ये एक ऐसा मंदिर है जहाँ चप्पल टांगने से मनोकामना होती है पूरी
लोग मन्नत पूरी होने पर मंदिरों में भगवान लकम्मा देवी मंदिर कर्णाटक को छप्पन भोग लगाते हैं. झंडा चढ़ाते हैं. तरह—तरह की पोशाके मां को चढ़ाई जाती हैं. लेकिन हम आपको देवी मां के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां मां को ये सब चीजें नहीं बल्कि चप्पल की माला चढ़ाई जाती है. जी हां. आप सुनकर जरूर चौक जाएंगे. पर ये सही है. कनार्टक मेें लकम्मा देवी मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां पर मां को चप्पल की माला चढ़ाई जाती है. आइए जानते मंदिर के इतिहास और इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें.
चप्पल की परंपरा
मंदिर में पहले बैलों की बलि दी जाती थी. लेकिन सरकार द्वारा इसे गैरकानूनी करार दिए जाने के बाद रोक लगा दी गई. ऐसा कहा जाता है कि इस परंपरा के बंद होने के बाद मां कोध्रित हो गईं. जिसमें बाद एक ऋषि द्वारा मां के गुस्से को शांत कर चप्पल चढ़ाई गई. तब जाकर देवी मां का क्रोध शांत हुआ. तभी से चप्पल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई.
स्थानीय लोगों की मानें तो यह मंदिर काफी प्राचीन है. एक बार देवी मां यहां घूमने आईं. उस समय वे पहाड़ पर टहल रही थीं. ऐसे में दुत्तारा गांव के देवता की देवीजी पर पड़ते ही उन्होंने मां का पीछा किया. उन देवता से बचने के लिए मां ने अपना सिर जमीन में कर लिया. उस समय से अभी तक माता की मूर्ति उसी स्थिति में मंदिर में विराजमान है. यह एक ऐसा मंदिर है जहां देवी के पीठ का पूजन होता है.
मनोकामना पूरी होने पर
मनोकामना पूरी होने पर यहां मंदिर के बाहर लगे पेड़ पर चप्पल टांगी जाती है। इतना ही नहीं यहां मां को शाकाहार व मांसाहार दोनों प्रकार के भोजनों का भोग लगाया जाता है। लोगों की मानें तो चप्पल चढ़ाने से बुरी शक्तियां हम से दूर रहती हैं। जबकि दूसरी का अहित चाहने वालों पर मां प्रसन्न नहीं होतीं।