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बॉलीवुड की कुटिल माओं में एक नाम अरुणा ईरानी का, क्यों अमिताभ बच्चन उनका हाथ पकड़ते डरते थे

बॉलीवुड में ऐसे काफी कम अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने हर किरदार में अपने आप को साबित किया है. कुछ अभिनेत्रियां जहां सिर्फ हीरोइन बनकर रह गईं तो कुछ को दर्शकों ने सिर्फ मां और दादी के किरदारों में ही पसंद किया. वहीं कुछ अभिनेत्रियां ऐसी भी रहीं जिन्हें दर्शकों ने हर किरदार में पसंद किया. ऐसी ही एक अभिनेत्री हैं अरुणा ईरानी.

एक इंटरव्यू में अरुणा ने कहा था, ‘दादा कोंडके के साथ मराठी फिल्म की और फिर मेरे पास आई राज कपूर की ‘बॉबी’. हालांकि मुझे डर लगा कि मुझे वैंप बनना पड़ रहा है, लेकिन मैंने फिल्म की और उसके बाद भगवान की कृपा रही.’ इसके साथ ही वैंप के किरदार निभाने पर अरुणा ने कहा था, ‘ ‘वैंप इत्तेफाक से बनी, ख़्वाब तो हमारे ऊंचे थे. हीरोइन और डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन हमारा परिवार गरीब था और परिवार को मुझे पालना था. हुआ ये कि मेरी 1972 की फिल्म ‘बॉम्बे टू गोआ’ हिट हुई फिर ‘कारवाँ’ हिट हुई, लेकिन मेरे पास कोई फिल्म नहीं आई.’

अरुणा ने आगे कहा था, ‘मेरा सबसे यादगार रोल मुझे 1992 की माधुरी की फिल्म ‘बेटा’ का लगता है जिसमें मैंने एक ऐसी औरत का किरदार निभाया जो पूरी तरह नेगेटिव थी. उसके लिए मुझे अवॉर्ड भी मिला था. याद दिला दें कि 1984 में ‘पेट, प्यार और पाप’ के लिए अरुणा को फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री अवॉर्ड भी मिला था. इसके साथ ही 2012 में फिल्मफेयर ने उन्हें लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड दिया था.

अरुणा से जुड़ा एक किस्सा साझा करते हुए हास्य कलाकार बीरबल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि, ‘अमिताभ बच्चन शुरुआती दिनों में जब संघर्ष कर रहे थे तो महमूद ने ही उन्हें लंबे समय तक अपने घर पर आसरा दिया था. इतना ही नहीं उन्हें  फिल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ में लीड हीरो के तौर पर काम दिया. उस फिल्म के दौरान महमूद और अरुणा ईरानी का रोमांस भी चल रहा था. इसलिए अमिताभ बच्चन हीरोइन अरुणा ईरानी का हाथ पकड़ने में बहुत शरमाते थे.’