ऐसी अजीबो ग़रीब परंपरा जिन्हें जान आपके होश उड़ जायेंगे
- बच्चों का लिंग पता करने की अनोखी परम्परा
झारखंड के बेड़ो प्रखंड के खुखरा गाँव में माँ के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता करने की एक अनोखी परम्परा पिछले 400 सालो से चली आ रही है. गर्भस्थ शिशु का लिंग पता करने के लिए गांव की गर्भवती महिलाओं को इस पहाड़ की ओर चांद की आकृति पर निश्चित दूरी से बस एक पत्थर फेंकना होता है. अगर गर्भवती स्त्री के हाथ से छूटा पत्थर चांद के भीतर लगे तो यह संकेत है कि बालक शिशु होगा, चांद आकृति से बाहर पत्थर लगने पर बालिका शिशु होगी. इस परम्परा पर यहाँ के ग्रामवासियों का अटूट विश्वास उनके अनुसार यह हमेशा सही होता है.
- मनोकामना पूर्ति के लिये जमीन पर लेटे लोगों के ऊपर छोड़ दी जाती हैं गायें
भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के कुछ गावों में एक अजीब सी परम्परा का पालन सदियो से किया जा रहा है. इसमें लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से दौड़ती हुए गाये गुजारी जाती हैं. इस परंपरा का पालन दीवाली के अगले दिन किया जाता है जो कि एकादशी का पर्व कहलाता है. इस दिन उज्जैन जिले के भीड़ावद गांव और आस पास के गाँव के लोग पहले अपनी गायों को रंगों और मेहंदी से अलग-अलग पैटर्न से सजाते हैं. उसके बाद लोग अपने गले में माला डालकर रास्ते में लेट जाते है और अंत में दौड़ती हुए गायें उन पर से गुजर जाती हैं.
- शाटन देवी मंदिर, छत्तीसगढ़ – यहाँ बच्चो के अच्छे स्वास्थ्य लिए देवी को चढ़ाते है लौकी
छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित शाटन देवी मंदिर(बच्चों का मंदिर) से एक अनोखी परंपरा जुड़ी है. मंदिरों में आमतौर पर फूल, प्रसाद, नारियल आदि भगवान को चढ़ाने का विधान है, लेकिन शाटन देवी मंदिर में देवी को लौकी और तेंदू की लकड़ियां चढ़ाई जाती हैं. इस मंदिर को बच्चों का मंदिर भी कहते हैं. श्रद्धालु यहां अपने बच्चों की तंदुरुस्ती के लिए प्रार्थना करते हैं और माता को लौकी और तेंदू की लकड़ी अर्पण करते हैं. इस मंदिर में यह परंपरा कैसे शुरू हुई यह कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है.
- जंगमवाड़ी मठ, वाराणसी – यहाँ परिजनों की मृत्यु पर दान करते है शिवलिंग
इस मठ में शिवलिंगों की स्थापना को लेकर एक विचित्र परंपरा चली आ रही है. यहां आत्मा की शांति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग दान होता है. इस मठ में एक दो नहीं बल्कि कई लाख शिवलिंग एक साथ विराजते हैं. यहां मृत लोगों की मुक्ति और अकाल मौत की आत्मा की शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किए जाते हैं. सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के चलते एक ही छत के नीचे दस लाख से भी ज्यादा शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं.
- अनोखी परम्परा – पति कि सलामती के लिए जीती है विधवा का जीवन
हमारे देश भारत में आज भी कुछ ऐसी परम्पराय जीवित है जो हमे अचरज में डालती है. ऐसी ही एक परम्परा है पति कि सलामती के लिए पत्नी का विधवा का जीवन जीना। यह परम्परा गछवाह समुदाय से जुडी है. यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और इससे सटे बिहार के कुछ इलाकों में रहता है. ये समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है. इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते है. ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते है तथा एकदम सपाट होते है. इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही जोखिम का काम होता है. ताड़ी निकलने का काम चैत मास से सावन मास तक, चार महीने किया जाता है. इन चार महीनो में ना तो मांग में सिन्दूर भरती है और ना ही कोई श्रृंगार करती है. वे अपने सुहाग कि सभी निशानिया तरकुलहा देवी के पास रेहन रख कर अपने पति कि सलामती कि दुआ मांगती है.
- भाई दूज मनाने की अनोखी परम्परा – बहने भाई को देती है मर जाने का श्राप
भारतीय समुदायों में भाई दूज बनाने की अनोखी प्रथा है. इसमें बहने भाई दूज के दिन याम देवता की पूजा करती है. पूजा के दौरान वो अपने भाइयों को कोसती है तथा उन्हें मर जाने तक का श्राप देती है. हालांकि वो श्राप देने के बाद अपनी जीभ पर काँटा चुभा कर इसका प्रायश्चित भी करती है. इसके पीछे यह मान्यता है की यम द्वितीया (भाई दूज) भाइयों को गालियां व श्राप देने से उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहता है.
- अजीबोगरीब परम्परा – भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर करवाते हैं बच्चियों कि कुत्तों से शादी
इसे परम्परा ना कहकर कुरुति कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा. इसमें भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर बच्चियों की शादी कुत्तों से करवाई जाती है. हालाकि ये शादी सांकेतिक होती हैं, पर होती हैं असली हिन्दू तरीके और रीती रिवाज़ से. लोगों को शादी में आने का निमंत्रण दिया जाता है. पंडित, हलवाई सब बुक किये जाते है. बाकायदा मंडप तैयार होता है और पुरे मन्त्र विधान से शादी सम्पन कराई जाती है. इस शादी में एक असली शादी जितना ही खर्चा बैठता है और उससे भी बड़ी बात कि समाज एवं रिश्तेदार भी इसमें बढ़ चढ़ के हिस्सा लेते है. शायद आपको एक बार तो यकीन ही नहीं होगा कि ऐसा भी हो सकता है. लेकिन यह बिलकुल सत्य है. हमारे देश में झारखण्ड राज्य के कई इलाकों में परंपरा के नाम पर ऐसी शादियां सदियों से कराई जा रही है.