बक्सवाह जंगल को बचाने की चल पड़ी है मुहीम, सरकार यहां ढाई करोड़ पेड़ काटना चाहती है
कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से देशभर में त्राहि त्राहि मची हुई है. इस वक़्त में ऑक्सीजन की जबरदस्त किल्लत रही. लोग ऑक्सीजन के लिए लाखों रुपए चुकाने को तैयार थे. लोगों ने चुकाये भी. उसके बाद पेड़ लगाने की मुहीम ने जोर पकड़ा. लेकिन मध्य प्रदेश छतरपुर में बक्सवाह जंगल काटे जाने की खबर ने सबको चिंतित कर दिया.
चिंता की वजह भी जायज. यहां इस जंगल में लगभग ढाई करोड़ पेड़ हैं. कुछ सालों पहले इस जंगल की जमीन में हीरे की खदान की खोज हुई. सरकार ने जंगल की जमीन की बोली लगाई. जिसे आदित्य बिड़ला ग्रुप ने खरीद लिया. अब खबर है की बिड़ला ग्रुप हीरे निकालने के लिए इन पेड़ों को काटेगा. जिसके बाद मध्य प्रदेश सरकार का विरोध शुरू हो गया.
राज्य के वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक कहते हैं कि जीवधारियों को जीने के लिए ऑक्सीजन की अत्यंत आवश्यकता होती है. ऑक्सीजन की हमारे में क्या महत्व है, वह इस कोरोना ने सबको बता दिया. लोग दर-दर भटक रहे थे. लेकिन उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही थी. ऑक्सीजन आं मिलने की वजह से हजारों मरीजों ने दम तोड़ दिया. उसके बावजूद भी शिवराज सरकार करोड़ों पेड़ों को कटवाने पर तुली है. किसलिए? केवल कुछ हीरों के लिए.
वो सरकार से सवाल करते हैं कि क्या हमारे लिए जंगल, और ऑक्सीजन से ज्यादा हीरे हो गए हैं? वो बताते हैं कि राज्य में जंगल टूरिस्टों के लिए एक बड़े आकर्षण का केंद्र हैं. जिसे सरकार काट रही है. अगर यह जंगल काटे जाते हैं तो यह सिर्फ पेड़ नहीं, बल्कि राज्य की पहचान, प्राकृतिक संतुलन और इंसानी वजूद के साथ छेड़छाड़ होगी. वो बताते हैं कि एक तरफ खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पेड़ लगाने की अपील करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ करोड़ों पेड़ काटे जाने का आदेश दिया जाता है. यह सरकार का दोहरापन दर्शाता है.
हालांकि हीरा खदान के लिए काटे जाने वाले 2.15 पेड़ों को बचाने के लिए मध्य प्रदेश सहित देशभर के एक लाख 12 हजार लोग सामने आ गए हैं. कोरोना के मद्देनज़र इन सभी ने फिलहाल सोशल मीडिया पर ‘सेव बक्सवाहा फॉरेस्ट’ कैंपन चलाया है, किन्तु जैसे ही कोरोना संक्रमण थमेगा ये सभी बक्सवाहा पहुंच जाएंगे. आवश्यकता पड़ी तो पेड़ों से चिपकेंगे. गत 9 मई को देशभर की 50 संस्थाओं ने इसके लिए वेबिनार किया और रणनीति तैयार कर ली है.
इस बीच दिल्ली की नेहा सिंह ने शीर्ष अदालत में याचिका भी दाखिल की है, जिसे सुनने के लिए शीर्ष अदालत ने मंजूर कर लिया है. बिहार में पीपल, तुलसी और नीम लगाने के देशव्यापी अभियान से संबंधित डॉ. धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि कोरोना ने ऑक्सीजन की अहमियत बता दी है. राष्ट्रीय जंगल बचाओ अभियान से संबंधित भोेपाल की करुणा रघुवंशी ने बताया कि कई राज्यों के लोग जुड़े हैं.डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने कहा कि कोरोना के खत्म होते ही अभियान को तेज किया जाएगा.
उन्होंने बताया कि हीरा खदान के लिए 62.64 हेक्टेयर जंगल चिह्नित है. नियम है कि 40 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र के खनन का प्रोजेक्ट है, तो उसे केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय स्वीकृति देता है. वन विभाग में लैंड मैनेजमेंट के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील अग्रवाल का कहना है कि इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार में भेजा जा चुका है, किन्तु अभी मंजूरी नहीं हुई है. अब देखने वाली बात होगी कि क्या इतने भारी विरोध के बावजूद केंद्र सरकार इस जंगल की कटाई की मंजूरी देता है या नहीं.