Religious

क्या ईश्वर का जन्म भी कोख में हुआ है?

हम लोग भगवान श्रीराम का जन्मदिन चैत्र माह की नवमी को और श्रीकृष्ण का जन्म श्रावण मास की अष्टमी को मनाते हैं. हम आम बोलचाल मे ऐसा कहा जाता है कि इन तिथियों पर क्रमशः श्रीराम और श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या ईश्वर अन्य मनुष्यों की तरह किसी स्त्री की कोख से जन्म लेते हैं? क्या वह मनुष्य रूप में रहकर भी अन्य मनुष्यों की तरह होते हैं? यदि नहीं तो वह साधारण मनुष्यों से किस तरह अलग होते हैं?

सनातन धर्म के अनुसार

 किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरण होता है, यानी वह पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। वह अवतरित होते हैं, जन्म नहीं लेते. जन्म और मरण तो मनुष्यों और अन्य जीवों का होता है, ईश्वर का नहीं.

यह बात और है कि हमारी नासमझी में हम आजकल अपने मित्रों और संबंधियों के जन्मदिन पर बधाई देते हुए यह लिखने लगे हैं कि अवतरण दिवस की बधाई हो. लेकिन यह अज्ञान है. मनुष्यों का जन्म होता है, अवतरण नहीं.

 हम रामचरित् मानस के आधार पर भगवान श्रीराम के अवतार और इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर चर्चा करते हैं.

बालकाण्ड के दोहा क्रमांक 192 यह है-

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तन माया गुन गो पार।।

अर्थात- ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों के हित में ईश्वर ने मनुष्य अवतार लिया. उनका शरीर उनकी अपनी इच्छा से रचित और माया यानी सत्व, रज और तम तीनों गुणों तथा इंद्रियों से परे हैं.

दोहा 191 मे भी कहा है कि-

जग निवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम।

अवतार के समय जो छंद है वह है-

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला।

इससे सारी बातें स्पष्ट हो जाती हैं. पहली बात तो यह कि उन्होंने जन्म नहीं लिया, बल्कि उनका अवतरण हुआ. दूसरी बात यह कि उनका शरीर उनकी इच्छा से निर्मित अर्थात चिन्मय स्वरूप है. माया अर्थात सत्व,रज और तम तीनों गुणों से वह परे हैं. साथ ही वह इंद्रियों से भी परे हैं. इन सबका उन पर कोई प्रभाव नहीं है.

इस दोहे से पहले एक चौपाई को लेकर लोग इस बात पर प्रश्न उठाते हैं. यह चौपाई है कि-

जा दिन तें प्रभु गर्भहिं आये,

सकल लोक सुख संपति छाये।

इस बात को ज्ञानी संतों ने स्पष्ट किया है. उनके अनुसार प्रभु गर्भ मे नहीं आये, माता कौशल्या को सिर्फ़ इसका अहसास हुआ. पवन देव उदर में गर्भाधान जैसी प्रतीति कराते हैं. वायु का एक नाम हरि भी है.

“इस प्रकार हम देखते हैं कि बोलचाल में भले ही भगवान के जन्म की बात कही जाये, लेकिन वह जन्म नहीं, अवतार लेते हैं. ईश्वर जन्म मरण से परे हैं. उनका न आदि है न अंत. किसी भी स्त्री का शरीर इतना पवित्र नहीं है कि ईश्वर उसमें प्रवेश कर सकें.”