देश की मौजूदा हालात के लिए दुनियाभर के मीडिया संस्थान ठहरा रहे हैं पीएम मोदी को जिम्मेदार
देशभर में कोरोना वायरस के संक्रमण से तबाही मची हुई है. सिर्फ सरकारी आंकड़ों में ही लाखों की संख्या में हर रोज संक्रमित हो रहे हैं. हजारों मौते हो रही हैं. अस्पतालों और श्मशान घाट के बाहर लाइन लगी हुई हैं. दवा, ऑक्सीजन और मेडिकल उपकरणों की जबरदस्त कालाबाजारी हो रही है. लेकिन सरकार हर मोर्चे पर नाकाम नजर आ रही है.
दुनिया भर के मीडिया संस्थान व अखबार भारत की इन हालात के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. इसके पीछे वो तर्क देते हैं कि भारत सरकार ने पिछले साल फैले संक्रमण से कोई सबक नहीं लिया. पहली और दूसरी लहर में लगभग एक साल का अंतराल रहा. दूसरी लहर से लड़ने के लिए यह काफ़ी हद तक पर्याप्त समय था. अस्पताल बनाए जा सकते थे. ऑक्सीजन का इंतजाम किया जा सकता था. मेडिकल उपकरण जुटाए जा सकते थे. लेकिन सरकार कुछ नहीं किया. कोरोना कर खिलाफ लड़ाई में जीत का एलान बीच युद्ध में ही कर दिया. जिसका खामियाजा अब भारत और उसकी जनता भुगत रही है.
चेहरा चमकाना पड़ा भारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आप को एक क़ाबिल प्रशासक के तौर पर पेश किया है, जो छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखते हैं, लेकिन अब जब भारत में कोरोना के नए मामले रिकॉर्ड बना रहे हैं, वो बुरी तरह नाकाम हो रहे हैं.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मिलन वैष्णव कहते हैं, ”यदि कार्यक्षमता ही उनकी पहचान थी तो बहुत से लोग अब इस पर सवाल उठाने लगे हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार सिर्फ़ लड़खड़ाई या अनुपस्थित दिखी, बल्कि बात ये है कि सरकार ने हालात को और ख़राब कर दिए.” मोदी दुनिया के अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जो कोविड संकट के दौरान बुरी तरह नाकाम हुए हैं. लेकिन वैष्णव कहते हैं कि उन्होंने सबसे ज़्यादा सम्मान खोया है क्योंकि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप या ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो की तरह उन्होंने कोविड को ख़ारिज नहीं किया था.
तैयारियों की जगह सरकार आयोजन में लगी थी
केंद्र सरकार व उत्तराखंड सरकार ने इस दौरान हरिद्वार में कुंभ को होने दिया. तमाम चेतावनियों को दरकिनार करते हुए दसियों लाख लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई. यह आयोजन एक स्प्रेडर के रूप में काम कर गया.
इसके साथ ही इस दौरान पांच राज्यों में चुनाव आयोजित करवाए गए. जबकि ICMR के द्वारा कोरोना के दोबारा लौटने की संभावना जताई जा चुकी थी. चुनावी राज्यों में लाखों की भीड़ जमा करके रैलियां की गईं. इस दौरान प्रधानमंत्री, गृह मंत्री समेत तमाम नेता बिना मास्क के रैलियां कर रहे थे. तमाम आलोचनाओं और विरोधों के बाद भी रैलियां चलती रहीं. एक तरफ देश में लाखों की संख्या में लोग संक्रमित हो रहे थे तब बंगाल में प्रधानमंत्री हजारों की भीड़ को इकट्ठा करके सम्बोधित कर रहे थे.
अब जब कोरोना विकराल रूप धारण कर चुका है तो सरकार अनुपस्थित सी हो चुकी है. तमाम हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट हर रोज सरकार को फटकार लगा रहे हैं. तमाम आलोचनाएँ कर रहे हैं. लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है.