किन्नरों को समाज शापित क्यों मानता है?
बहुत बड़ी विडम्बना है कि बिना किसी गलती के असीम यातनाओं की सजा उन्हें क्यों दी जाती है और कौन इसके लिए जिम्मेदार है. जिस तरह से कुछ लोग जन्मान्ध तथा कुछ शरीर और दिमाग की विमारियों के साथ पैदा होते हैं. उसीप्रकार कुछ ऐसे लोग ऐसे भी हैं, जिनके जन्म के साथ हुई दैवी घटनाओं के कारण कुछ ऐसा शारीरिक विकार होता है जिसकी वजह से उन्हें उनका परिवार, समाज और कानून, कोई भी उन्हें मनुष्य तक समझने की संवेदना नहीं दिखालाता है. यहाँ तक कि उनका सम्बोधन भी एक असम्मानित तरीके से किया जाता है. जी हाँ, मैं जिनकी बात कर रही हूँ उनको समाज कई तरह से सम्बोधित करता है जिसमें मुख्य है – हिजड़ा, किन्नर, खोजवा, नपुंसक, छक्का, थर्ड जेण्डर, उभयलिंगी आदि. विकलांग पैदा होने वाले लोगों को तो परिवार, समाज और कानून संरंक्षण देता है, उनके साथ सहानुभूति रखता है किन्तु किन्नर, हिजड़ा या खोजवा के साथ कोई भी सहानुभूति नहीं दिखलाता है.
किन्नरों का भी वर्ग होता है?
किन्नरों को चार वर्गो में बांटा गया है- बुचरा, नीलिमा, मनसा और हंसा. सम्पूर्ण किन्नर समुदाय को संरचना की दृष्टी से सात घरानों में बांटा जाता है, हर घराने के मुखिया को नायक कहा जाता है. ये नायक ही अपने गुरु का चुनाव करते हैं. महाभारत के एक पात्र शिखण्डी को भी इसी समाज का प्रतिनिधी माना जाता है
महाभारत में अर्जुन
महाभारत के एक मुख्य पात्र जो महारथियों में गिने जाते हैं उस ‘अर्जुन’ को भी अज्ञात वास के दिनों में एक अप्सरा के श्राप बस किन्नर बनना पड़ा था. अर्जुन अज्ञात वास के दिनों में किन्नर के रूप में ही एक राजकुमारी की शिक्षिका ‘वृहन्नला’ बनकर रहे थे. जब से दुनिया बनी है तब से इस सृष्टि में किन्नर मौजूद हैं जिसका उल्लेख पुराणों और पौराणिक कथाओं में किया गया है.
क्या शिव पुराणों में भी है जिक्र?
शिव पुराण में जिक्र किया गया है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी ने अपनी योग शक्ति से पुरुषों को उत्पन्न किया. योग द्वारा मनुष्यों और जीवों को उत्पन्न करने में काफी समय लग रहा था ऐसे में ब्रह्मा जी के निवेदन पर भगवान शिव ने अपने शरीर के आधे अंग से एक स्त्री को उत्पन्न किया और शिव अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए. अर्धनारीश्वर रूप में भगवान शिव न तो पूर्ण रूप से पुरुष थे और न ही पूर्ण स्त्री. अर्धनारीश्वर रूप से जहाँ सृष्टि में स्त्री रूप का सृजन हुआ वहीं किन्नर की भी परिकल्पना हुई. इसलिए भगवान शिव ही किन्नरों को सृष्टि में लाने वाले माने जाते हैं.
नपुंसक ग्रह
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बुध ग्रह नपुंसक माना जाता है इसलिए किन्नरों में बुध ग्रह का वास माना गया है. यही वजह है कि बुध ग्रह को अनुकूल बनाने के लिए किन्नरों का ज्योतिषशास्त्र में काफी महत्व दिया गया है. किन्नरों की उत्पति के विषय में और भी दो धारणायें आती हैं.
1- किन्नरों की उत्पति ब्रह्मा जी की छाया या उनके पैर के अँगूठे से हुआ है
2- अरिष्टा और कश्यप उनके आदि जनक ( पिता ) थे.
हिमालय का पवित्र शिखर कैलास किन्नरों का प्रधान स्थान माना जाता था. वहाँ वे भगवान भोले की सेवा करते थे. उन्हें देवताओं का गायक और भक्त माना जाता था. ये यक्षो और गन्धर्वो की तरह नृत्य और संगीत में प्रवीण होते थे. पुराणों के अनुसार- ये कृष्ण का दर्शन करने द्वारका भी गए थे. भीम ने शांतिपर्व में वर्णन किया है कि किन्नर बहुत सदाचारी होते हैं. अजंता के भित्ति चित्रों में गुहिरियको, किरातों और किन्नरों के भी चित्र हैं. महाकवि कालिदास के अमर ग्रन्थ कुमारसम्भव के प्रथम सर्ग के श्लोक 11 और 14 में भी किन्नरों का मनोहारी वर्णन है. इसके अतरिक्त अनेक विद्वानों और साहित्यकारों ने अपने शोधग्रंथों, यात्रा- पुस्तकों, आलेखों और कविताओं में किन्नर देश और किन्नौर में रहने वालें किन्नर जनजाति का उल्लेख किया है. चाणक्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में किन्नरों का उल्लेख किया है.
इतिहास में भी मुस्लमान शासकों द्वारा अपने रानिओं की पहरेदारी के लिए किन्नरों को रखने के प्रमाण मिलते हैं.
14वर्षों तक किन्नरों ने किया श्री रामचंद्र का इंतज़ार
इस प्रकार किन्नरों के संबन्ध में अनेक अंतर्कथाए प्रचलित हैं. इनमे सबसे अधिक प्रचलित कथा भगवान राम के वनगमन से सम्बंधित है- जब भरत राम से मिलने चित्रकूट जा रहे थे तब सभी अयोध्यावासी भी उनके साथ चित्रकूट आए थे. अयोध्या वासियों के विनय को अस्वीकार करते हुए प्रभू श्री राम ने सभी नर-नारियों को वापस अयोध्या लौट जाने के लिए कहा, परन्तु उनके सम्बोधन में हिजड़ों का नाम नहीं था, अपितु किन्नर 14 वर्ष तक प्रभू श्री राम के आने की प्रतीक्षा करते रहे. वापसी पर जब भगवान राम उन्हें मिले तब उनकी निश्छल और निस्वार्थ भावना से अभिभूत होकर उन्हें वरदान दिया कि तुम जिन्हें आशिर्वाद दे दोगे, उनका कभी भी अनिष्ट नहीं होगा.
कितनी अजीब बात है कि इतिहास में आदिकाल से, द्वापरयुग के महाभारत और त्रेता युग के रामायण में भी किन्नरों के सामाजिक उपस्थिति के प्रमाण मिलने के बावजूद भी मनुष्य के रुप में समाज किन्नरों को उचित स्थान नहीं दे सका है. आज भी हिंदी साहित्य में किन्नर विमर्श अपरिपक्व अवस्था में है. आम आदमी ने कभी भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि किन्नरों के अन्दर धड़कने वाले दिल में क्या हलचल होती है.