874) का कार्य शुरू हुआ तो इसी पहाड़ी से खुदाई कर निर्माण सामग्री ले जाई गई.सोलह पीढ़ियों से मंदिर की पूजा..पंडित राजेंद्र पुरी ने बताया कि उनका परिवार सोलह पीढ़ियों से मंदिर की पूजा कर रहा है. अब सत्रहवीं पीढ़ी यह दायित्व संभालने के लिए तैयार है. यहां हर साल शिवरात्रि पर भव्य मेला लगता है। मंदिर में पांच कुंड हैं, जिनमें दो कुंडों में लोग स्नान करते हैं. इनमें हमेशा पानी रहता है. मान्यता है, इनका पानी कभी नहीं सूखता है और पूरे गांव की प्यास इसी कुंड से बुझती है.